TNP DESK- तो क्या अधिकारी से पॉलीटिशियन बने बिहार के आरा के आर के सिंह को साधने के लिए भोजपुरी पावर स्टार पवन सिंह को फिर से भाजपा में वापस लाया गया है. चूंकि पवन सिंह के भाजपा में लौटने का फैसला कोई रातों-रात नहीं हुआ है. केंद्रीय गृह मंत्री से भी दिल्ली में पवन सिंह मिले हैं. 

उपेंद्र कुशवाहा से भी दिल्ली में उनकी मुलाकात हुई है. इधर, 2024 के लोकसभा चुनाव में आरा से आरके सिंह चुनाव हार गए थे. उन्होंने भितरघात का भी आरोप लगाया था. पवन सिंह भी एक फैक्टर बने थे. इधर, आरके सिंह ने बगावती तेवर अख्तियार किए हुए हैं. उनका कहना है कि जो लोग भितरघात किए हैं, उनमें भाजपा और जदयू के लोग शामिल हैं और इसका पूरा विवरण उन्होंने जेपी नड्डा और संजय झा को दे दिया है.

 उन्होंने नई पार्टी बनाने के भी संकेत दिए थे. कहा जाता है कि लोकसभा के चुनाव में काराकाट से पवन सिंह के निर्दलीय खड़ा होने से शाहाबाद इलाके में एनडीए को बड़ा नुकसान हुआ. अब अगर विधानसभा चुनाव में पवन सिंह अगर भाजपा के चुनाव प्रचार में उतरते हैं, तो राजनीतिक पंडित बताते हैं कि काराकाट ,रोहतास, कैमूर और भोजपुर जिले की सीटों पर  असर पड़ सकता है. इन इलाकों में लगभग 28 विधानसभा सीट हैं. 

पवन सिंह राजपूत और युवा वोटरों को जोड़ने का काम कर सकते हैं. कहा जाता है कि पवन सिंह जैसे स्थानीय कलाकार के जुड़ने से चुनाव प्रचार में एक नया रंग दिखेगा. रैलियां और रोड शो में  भीड़ खींच सकती है .कहा तो यह भी जा रहा है कि इसका असर बिहार के सिर्फ एक इलाके की सीट पर नहीं ,बल्कि पूरे बिहार की सीटों पर पड़ सकता है. यह अलग बात है कि भोजपुरी सितारों ने पहले भी राजनीति में अपनी भूमिका निभाई है. मनोज तिवारी, रवि किशन, निरहुआ इसके उदाहरण है. पवन सिंह की एंट्री से अब लगने लगा है कि बीजेपी बहुत सोच समझकर यह कदम उठाया है. 

पवन सिंह ने खुद पहल की है या उनको इसके लिए तैयार किया गया है. इसका अभी खुलासा नहीं हुआ है. लेकिन संकेत बता रहे हैं कि पवन सिंह के तेवर थोड़े ढीले पड़े हैं. यह अलग बात है कि अगर वह विधानसभा का चुनाव लड़ते हैं और जीत भी जाते हैं, तो कम से कम केंद्र की राजनीति नहीं कर पाएंगे. भाजपा में पवन सिंह की एंट्री का एक स्याह पक्ष भी है. बीजेपी को भले ही पवन सिंह की एंट्री फायदेमंद लगती हो, लेकिन इसकी  चुनौतियां भी है. 

काराकाट एनडीए की हार के कारण पवन सिंह ही माने गए थे. उपेंद्र कुशवाहा वहां से चुनाव हार गए .यह बात भी सच है कि पवन सिंह किसी न किसी शर्तों पर ही भाजपा में शामिल हुए होंगे. पवन सिंह की एंट्री से स्थानीय नेता और कार्यकर्ता के वर्चस्व को चुनौती मिल सकती है. ऐसे में अंदरूनी खींचतान की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. इलाके के छोटे नेता और कार्यकर्ता पवन सिंह को कितना स्वीकार करेंगे, यह देखने वाली बात होगी. वैसे सोशल मीडिया पर बिहार भाजपा के कई नेता पवन सिंह के शामिल होने का स्वागत किया है. यह बात भी सच है कि बिहार में भाजपा के बड़े नेताओं पर लगातार प्रशांत किशोर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे हैं. 

उनकी कुंडली खोल रहे हैं. यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि लालू प्रसाद का कार्यकाल तो जंगल राज के लिए बदनाम रहा, लेकिन बिहार में भाजपा और जदयू के नेता कंबल ओढ़कर घी पी रहे हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बिहार दौरे के बाद पवन सिंह की भाजपा में  एंट्री को लेकर कई तरह के कयास भी लगाए जा रहे हैं .यह अलग बात है कि अभी टिकटों का बंटवारा नहीं हुआ है .आरके सिंह  बगावती तेवर अख्तियार किए हुए हैं. हो सकता है कि पवन सिंह की एंट्री के बाद उनके तेवर बदले. और भाजपा की यह चाल सही  साबित हो जाए.

 अब देखना है कि भाजपा का अगला कदम क्या हो सकता है? सीट बंटवारे को लेकर भी एनडीए गठबंधन में खींचतान चल रही है.

रिपोर्ट: धनबाद ब्यूरो