रांची(RANCHI): झारखंड जनाधिकार महासभा के एक प्रतिनिधिमंडल ने सांसद गीता कोड़ा से मुलाकात कर आदिवासियों पर हो रही हिंसा पर लगाम लगाने की अपील की है. अभी कुछ दिन पहले ही झारखंड जनाधिकार महासभा के द्वारा इस संदर्भ में एक सार्वजनिक अपील भी जारी किया गया था.
महासभा का दावा है कि सुरक्षा बलों और माओवादियों की टकराहट में निर्दोष आदिवासियों को दोनों ओर से निशाना बनाया जा रहा है. सुरक्षाबलों के द्वारा गावों की दिशा में मोर्टार दागे जा रहे हैं, बगैर ग्राम सभी की अनुमति के आदिवासी बहुल इलाकों में सुरक्षा बलों के कैंप स्थापित जा रहे हैं, यह पांचवीं अनुसूची का उल्लंघन है. झारखंड में पेसा कानून की नियमावलियों का निर्माण नहीं होने कारण आदिवासी समाज को अपने हक-हुकूक से महरुम होना पड़ रहा है.

आदिवासी बहुल इलाकों में बढ़ रही है बेचैनी

इसके कारण आदिवासी बहुल इलाकों में बेचैनी बढ़ रह रही है. गैर-आदिवासी और बाहरी सुरक्षा बल की उपस्थिति से आदिवासी समाज में तनाव व्याप्त है. आदिवासी समाज अपनी परंपरा के अनुसार पूजा-पाठ भी नहीं कर पा रहा है. साथ ही इसका विरोध करने वालों को माओवादियों के समर्थक के रुप में देखा जा रहा है. हालत यह है कि सुरक्षा बलों की उपस्थिति के कारण ग्राम सभा का आयोजन भी नहीं किया जा रहा है.

झारखंड में लागू नहीं है पेसा कानून  

साफ है कि आदिवासियों की मुख्य चिंता जल, जगंल और जमीन पर अपने अधिकार को लेकर है, उनकी मांग ग्राम सभा, पांचवी अनुसूची और पेसा कानून का अनुपालन की है. लेकिन सवाल यह है कि जिस पेसा कानून का अनुपालन की मांग आदिवासी समूहों के द्वारा की जा रही है, उसका तो कोई अस्तित्व ही झारखंड में नहीं है. पांचवी अनुसूची का क्षेत्र होने के बावजूद झारखंड में पेसा कानून को लेकर अब तक कोई नियमावली का निर्माण नहीं किया गया है. जबकि पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में इसका निर्माण किया जा चुका है. लेकिन अब तक  हेमंत सरकार के द्वारा इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया है.

क्या है पेसा कानून 

1986 में पंचायती राज व्यवस्था में अनुसूचित क्षेत्रों का विस्तार करते हुए पेसा कानून की शुरुआत हुई. पंचायत एक्सटेंशन टू शेड्यूल्ड एरियाज एक्ट (Panchayat Extension to Scheduled Areas Act).  आसान भाषा में समझें तो इस कानून की तीन प्रमुख बातें हैं- जल, जंगल और जमीन का अधिकार. इस कानून के निर्माण के बाद आदिवासी समाज को उनके जल जंगल और जमीन पर उसका अधिकार मिल सकेगा. ग्राम सभाओं का सशक्तीकरण होगा. आदिवासी समाज अपने जल जंगल और जमीन के बारे में निर्णय लेने को स्वतंत्र होगा.

पेसा कानून की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए Adivasi activist forum for indigenous rights (AAFIRs) के संयोजक फिलिप कुजूर बताते हैं कि आदिवासी महासभा के द्वारा सभी समस्यायों का समाधान पेसा कानून में है, इस कानून को लागू होते ही आदिवासी समाज को उसके जल जंगल और जमीन पर उसका हक मिल जायेगा, वह अपने हिसाब से लैंड यूज को बदल सकेगा, ग्राम सभा का सशक्तीकरण होगा, तब ग्राम सभा की अनुमति के बाद ही किसी निर्माण कार्य को मंजरी दी जायेगी. साफ है कि आदिवासी समाज के एक बड़े हिस्से में पेसा कानून की मांग उठ रही है. मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे पड़ोसी राज्यों में पेसा कानून का निर्माण होने के बाद इसकी मांग और भी बढ़ रही है.

रिपोर्ट: देवेन्द्र कुमार