टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : झारखंड में पुलिस के खिलाफ लोगों का आक्रोश बढ़ता जा रहा है. रांची के दो थानों में दो दिनों में मारपीट की घटना सामने यी है. बेड़ो की बात करें या फिर लापुंग की दोनों जगह ग्राम सभा के दौरान ही दरोगा पैर टूट पड़े और थाने में घुसकर पिटाई की, दोनों केस के पीछे की कहानी एक जैसी है जमीन से जुड़ा हुआ मामला बताया जा रहा है.
जानिए बेड़ो और लापुंग की घटना
बेड़ो में आदिवासियों की बैठक हुई. कारण था कि कुछ लोग सरना स्थल की जमीन पर अतिक्रमण कर रहे थे, लेकिन उनकी कोई सुनने वाला नहीं था. कई बार थाना और अंचलाधिकारी को आवेदन देकर अतिक्रमण हटाने की मांग की गई, लेकिन जब किसी ने उनकी नहीं सुनी तो समाज की बैठक शुरू हुई. इसके बाद तय हुआ कि अब अतिक्रमण हटाने की जिम्मेदारी ग्राम सभा खुद लेगी और जेसीबी मंगाई गई, लेकिन अब तक सुस्त रही पुलिस आदिवासियों द्वारा जेसीबी मांगाये जाने पर सक्रिय हो गई और उल्टे उन पर ही कार्रवाई करने की धमकी देकर जेसीबी चालक को थाने ले गई.
इतना होना के बाद बवाल मच गया और शाम होते-होते हजारों की संख्या में आदिवासी बेड़ो थाना पहुंच गए. इसके बाद वहां मौजूद पुलिसकर्मियों ने डराने की कोशिश तो मामला और बिगड़ गया. गुस्साए आदिवासियों ने थाना पर हमला बोल दिया. थाने में रखा सामान फेंक दिया और दरोगा और सिपाही के साथ मारपीट की.
घटना को दो दिन भी नहीं बीते थे कि अब लापुंग में भी जमीन विवाद को लेकर जमकर मारपीट हुई. बताया जा रहा है की जमीन विवाद को लेकर ग्राम सभा चल रही थी. इस दौरान वहां पर पुलिसकर्मी पहुंच गए जिसके पास भीड़ भड़क गई और थाना प्रभारी समेत जवानों की पिटाई कर दी जिसमें थाना प्रभारी के सिर में चोट आई है. उन्हें बेहतर इलाज के लिए रांची रिम्स में भर्ती कराया गया है.
अब सवाल यह है कि ग्राम सभा में पुलिस की कोई भूमिका नहीं होती है. इसके बावजूद भी पुलिस हर बार वहां पहुंच जाती है. जमीन विवाद के मामले में अंचल अधिकारी की भूमिका होती है लेकिन अंचल अधिकारी से पहले इंस्पेक्टर ही जमीन विवाद में सबसे पहले उतरते हैं. अगर किसी जमीन पर बीएनएस की धारा 163 लगी है तो उसे लागू कराना पुलिस की जिम्मेदारी है लेकिन पुलिस हर बार इन विवादों में क्यों उतरती है इसके पीछे की कहानी बहुत पेचीदा है.
ग्राम सभा को लेकर पेसा कानून के तहत कई अधिकार मिलता है लेकिन झारखंड में पैसा कानून की मांग सिर्फ आश्वासन और वादों तक सीमित रहती है. पेसा कानून को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने भी सवाल उठाया था कि बाहरियों के दबाव में हेमंत सरकार पेसा को लागू नहीं करवाना चाहते. सरकार सिर्फ इस कानून को खींचने की कोशिश कर रही हैं. इन्हें मालूम है कि अगर राज्य में पेसा कानून लागू हो जाएगा तो ग्राम सभा को अधिकार मिल जाएगा उसके बाद उनके पुलिस की कमाई कम हो जाएगी और जमीन लूटने का खेल बंद हो जाएगा.
रिपोर्ट-समीर
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