धनबाद(DHANBAD): झारखंड अब 25 साल का हो गया. यह कालखंड छोटी अवधि नहीं कहीं जा सकती. यह अलग बात है कि झारखंड के साथ ही छत्तीसगढ़, उत्तराखंड अलग हुए थे. लेकिन छत्तीसगढ़ और उत्तराखंड की तुलना में झारखंड पीछे रह गया. 25 साल में धनबाद को क्या मिला, यह सवाल बना हुआ है. 25 वर्षों में रांची, जमशेदपुर और देवघर जैसे जिलों में प्रगति हुई है. लेकिन उसकी तुलना में धनबाद बहुत पीछे है. धनबाद के पास कोयला है, उद्योग की संभावनाएं हैं, लेकिन अगर सिंदरी खाद कारखाने की बंदी की शर्त पर ही हर्ल को देखा जाए, तो उसके अलावे धनबाद को उद्योग के रूप में कुछ मिला नहीं है. एक समय का हार्डकोक उद्योग भी अब लगभग बंदी के कगार पर है.
रिफ्रैक्टिज उद्योगों का तो नामोनिशान ही मिट गया है
रिफ्रैक्टिज उद्योगों का तो नामोनिशान ही मिट गया है. बेरोजगारी भी बड़ी समस्या है. धनबाद को एक भी ओवर ब्रिज नहीं मिला. पुराने ढांचे पर ही दबाव बढ़ रहा है. जो पुल है भी ,वह दरक रहे है. 80 के दशक में जो एयरपोर्ट मौजूद था, उसका भी नया निर्माण अभी तक नहीं कराया जा सका है. राजनीतिक दल अभी तक अपने में ही उलझे हुए है. राजनीतिक दल अगर दलगत भावना से ऊपर उठकर कुछ करने की सोचें, तो धनबाद का विकास हो सकता है. धनबाद में कोयला आधारित उद्योगों की अपार संभावनाएं है. पर्यटन स्थल भी डेवलप किये जा सकते है. लेकिन दृढ़ इच्छा शक्ति के अभाव में धनबाद स्थिर हो गया है. सड़के वही है, पुल- पुलिया वही है, वाहन जरूर सड़कों पर बढ़ गए है. नतीजा है कि सड़क पर दबाव बढ़ गया है. अतिक्रमण भी एक बड़ी समस्या है.
विश्वविद्यालय के अलावे धनबाद को मिला है क्या ?
इन 25 सालों में धनबाद को अगर कुछ मिला है, तो वह सिर्फ एक विश्वविद्यालय है. जिसके लिए भी धनबाद को लंबे समय तक संघर्ष करना पड़ा था. कई स्तर के संघर्ष के बाद धनबाद को विश्वविद्यालय मिला. धनबाद झारखंड के किसी भी जिले से कम महत्व नहीं रखता है. लेकिन इच्छा शक्ति के अभाव में धनबाद सरकार की नजरों में निचले पायदान पर होता है. झारखंड जब अलग राज्य बना था, तो धनबाद और अगल-बगल के जिलों से बाबूलाल मरांडी की सरकार में पांच मंत्री थे. यहां तक की नगर विकास मंत्री भी झरिया के विधायक बच्चा बाबू(अब स्वर्गीय ) रहे, लेकिन जमीनी स्तर पर उस समय भी धनबाद का विकास नहीं हुआ. इन 25 वर्षों में धनबाद कानून -व्यवस्था को लेकर भी कई झंझावात भी धनबाद ने झेला.
धनबाद से धीरे-धीरे उद्योगपतियों का मोह भंग होने लगा
धीरे-धीरे उद्योगपतियों का भी धनबाद से मोह भंग होने लगा. धनबाद के उद्योगपति दूसरी जगह कारोबार फैला लिए. एक तरह से कहा जाए, तो उनमें यह भावना घर कर गई है कि धनबाद अब कभी सुधर नहीं सकता है. धनबाद केवल झारखंड में ही नहीं, बल्कि पूरे देश के मानचित्र पर है. धनबाद में कीमती कोकिंग कोयला उपलब्ध है. कोल इंडिया के सबसे बड़ी इकाई बीसीसीएल धनबाद में चलती है. धनबाद जिले में ही ईसीएल की भी कुछ कोलियारिया है. बगल में बोकारो स्टील प्लांट है. बोकारो स्टील प्लांट को कोकिंग कोयला उपलब्ध कराना धनबाद की अभी भी एक बड़ी जिम्मेवारी है. ऐसी बात नहीं है कि धनबाद में संभावनाएं नहीं है, लेकिन नेताओं के विजन की कमी से धनबाद स्थिर हो गया है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो

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