रांची(RANCHI): विजयदशमी के दौरान रांची के दुर्गा बाड़ी में बंगाली समुदाय के महिलाओं के द्वारा सिंदूर खेला की परंपरा पिछले 140 वर्षों से निभाया जाता रहा है. लगातार इस तरह का भव्य कार्यक्रम का आयोजन रांची के दुर्गा बाड़ी में होता रहा है. आज के दिन मां दुर्गा की विदाई से पहले उन्हें सिंदूर और अलता लगाकर विदाई दी जाती है. इसके बाद बंगाली समुदाय की महिलाएं विजयादशमी के दौरान एक दूसरे को सिंदूर लगाकर बधाई देती हैं. नवरात्रि का त्योहार देश भर में धूमधाम से मनाया जा रहा है. इस दौरान 9 दिनों तक मां शक्ति की आराधना की जाती है और लोग 9 दिनों का उपवास रखते हैं. इसके बाद शारदीय नवरात्रि के समय पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजन का आयोजन किया जाता है. 

पश्चिम बंगाल में मां दुर्गा मायके से विदा होती हैं, तो सिंदूर से भरी जाती है मांग 

पश्चिम बंगाल में भी हर जगह भव्य पंडाल तैयार किए जाते हैं. इसके बाद जिस दिन मां दुर्गा को प्रतिमा विसर्जन के लिए ले जाया जाता है, उस दिन बंगाल में सिंदूर खेला या सिंदूर उत्सव मनाया जाता है. इस दिन विजयदशमी भी आयोजित की जाती है. इस दिन सभी सुहागिन महिलाएं मां दुर्गा को पान के पत्ते से सिंदूर चढ़ाती हैं. साथ ही मां दुर्गा को पान और मिठाई भी खिलाई जाती है. इसके बाद वो एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं और जश्न मनाती हैं. मान्यता है कि जब मां दुर्गा मायके से विदा होती हैं, तो सिंदूर से उनकी मांग भरी जाती है. इसके साथ ही कई महिलाओं के चेहरे पर भी सिंदूर लगाया जाता है. इसके ज़रिए महिलाएं कामना करती हैं कि एक-दूसरे की शादीशुदा ज़िंदगी सुखद और सौभाग्यशाली रहे. विवाहित महिलाओं के लिए इस परंपरा का विशेष महत्व है.

आइए जानते हैं सिंदूर खेला कब खेलते हैं और क्या है इसका महत्व

दुर्गा पूजा का आरंभ नवरात्रि की षष्ठी तिथि से होता है. बंगाली मान्यताओं के अनुसार देवी दुर्गा अपने पुत्र गणेश और कार्तिकेय के साथ धरती पर अपने मायके आती हैं. इनके साथ मां सरस्वती और मां लक्ष्मी भी पधारती है. पंडालों में भव्यता से पांच दिन तक देवी की उपासना करते हैं फिर दशमी को सिंदूर खेला यानी कि मां को सिंदूर अर्पित कर विदा किया जाता है.

सिंदूर खेला का महत्व 

मां दुर्गा को पान के पत्ते से सुहागिनें सिंदूर लगाती हैं और अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं. इसके बाद महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर धूमधाम से ये परंपरा निभाती हैं. रस्म के अनुसार मां की मांग में सिंदूर लगाकर और उन्हें मिठाई खिलाकर मायके से विदा किया जाता है. सुखद दांपत्य जीवन की कामना के साथ ये अनुष्ठान किया जाता है.

विजयादशमी की खास परंपरा

सिंदूर खेला की रस्म 450 साल से चली आ रही है. ये परंपरा पश्चिम बंगाल से शुरू हुई थी. नवरात्रि के आखिरी दिन बंगाली समुदाय के लोग धुनुची नृत्य कर मां को प्रसन्न करते हैं. कहा जाता है कि लगभग 450 साल पहले बंगाल में मां दुर्गा के विसर्जन से पहले सिंदूर खेला का उत्सव मनाया गया था. तभी से लोगों में इस रस्म को लेकर काफी मान्यता है और हर साल धूमधाम इसे मनाया जाता है