धनबाद (DHANBAD) : बिहार में "टाइगर" अभी जिंदा है. यह ऐलान 2025 में सही साबित हो रहा है. बिहार में बहार है,नीतीशे से कुमार है. आखिर कुछ तो खास है, इस पॉलिटिशियन में कि 20 साल से बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज है. कोई हिला नहीं पा रहा है. एक बार फिर नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनने की दिशा में अग्रसर है. एनडीए को प्रचंड बहुमत का रुझान दिख रहा है. नीतीश कुमार की राजनीतिक जीवन पर अगर नजर डालें तो इसकी शुरुआत 1977 में हुई थी. इस समय बिहार में जयप्रकाश नारायण का आंदोलन शिखर पर था. 1977 में नीतीश कुमार पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा लेकिन वह जीत नहीं पाए. हरनौत में वह भोला प्रसाद सिंह से हार गए थे.
1985 में नीतीश कुमार पहली बार विधायक बने
1985 में नीतीश कुमार बिहार विधानसभा के सदस्य चुने गए. इसके बाद 1987 में बिहार के युवा लोक दल के अध्यक्ष बने. 1989 में नीतीश कुमार को जनता दल का महासचिव बना दिया गया. 1989 में लोकसभा के लिए चुने गए. यह उनके लोकसभा का पहला कार्यकाल था. इसके बाद साल 1990 में नीतीश कुमार अप्रैल से नवंबर तक केंद्रीय कृषि एवं सहकारी विभाग के मंत्री रहे. साल 1991 में दसवीं लोकसभा का चुनाव हुआ. नीतीश कुमार एक बार फिर संसद में पहुंचे. फिर 1996 में नीतीश कुमार 11वीं लोकसभा के लिए चुने गए. 1998 में फिर वह 12वीं लोकसभा के लिए चुन लिए गए. फिर वह लगभग 1 साल के लिए केंद्रीय रेल मंत्री भी रहे. 1999 में नीतीश कुमार फिर लोकसभा का चुनाव जीता. साल 2000 में नीतीश कुमार बिहार की राजनीति में लौट आए और पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने. उनका कार्यकाल 3 मार्च 2000 से 10 मार्च 2000 तक रहा. साल 2000 में नीतीश कुमार एक बार फिर केंद्रीय कृषि मंत्री बने.
साल 2001 से 2004 तक नीतीश कुमार केंद्रीय रेल मंत्री रहे
साल 2001 से 2004 तक नीतीश कुमार केंद्रीय रेल मंत्री रहे. 2004 में नीतीश कुमार फिर लोकसभा के लिए चुने गए. साल 2005 में नीतीश कुमार दूसरी बार फिर बिहार के मुख्यमंत्री बने. फिर एक नाटकीय घटनाक्रम हुआ. 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की हुई हार का जिम्मा लेते हुए उन्होंने इस्तीफा दे दिया था और जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री पद का कार्यभार सौप दिया था. लेकिन जीतन राम मांझी एक साल से अधिक समय तक मुख्यमंत्री नहीं रह सके. 22 फरवरी 2015 को उन्होंने एक बार फिर बिहार की कमान संभाली. 2005 से लेकर लेकर 2025 तक की बात की जाए, तो नीतीश कुमार थोड़े दिनों के को छोड़ दिया जाए, तो बिहार के मुख्यमंत्री बने रहे.
2020 के चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी को केवल 45 सीटें मिली
यह अलग बात है कि बिहार में गठबंधन बदलता रहा, लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही रहे. 2020 में नीतीश कुमार को करारा झटका लगा, जब उनकी पार्टी जदयू को केवल 45 सीट पर संतोष करना पड़ा. महागठबंधन में शामिल सभी दलों को मिलाकर 110 सीट आ रही थी, जो बहुमत से कम थी. 125 सीट जीतकर एनडीए की एक बार फिर सरकार बनी. भाजपा से कम सीट होने के बावजूद नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बने. इधर, 2022 के आते-आते भाजपा के कई नेताओं ने नीतीश कुमार के खिलाफ बयान बाजी शुरू कर दी. इससे नीतीश कुमार को लगा कि भाजपा जदयू को कमजोर करने की कोशिश कर रही है. आर सी पी सिन्हा को भाजपा ने केंद्र में मंत्री बना दिया. फिर जदयू ने आर सी पी सिंह को पार्टी से बाहर कर दिया.
नीतीश कुमार और भाजपा में क्यों शुरू हुई कड़वाहट
नीतीश कुमार को लगा कि भाजपा पार्टी को तोड़ने की कोशिश कर रही है. इस सियासी उठा पटक के बीच नीतीश कुमार ने एक बार फिर पाला बदला और 2022 में महागठबंधन के साथ आ गए. नीतीश कुमार ने इस्तीफा दिया और महागठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री के तौर पर फिर शपथ ली. हालांकि यह साथ ज्यादा दिन तक नहीं चला और जनवरी 2024 में फिर नीतीश कुमार का मन बदला और उन्होंने एनडीए में वापसी कर ली. उसके बाद तो 2025 का चुनाव आ गया और 2025 में आज वोटो की गिनती चल रही है. रुझान एनडीए के पक्ष में जा रहा है.
रिपोर्ट-धनबाद ब्यूरो

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