धनबाद(DHANBAD): झरिया के लिए शुक्रवार की रात काली रात थी. गनीमत रही कि किसी की जान नहीं गई. केवल 407 वाहन जमींदोज हो गया. यह घटना शुक्रवार की रात लगभग 11 बजे की है. बड़े आकार का गोफ बन गया है, यह घटना झरिया के इंदिरा चौक स्थित एक मोटर पार्ट्स दुकान के समीप की है. लोग अभी कुछ समझ पाते, तब तक जोरदार आवाज के साथ जमीन धंस गई. दुकानदार अपनी दुकान बंद कर घर गए हुए थे, तभी यह घटना हुई. उनकी दुकान लोहे की चादर की बनी हुई है. 2017 में यहां से सिर्फ 50 गज की दूरी पर पिता -पुत्र जमीनदोज हो गए थे. यह अलग बात है कि प्रबंधन ने इस इलाके को असुरक्षित क्षेत्र घोषित कर दिया था.
इंदिरा चौक के पास 24 अप्रैल 2017 को हुई थी बड़ी घटना
इंदिरा चौक के पास 24 अप्रैल 2017 की सुबह करीब 8:00 बजे पिता और पुत्र एक साथ जमीन में समा गए थे. पहले पुत्र जमीन के अंदर समाने लगा और वह बचाव बचाव की आवाज दे रहा था. जैसे ही पिता बेटे को बचाने के लिए गए, वह भी जमीनदोज हो गए. झरिया की आग अब भयानक रूप ले ली है. मास्टर प्लान के अलावा संशोधित मास्टर प्लान की मंजूरी मिली है. शुक्रवार को ही झारखंड की चीफ सेक्रेटरी ने संशोधित मास्टर प्लान की धनबाद में समीक्षा की और देर रात को घटना घट गई. अब सवाल फिर खड़ा हुआ है कि आखिर धनबाद की झरिया कितनी सुरक्षित है.
शनिवार को घटनास्थल पर अधिकारियों और नेताओं का दौरा जारी है
शनिवार को घटनास्थल पर अधिकारियों और नेताओं का दौरा जारी है. सभी लोग एक दूसरे के ऊपर दोषारोपण कर रहे है. कोई कह रहा है कि की 2017 में हुई घटना के बाद अगर सही से भराई की गई होती, तो घटना की पुनरावृत्ति नहीं होती. 106 साल से इंतजार करते-करते झरिया की सुलगती भूमिगत आग,अब "धधकने" लगी है.1919 में झरिया के भौरा में भूमिगत आग का पता चला था.यह भूमिगत आग अब "कातिल" हो गई है. वैसे पिछले कई सालों से वह संकेत दे रही है कि हालात बिगड़ने वाले हैं. लेकिन जमीन पर ठोस काम करने के बजाए हवाबाजी होती रही. नतीजा सामने है. एनडीआरएफ की टीम को भी झरिया आना पड़ा था. झरिया के घनुडीह का रहने वाला परमेश्वर चौहान आग से फटी जमीन के भीतर गिर गया था. कड़ी मेहनत के बाद 210 डिग्री तापमान के बीच से टीम ने अवशेष को बाहर निकाला था.
झरिया की यह आग 1995 से ही हालत बिगड़ने का संकेत दे रही
झरिया की यह आग 1995 से ही संकेत दे रही है कि अब उसकी अनदेखी खतरनाक होगी. 1995 में झरिया चौथाई कुल्ही में पानी भरने जाने के दौरान युवती जमींदोज हो गई थी. 24 मई 2017 को इंदिरा चौक के पास बबलू खान और उसका बेटा रहीम जमीन में समा गए थे. इस घटना ने भी रांची से लेकर दिल्ली तक शोर मचाया ,लेकिन परिणाम निकला शून्य बटा सन्नाटा. 2006 में शिमला बहाल में खाना खा रही महिला जमीन में समा गई थी. 2020 में इंडस्ट्रीज कोलियरी में शौच के लिए जा रही महिला जमींदोज हो गई थी. फिर इधर 28 जुलाई 2023 को घनुड़ीह का रहने वाला परमेश्वर चौहान गोफ में चला गया .पहले तो बीसीसीएल प्रबंधन घटना से इंकार करता रहा लेकिन जब मांस जलने की दुर्गंध बाहर आने लगी तो झरिया सीओ की पहल पर NDRF की टीम को बुलाया गया.
कुछ दिन पहले 210 डिग्री तापमान से निकाला गया था एक शव
टीम ने कड़ी मेहनत कर 210 डिग्री तापमान के बीच से परमेश्वर चौहान के शव का अवशेष निकाला. शायद यह धनबाद कोयलांचल में गोफ में गिरे या समाए लोगों के शव का अवशेष निकालने का पहला मामला था.घटना के पहले सारे लोग पल्ला झाड़ते रहते है.घटना होने के बाद राजनीति भी शुरू हो जाती है .लोग अपने अपने ढंग से खुद का टीआरपी बढ़ाने के लिए आंदोलन से लेकर सब कुछ करते हैं. लेकिन अग्नि प्रभावित क्षेत्र से लोगों का कैसे पुनर्वास किया जाए, आग बुझाने के लिए क्या जरूरी उपाय होने चाहिए, इसको शुरू कराने के लिए कोई दबाव नहीं बनाता .यही वजह है कि झरिया की आग 106 साल के बाद अब सुलग नहीं ,भभक रही है.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो
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