रांची(RANCHI): झारखंड में मंईयां सम्मान योजना को लेकर एक ओर बेटी बहन परेशान है, किसे पैसा मिलेगा और किसे नहीं यह अब तक साफ नहीं हुआ हुआ है. तो दूसरी ओर विपक्ष भी इसे मुद्दा बना कर सवाल पूछ रहा है. योजना की किस्त तो छोड़िए अब डॉक्टर और कर्मचारी को वेतन नहीं मिलने की बात भी शुरू हो गई है. इस खबर में सबसे पहले मंईयां की परेशानी की बात करेंगे.
वैसे तो झारखंड में अन्य सभी योजनाओं को मंईयां सम्मान पीछे छोड़ रही है. देश की एकलौती इतनी बड़ी योजना बन गई. जिसमें 50 लाख लाभार्थी को सीधे उनके खाते में हर माह दो हजार पाँच सौ रुपये सरकार दे रही है. हालांकि इस योजना में कई त्रुटि भी है. जिस वजह से समय पर पैसा खाते में नहीं पहुँच पा रहा है. योजना की सबसे ज़्यादा चर्चा हो रही है. झारखंड में पक्ष और विपक्ष से लेकर जनता सभी इस योजना पर अपना पक्ष रख रहे है.
अब मंईयां योजना की मई महीने की किस्त को लेकर बेसब्री से महिलायें इंतज़ार करतीं है कि कब विभाग सभी के बैंक खाता में पैसा भेजेगी. कब सरकार के तरफ़ से सहायक धनराशि उन्हें मिलेगी और कब वो अपना काम करेंगी. मई महीने की किस्त को लेकर जानकारी निकल कर सामने आई है कि इस माह के अंत में सभी को एक साथ पैसा भेजा जाएगा. इसकी तैयारी भी विभाग शुरू कर चुका है.
संभवना है कि योजना की किस्त 25 जून से 30 जून के बीच में 50 लाख के करीब बेटी बहन को भेज दिया जाएगा. इसमें सबसे ज्यादा लाभुकों की संख्या गिरीडीह में है. इसके बाद पलामू –रांची समेत अन्य जिला है. इस बार भी पिछले महीने की तरह योजना की किस्त भेजी जाएगी. रांची से शुरुआत की जाएगी. जल्द ही बाल विकास एवं सामाजिक सुरक्षा विभाग जल्द ही इसकी आधिकारिक जानकारी भी साझा करेगा.
इस बीच अब योजना की किस्त में देर और अन्य त्रुटि पर भाजपा ने सवाल उठाया है. भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष भानु प्रताप शाही अपने सोशल मीडिया पर लिखा है कि वाह हेमंत सरकार मंईयां को समय पर पैसा तो नहीं मिल रहा है लेकिन इस योजना के वजह से झारखंड के डॉक्टर और अन्य कर्मचारी के भी पैसे रोक दिए गए है. किसी को वेतन नहीं दिया जा रहा है. आखिर अपनी जिद के आगे क्या झारखंड को गर्त में धकेलना चाहते है. आखिर ना मंईयां को पैसा दिया जा रहा है और ना ही कोई कर्मचारी को तो झारखंड में चल क्या रहा है.
फिलहाल अब देखना होगा की इंतजार कब मंईयां का पूरा होता है. साथ ही जो आरोप भानु प्रताप शाही ने लागया है यह कितना सही है. क्योंकि कोई भी सरकारी कर्मचारी वेतन के मुद्दे पर खुल कर बोलने को तैयार नहीं है.
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