धनबाद (DHANBAD) : "हम कोयले का उत्पादक और हम ही कोयले के लिए चिरौरी करें", ऐसा होना नहीं चाहिए.  लेकिन धनबाद के उद्योगों के साथ पिछले कई सालों से ऐसा ही हो रहा है. कोयले की आस में एकमात्र बचे  हार्ड उद्योग पूरी तरह से बंदी के कगार पर है. इस दौरान कई कोयला मंत्री आए और गए, कोल इंडिया के कई अध्यक्ष भी बदले, बीसीसीएल के सीएमडी भी आते और जाते रहे. लेकिन किसी ने भी इस बड़ी समस्या की ओर ध्यान नहीं दिया.  धनबाद में सांसद भी अब बदल गए हैं, बावजूद हालात जस के तस  बने हुए है.  

एक बार फिर उद्योग मालिकों ने खींचा सरकार का ध्यान 

हार्ड कोक उद्योग की संस्था इंडस्ट्रीज एंड कॉमर्स एसोसिएशन ने अपने वार्षिक आमसभा में इस मुद्दे को एक बार फिर जोरदार ढंग से उठाया है. हालांकि पहले भी उठाते रहा है, लेकिन इस बार कोयला वितरण नीति को निशाने पर लिया है.  संगठन के अध्यक्ष बी एन सिंह ने का कहना है कि कोयला वितरण में सौतेला व्यवहार की वजह से हार्ड कोके उद्योग लगातार चुनौतियों का सामना कर रहा है. कोयला मंत्रालय, कोल इंडिया, बीसीसीएल से कई बार "हथ जोड़ी" की गई, लेकिन कोई पहल नहीं हुई है. हार्ड कोक उद्योग को जरूरत  भर कोयला नहीं मिल रहा है. अब एक बार फिर हार्डकोक उद्यमी फ्यूल सप्लाई एग्रीमेंट की लड़ाई लड़ेंगे.  

पढ़िए-क्यों उठ रही कोयला वितरण नीति में संशोधन की मांग 

सबसे बड़ी बात बीएन  सिंह ने यह कहीं कि  कोयला वितरण नीति में अगर संशोधन कर दिया जाए, तो कोयला चोरी और कोयले का अवैध खनन काफी हद तक खत्म हो जाएगा. वितरण नीति की कमियों की वजह से ही धनबाद में कोयला चोरी को बढ़ावा मिल रहा है.  उन्होंने कहा कि 2008 तक हार्डकोक उद्योगों को कोटा के आधार पर कोयला मिलता था. 2008 के बाद फ्यूल  सप्लाई एग्रीमेंट लागू किया गया, जो 2018 तक चला. अब लिंकेज ई ऑक्शन शुरू किया गया है. जो हार्ड कोक उद्योगों के खिलाफ है. नीलामी में भाग लेने के लिए उन्हें मजबूर किया गया है. यह उद्योग के हित में नहीं है.  हार्ड कोक  उद्योग आत्मनिर्भर भारत की तर्ज पर है.  हार्डकोक उद्योगों को कैसे जरूरत भर कोयला मिले, कैसे उद्योग चले, इस पर कभी मंथन नहीं किया गया.  बीसीसीएल से पावर प्लांट को जो कोकिंग कोल   दिया जा रहा है.  यह कोकिंग कोल्  का बिल्कुल दुरुपयोग है.  

धनबाद में कोयला आधारित उद्योग एक-एक कर बंद होते चले गए

बता दें कि धनबाद में कोयला आधारित उद्योग एक-एक कर बंद होते चले गए. सिर्फ उंगली पर गिनने लायक हार्ड कोक उद्योग ही बचे हुए है. इन उद्योगों में लाखों लोग रोजगार पा रहे है.  कम से कम हार्ड कोक  उद्यमियों के लिए नहीं भी ,तो  बेरोजगारी को ध्यान में रखकर भी उद्योगों को मदद मिलनी चाहिए. आश्चर्य की बात है कि उद्योगों की परेशानी सब कोई जानते और समझते हैं, लेकिन कभी भी धनबाद के राजनेता इस गंभीर मुद्दे को लेकर एक मंच पर नहीं आये.  पूर्व विधायक (अब स्वर्गीय) गुरदास चटर्जी कहा करते थे कि अगर धनबाद के सभी विधायक और सांसद एक मंच पर आकर किसी भी समस्या के लिए सक्रिय हो जाएं, तो कोई वजह नहीं है कि सुविधा नहीं मिले. लेकिन इसके लिए विधायक और सांसदों को राजनीति से ऊपर उठना होगा.  उन्हें धनबाद के लिए सोचना होगा. 

धनबाद के साथ हमेशा छल-प्रपंच किया जाता रहा
 
धनबाद के साथ हमेशा छल- प्रपंच किया जाता रहा है.  चाहे एयरपोर्ट का मामला हो, एम्स का मामला हो,ट्रेन का मामला हो  या और अन्य मुद्दे, राज्य सरकार अगर पिछले 5 सालों में धनबाद से मिले राजस्व की गणना करे , तो उसे पता चल जाएगा कि धनबाद की आर्थिक हैसियत क्या है? धनबाद की आर्थिक हैसियत बिगड़ने से न केवल कोयला उत्पादक कंपनी, बल्कि राज्य सरकार की सेहत पर भी असर पड़ सकता है. बीसीसीएल में नए सीएमडी  ने कार्यभार ग्रहण कर लिया है.  कुछ दिनों बाद कोल्  इंडिया के अध्यक्ष भी बदल जाएंगे.  ऐसे में धनबाद के इस उद्योग पर उनका ध्यान कैसे जाए, इसकी जवाब देही यहां के जनप्रतिनिधियों की होनी चाहिए.  देखना है आगे आगे होता है क्या?

रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो