टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : GST में कमी के बाद उम्मीद थी कि रोज़मर्रा की चीज़ें सस्ती हो जाएंगी. लेकिन FMCG कंपनियों ने लोगों को कन्फ्यूज़ कर दिया है. सरसों के तेल और रिफाइंड तेल पर GST कम कर दिया गया है, लेकिन कंपनियों ने चुपके से वज़न कम कर दिया है. इसके अलावा, कंपनियों को MRP पर इतना ज़्यादा ध्यान है कि लोगों को पता ही नहीं चल पा रहा है कि दाम कम हुए हैं या नहीं. कई घरेलू और खाने-पीने के प्रोडक्ट बनाने वाली कंपनियों ने अपने पैकेट का वज़न कम कर दिया है, लेकिन दाम वही हैं. उदाहरण के लिए, पहले ऐसे सभी कंपनियों के सरसों तेल और रिफाइंड तेल का वजन 910 ग्राम रहता था. लेकिन अब कई ब्रांड ने 750 ग्राम, 800 ग्राम, 805 ग्राम, 815 और 820 ग्राम के तेल बाजार में ला दिया है. इसी तरह साबुन, नमकीन, बिस्किट, मसाले, और अन्य रोज़मर्रा के उत्पाद भी कम मात्रा में मिलने लगे हैं, लेकिन दाम में कोई कमी नहीं आई.
कपड़े धोने के साबुन और डिटर्जेंट के दाम बढ़े
इसके अलावा, कपड़े धोने के साबुन और डिटर्जेंट पर GST में कोई कटौती नहीं की गई है. लेकिन, कंपनियों ने चुपके से अपने दाम बढ़ा दिए हैं. एक ब्रांडेड कंपनी ने कपड़े धोने के डिटर्जेंट के आधा किलो के दाम 38 रुपये से बढ़ा कर 39 रुपये कर दिया है. वहीं एक किलो सर्फ का दाम 74 से बढ़ाकर 76 रुपये कर दिया है.
एक और कंपनी ने वॉश पाउडर का दाम 132 से बढ़ाकर 134 रुपये और आधा किलो का दाम 66 से बढ़ाकर 67 रुपये कर दिया है. अब बिस्किट कंपनियां भी लोगों को कन्फ्यूज कर रही हैं. एक कंपनी ने 4.50 रुपये में बिस्किट का पैक लॉन्च किया है. दुकानदार 9 रुपये में दो पीस बेचना चाहते हैं, जबकि कई कस्टमर सिर्फ एक पैक चाहते हैं. नतीजा यह है कि दुकानों पर रोज बहस होती है! दुकानदार कहते हैं, "4.5 रुपये में बिस्किट देकर 50 पैसे कैसे वापस मिलेंगे?"
रिटेलर्स का कहना है कि कंपनियां धीरे-धीरे वज़न कम करने और कीमतें बढ़ाने की स्ट्रेटेजी अपनाती हैं. JCPDA के प्रेसिडेंट संजय अखौरी ने कहा, "सरकार को इस पर कड़ी नज़र रखनी चाहिए. जिन चीज़ों को GST में छूट मिली है, उनका वज़न कम करना और जिन्हें नहीं मिली है, उनके दाम बढ़ाना जनता के साथ धोखा है. तेल के पैकेट का भी एक स्टैंडर्ड वज़न होना चाहिए. कंपनियों की यह चालाकी चुपके से लोगों की जेब पर असर डाल रही है. किचन के सामान से लेकर वॉशिंग पाउडर तक सब कुछ धीरे-धीरे महंगा होता जा रहा है, और जनता को पता ही नहीं है कि "राहत" के नाम पर उन्हें हर दिन थोड़ा-थोड़ा धोखा दिया जा रहा है.
कंपनियों की वज़न कम करके दाम वही रखने की इस चाल का आम लोगों की ज़िंदगी पर गहरा असर पड़ रहा है. जो तेल या डिटर्जेंट पहले एक परिवार के लिए एक हफ़्ते तक चलता था, वह अब सिर्फ़ दो या तीन दिन ही चल पाता है. इसका मतलब है कि बजट बिगड़ गया है. लोगों को लगता है कि चीज़ें महंगी नहीं हुई हैं, लेकिन असल में वे कम हो रही हैं. धीरे-धीरे हर महीने कुछ सौ रुपये का एक्स्ट्रा खर्च बढ़ जाता है, जिसका असर घर के दूसरे खर्चों पर पड़ता है. उन्हें दूध, सब्ज़ी या बच्चों के स्कूल के खर्चों में कटौती करनी पड़ती है." सबसे बड़ी बात यह है कि लोगों को बिना पता चले धोखा दिया जा रहा है. बोतल या पैकेजिंग वही रहती है, इसलिए किसी को वज़न कम होने का शक नहीं होता. लोग कीमत देखकर इसे खरीद लेते हैं, लेकिन असल में, कंपनियाँ बस "राहत" देने का दिखावा कर रही हैं. इस स्थिति का सीधा असर मिडिल क्लास और कम इनकम वाले परिवारों पर पड़ रहा है, जिनके लिए हर रुपया कीमती है. अगर ऐसा ही चलता रहा, तो लोगों की खरीदने की ताकत कम हो जाएगी, और रोज़मर्रा की ज़िंदगी और महंगी हो जाएगी.

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