धनबाद (DHANBAD) : मैं हूं ताले में बंद धनबाद जिला कांग्रेस  कार्यालय. 15 सालों से मुझे तालों में "कैद" कर रखा गया है. सवाल तो सोनिया गांधी, राहुल गांधी से लेकर खड़गे जी तक से है. मैंने ताले में बंद रहते हुए झारखंड कांग्रेस के कई प्रभारी को आते-जाते देखा. कई प्रभारी मंत्रियों को भी बड़ी-बड़ी बातें करते सुना. कई जिला अध्यक्षों को भी करीब से देखा और समझा. पूर्व मंत्री बन्ना गुप्ता जब धनबाद के प्रभारी थे, तो किसी ने लात  से ही सही, मुझे ताले से मुक्त चंद घंटे के लिए कराया था. लेकिन फिर मैं ताले में "कैद" हो गया. अभी भी ताले में ही कैद हूं, मेरी आंचल में फिलहाल सांप-बिच्छू लोट रहे है. मेरे खिड़की-दरवाजे भी गिर रहे है.  

कभी मेरी आंचल चकाचौंध हुआ करती थी, आज बुरे दिन 

एक समय मेरी आंचल चकाचौंध हुआ करती थी. फिलहाल जिंदगी के अंतिम दिन गिन रहा हूं, सवाल तो बहुत है. उन कांग्रेसियों से भी है, जो हमारे कार्यालय में झकझक खादी  पहन कर बैठे और बड़े-बड़े पदों तक पहुंच गए. 15 साल से मैं मुक्ति के लिए तड़प रहा हूं, लेकिन कहीं कोई सुनवाई  नहीं हो रही है. मेरा ताजा सवाल बेरमो  के विधायक अनूप सिंह से है. अनूप सिंह से सवाल इसलिए है कि 12 अप्रैल को कांग्रेस के संगठन सृजन अभियान में पहुंचे बेरमो के विधायक अनूप सिंह ने ललकार कर घोषणा कर दी थी कि एक महीने के भीतर कार्यालय का ताला खुलकर रहेगा.  इसके लिए उन्होंने कुछ कसमें  भी खाई थी. मैं इसलिए सवाल पूछ रहा हूं कि एक  महीने का समय बीत गया. मैं ताले से मुक्त नहीं हुआ. मेरा यह भी सवाल है कि 2019 के हुए चुनाव के बाद झारखंड में बनी सरकार में भी कांग्रेस शामिल थी. लेकिन मेरा "कैदी जीवन' खत्म नहीं हुआ.  

कांग्रेस पहले भी सरकार में शामिल थी, इस बार भी है 

2024 के चुनाव के बाद भी बनी सरकार में कांग्रेस शामिल है और कांग्रेस कोटे से चार मंत्री सरकार में अपनी जिम्मेवारी का निर्वहन कर रहे है.  फिर भी मुझे "कैदी जीवन" से मुक्ति नहीं मिली.  विधायक अनूप सिंह ने जब घोषणा की कि एक महीने में कार्यालय का ताला खुलवाकर ही दम लेंगे, तो मुझे कुछ उम्मीद जगी थी कि अब मेरे दिन सुधरने वाले है. मेरे बुरे दिन के खत्म होने का समय आ गया है. लेकिन एक महीने बीतने के बाद भी अब कोई चर्चा तक नहीं कर रहा है. क्या मैं ताले में कैद रहकर ही धराशाई हो जाऊंगा, अगर मुझे ताले से मुक्त करने की "ताकत" कांग्रेस के नेताओं में नहीं है, तो मुझे बार-बार झूठा आश्वासन क्यों देते हैं? क्यों मुझे पीड़ा पहुंचाते है. मैं जब जवानी पर था तो प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी तक के दर्शन हुए थे. मेरे ही आंचल की राजनीति से पंडित बिंदेश्वरी दुबे बिहार के मुख्यमंत्री बने थे. मेरे ही आंचल की राजनीति से स्वर्गीय राजेंद्र प्रसाद सिंह इंटक के अध्यक्ष तक बने थे, बिहार में भी मंत्री थे और झारखंड में भी मंत्री रहे.  बावजूद में दिन प्रतिदिन कमजोर होता गया. 

अब तो सहारा देने वाले नाम से ही भागने लगते है 
 
अब तो मेरी हड्डियां भी बूढी हो गई है.  मुझ में अब उतनी ताकत नहीं है कि मैं खुद की लड़ाई लड़ सकूं, मैं अब तो पूरी तरह से आश्रित हो गया हूं, अब तो उम्मीद भी छोड़ चुका हूं और जिंदगी के अंतिम दिन गिन रहा हूं, 15 साल पहले कोर्ट के आदेश से जिला परिषद ने मुझे ताले में बंद कर दिया था.  सिर्फ इतना ही नहीं, मेरे बड़े भाई इंटक कार्यालय में भी तालाबंदी हो गई. फिर भी ना मुझे ताले  से मुक्त कराया गया और ना मेरे बड़े भाई को मुक्ति मिली.  अब तो ईश्वर से यही प्रार्थना है कि मेरे आंचल में राजनीति कर ऊंचे पदों पर पहुंचे लोगों का "यूथ विंग" बुढ़ापे का सहारा बने.मुझे खुद के पैरो पर खड़ा नहीं कर सकते तो कम से कम एक लाठी तो दे दें, जिससे मैं कही और जाकर निश्चिंतता के साथ प्राण त्याग सकूं 

रिपोर्ट-धनबाद ब्यूरो