धनबाद (DHANBAD) : झरिया के मोहरी बांध में आग उगलता गोफ ना जाने और कितनी जानें लेगा और कब प्रशासन की आंखें खुलेंगी. लगातार लोग इसके शिकार होते जा रहे हैं. शुक्रवार को भी एक बच्चा इस आग उगलते गोफ में गिर गया, जिसके बाद उसकी हालत गंभीर बनी हुई है. इस बच्चे का इलाज तो चल रहा है लेकिन यह घटना बहुत सारे सवाल खड़ी करती है. जानकारी के अनुसार अगस्त 2017 में भी झरिया मोहरीबांध में लगभग 500 मीटर के दायरे में जमीन धंस गई थी, जिसमें दो लोग दब गए थे. उसके बाद भी न इलाके की घेराबंदी हुई और ना वहां रह रहे लोगों का पुनर्वास किया गया.
दो दर्जन से अधिक परिवार रह रहे हैं
अभी भी दो दर्जन से अधिक परिवार वहां रह रहे हैं और कल की घटना इस बात का सबूत है कि किसी भी इलाके में कभी भी गोफ बन सकता है और जिंदगी जमीन में समा सकती है. बताने वाले बताते हैं कि झरिया इलाके में घूमने और जान गंवाने वालों की लंबी फेहरिस्त है.
फुलारीबाग के इंदिरा चौक पर गोफ में समा गए थे पिता-पुत्र
मई 2017 में झरिया के इंदिरा चौक के समीप पिता-पुत्र भी जमींदोज हो गए थे. फुलारीबाग के इंदिरा चौक पर 10 मीटर का गोफ बन गया था, जिसमें डेंटिंग मिस्त्री बबलू खान और उनके बेटे रहीम खान जिंदा धरती में समा गए थे. रेस्क्यू टीम आई जरूर, लेकिन गोफ का तापमान 85 डिग्री सेंटीग्रेड नापने के बाद बचाव कार्य करने से हाथ खड़े कर दिए और इस प्रकार दोनों की लाश धरती में समा गई. इसके अलावा 2020 में झरिया के राजापुर कोलियरी में शौच के लिए जा रहे एक युवक भूमिगत आग की चपेट में आ गया और झुलस गया था. इसके बाद 2020 में ही झरिया के बस्ताकोला इंडस्ट्री कोलियरी के समीप रहने वाली एक महिला शौच के लिए जा रही थी कि गोफ में समा गई.
चल रहा है पुनर्वास पुनर्वास का खेल
इस तरह की घटनाएं लगातार हो रही हैं और कोयलांचल में जेआरडीए द्वारा पुनर्वास-पुनर्वास का खेल खेला जा रहा है. आप को बता दें कि ब्रिटिश काल में 1919 में झरिया के भौरा में ही पहली बार भूमिगत आग का पता चला था. उसके बाद से आग खतरनाक होती जा रही है. आग बुझाने की कई कोशिशें भी हुई. लेकिन, ‘मर्ज बढ़ता गया, जैसे-जैसे दवा की' वाली हालत बन गई है. पुनर्वास का काम हो तो रहा है लेकिन, इसकी गति बहुत धीमी है. इधर पुनर्वास के मुद्दे पर जिला प्रशासन, बीसीसीएल और झरिया पुनर्वास एवं विकास प्राधिकार (JRDA) ख़ामोश है. बड़ा सवाल यह है कि आखिर यह भूमिगत आग कितनी जिंदगियां लेकर बुझेगी?
रिपोर्ट : अभिषेक कुमार सिंह, ब्यूरो हेड (धनबाद)
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