धनबाद (DHANBAD) : जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से उपजे नीतीश कुमार का जलवा बिहार में 20 सालों से कायम है. फिर वह एक बार मुख्यमंत्री बनने की राह पर चल पड़े है. जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के बाद जब 1977 में विधानसभा के चुनाव हुए, तो जनता पार्टी ने नीतीश कुमार को हरनौत विधानसभा सीट से उम्मीदवार बनाया. लेकिन निर्दल भोला प्रसाद सिंह के हाथों नीतीश कुमार पराजित हो गए. साल 2000 में जब बिहार का विभाजन कर झारखंड बना, उसके बाद 2005 में पहली बार बिहार विधानसभा का चुनाव हुआ.
झारखंड़ अलग होने के बाद पहली बार बिहार में कब हुआ चुनाव
जानकार बताते हैं कि उस समय किसी दल को बहुमत नहीं मिला. चुनाव के पहले सत्ता में रहे राष्ट्रीय जनता दल को केवल 75 सीटों से संतोष करना पड़ा. नीतीश कुमार की जदयू को 55 सीटें मिली. भाजपा को 37 और कांग्रेस को 10 सीट ही हाथ लगी थी. रामविलास पासवान की लोजपा को 29 सीटों पर जीत मिली. एनडीए में जदयू और भाजपा सबसे बड़ा गठबंधन था. लेकिन उसे भी कम सीट मिली. जादुई आंकड़े को गठबंधन नहीं छू पा रहा था. फिर तो रामविलास पासवान की लोचपा "किंग मेकर" की भूमिका में आ गई. कई हफ्तों की जोड़-तोड़ की कोशिश के बाद भी बात नहीं बनी. बिहार में राष्ट्रपति शासन लग गया.
बिहार में एक साल में कब दुबारा चुनाव हुआ और क्यों हुआ
बिहार के लिए शायद यह पहला मौका था, जब एक ही साल में दो बार चुनाव कराना पड़ा. अक्टूबर 2005 में एक बार फिर चुनाव हुए और एनडीए सरकार में नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने. इस चुनाव में सबसे अधिक 88 सीट जीतकर जदयू सबसे बड़ी पार्टी बनी. भाजपा को 55 सीट मिले. राजद को 54 और कांग्रेस 9 सीटों पर सिमट गई. रामविलास की लोजपा को 10 सीट मिली थी. बाकी सीट अन्य के खाते में गई थी. जीत के बाद भाजपा और जदयू ने मिलकर सरकार बनाई. दोनों को कुल 143 सीट मिली थी. फिर 2010 का विधानसभा चुनाव आ गया. 2010 में भी एनडीए को जीत मिली, तो नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने. 115 सीट जीतकर जदयू सबसे बड़ी पार्टी बनी, भाजपा को 91 सीट मिली.
यानी एनडीए गठबंधन ने जोरदार वापसी की और मुख्यमंत्री फिर नीतीश कुमार ही बने. 4 साल तक नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने रहे. लेकिन 2014 के आम चुनाव के समय बिहार में बड़ा बदलाव हुआ. प्रधानमंत्री पद के लिए भाजपा ने नरेंद्र मोदी का नाम सामने रखा. इससे नीतीश कुमार नाराज हो गए और एनडीए से रिश्ता तोड़कर राजद और कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई. 2014 के लोकसभा चुनाव में जदयू ने बिहार के 38 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, लेकिन बड़ी हार मिली.
नीतीश कुमार क्यों छोड़ी सीएम की कुर्सी, फिर आगे क्या-क्या खेल हुआ
सिर्फ दो सीट ही मिल पाई, नीतीश कुमार इस खराब प्रदर्शन की जिम्मेवारी लेते हुए मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ दी. जीतन राम मांझी को नया मुख्यमंत्री बनाया. जीतन राम मांझी के मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश कुमार और जीतन राम मांझी के रिश्ते बिगड़ने लगे. अंततः फरवरी 2015 में जीतन राम मांझी को हटाकर नीतीश कुमार फिर से मुख्यमंत्री बन गए. 2015 के चुनाव में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव साथ चुनाव लड़े. जदयू ,राजद और कांग्रेस ने मिलकर महागठबंधन बनाया. नतीजे आए तो महागठबंधन को बड़ी जीत मिली. राजद सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही बनाए गए. राजद को 80 सीटों पर जीत मिली, जदयू को 71 सीट मिली ,लेकिन कांग्रेस को 27 सीटों पर संतोष करना पड़ा. इस चुनाव में भाजपा को 53 सीट, लोजपा को दो, गठबंधन के अन्य दलों को भी सीटें मिली थी.
लालू प्रसाद के परिवार पर जब लगने लगे भ्रष्टाचार के आरोप तब क्या हुआ
शपथ लेने के 20 महीने बाद लालू प्रसाद के परिवार पर लग रहे भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण नीतीश कुमार ने 2017 में महागठबंधन का साथ छोड़कर एनडीए का फिर से साथ ले लिया. इसके बाद नीतीश कुमार ने एनडीए के साथ सरकार बनाई और मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. फिर 2020 का चुनाव आया, इस चुनाव में 75 सीट लाकर राजद सबसे बड़ी पार्टी बना. भाजपा को 74 सीट मिली ,जदयू को 43 सीटों के साथ संतोष करना पड़ा. कांग्रेस के खाते में 19 सीट आई, 125 सीट जीतकर एनडीए की एक बार फिर सरकार बनी. कम सीट जीतने के बाद भी नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री बने.
2022 में भाजपा और नीतीश कुमार में क्यों पड़ गई थी दरारें
फिर 2022 के आते-आते भाजपा के कई नेताओं ने नीतीश कुमार के खिलाफ बयान देना शुरू किया. इससे नीतीश कुमार को लगा कि भाजपा जानबूझकर जदयू को कमजोर करने की कोशिश कर रही है. आरसी पी सिंह, को भाजपा ने केंद्र में मंत्री बना दिया, फिर तो जदयू ने आरसी पी सिंह को पार्टी से बाहर कर दिया. इस सियासी उठा पटक के बीच नीतीश कुमार ने एक बार फिर पाला बदला और 2022 में महागठबंधन के साथ आ गए. नीतीश कुमार ने इस्तीफा दिया और महागठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. हालांकि यह साथ भी ज्यादा दिन नहीं चला और जनवरी 2024 में फिर नीतीश कुमार का मन बदला और उन्होंने एनडीए में वापसी कर ली. अब वह एक बार फिर मुख्यमंत्री बनने की राह पर चल पड़े है.
रिपोर्ट-धनबाद ब्यूरो

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