दुमका(DUMKA) -  दीपावली का इंतजार वैसे तो सभी को रहता है, लेकिन एक खास समुदाय के लोगों को इसका इंतजार बड़ी बेसब्री से रहता है. वह है कुम्हार. महीनों दीपक बनाने के बाद वह समय आता है. जब दीए का बाजार सजता है. इस वर्ष की दीपावली को भी लेकर उपराजधानी दुमका के कुम्हारों ने दिन रात मेहनत कर दीए बनाए हैं. पिछले वर्ष कोरोना ने कुंभकारों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया था. लेकिन इस वर्ष इन्हें उम्मीद है कि दीए के सहारे इनके घर भी लक्ष्मी आएंगी और परिवार के सदस्य मिलकर दीपावली मनाएंगे.

भू-माफिया का डर बना परेशानी

उम्मीद के साथ कुम्हार माटी के दीए तो बनाते हैं लेकिन इस व्यवसाय में इन्हें काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. दरअसल दुमका के कुम्हार रसिकपुर स्थित गैरमजरूआ जमीन से दीए के लिए उपयुक्त मिट्टी को लाते हैं, लेकिन अगर इनकी माने तो उस जमीन पर भूमाफिया और दबंगों की नजर है. अब उन्हें वहां से मिट्टी उठाए जाने से रोका जाता है. इस कारण अब उन्हें मिट्टी खरीदनी पड़ती है.

बिक्री के लिए उपयुक्त स्थल का अभाव

इन कुंभकारों की परेशानी यहीं समाप्त नहीं होती है. किसी तरह ये मिट्टी लाकर दीया बनाते भी हैं, लेकिन दीपावली के समय जब बाजार में लेकर बेचने पहुंचते हैं तो इनके लिए कोई उपयुक्त स्थल नहीं है. यह सड़क किनारे जहां भी दीया का बाजार सजाते हैं, वहीं सामने के दुकानदारों द्वारा इन्हें बाजार सजाने से रोक दिया जाता है. तभी तो यह मांग करते हैं कि जिस तरह पटाखे की बिक्री के लिए जिला प्रशासन ने यज्ञ मैदान को आवंटित कर दिया है उसी तरह उनके लिए भी स्थल निर्धारित किया जाए. जहां सभी कुंभकार बैठकर अपना बाजार सजा सके और ग्राहक एक जगह से ही खरीदारी कर सकें.

बहरहाल, चाइनीज लाइट की चकाचौंध ने चाक की रफ्तार भले धीमी कर दी हो, लेकिन चाक पर अब भी दीए बन रहे और उम्मीदों की लौ भी कायम है. कुम्हारों को उम्मीद है कि इस बार तमाम परेशानियों के बाद बाजार में आए दीए बिकेंगे और परिवार के लिए खुशियों की रोशनी वे भी बटोर सकेंगे. 

रिपोर्ट : पंचम झा, दुमका