पटना(PATNA): बिहार में अब तक की सबसे बड़ी हार की ओर कांग्रेस बढ़ रही है. 60 सीट पर चुनाव लड़ कर महज 4 सीट पर बढ़त बनाए हुए है. अब इस रुझान को देखने के बाद सवाल यही है कि आखिर कांग्रेस की मिट्टी पलित कौन कर गया. माहौल तो खूब बना लेकिन जनता ने भरोसा क्यों नहीं किया. ऐसे में देखें तो कई बिंदुओं पर कांग्रेस खुद चुनाव के समय घिरती दिखी. इसके साथ ही बिहार के मुद्दे को छोड़ दूसरे मुद्दे पर बिहार में माहौल तैयार किया गया. जिसका उल्टा नुकसान उठाना पड़ा है. ऐसे में अब देखें तो खुद राहुल गांधी अपनी रणनीति में फेल हुए है साथ ही कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी ने बड़ा खेल किया है.

अगर देखें तो विधानसभा चुनाव की घोषणा से पहले कांग्रेस SIR हो या फिर वोट चोरी के खिलाफ एक एजेंडा पूरे बिहार में चलाया. एक माहौल तैयार किया गया. तस्वीर देख कर ऐसा लगा की इस बार कांग्रेस का प्रदर्शन सबसे बढ़िया होने वाला है. यानि पिछले चुनाव के परिणाम से आगे निकल सकते है. लेकिन जिन मुद्दों को लेकर राहुल गांधी चल रहे थे उस मुद्दे से बिहार की जनता ने दूरी बना कर रखा. चुनाव के दौरान भी इस मुद्दे पर थोड़ा भी इन्टरेस्ट जनता का नहीं दिखा.

इसके अलावा चुनाव की घोषणा के बाद और नामांकन के समय तक कांग्रेस और राजद में तालमेल की कमी दिखी. चुनाव के समय दोनों दल में दूरियां बढ़ी हुई थी. सीट बंटवारे पर खुद कुछ तय नहीं किया गया. आखिरी समय में टिकट की घोषणा हुई. यही वजह हुआ की कई सीट पर कांग्रेस और राजद दोनों ने अपने अपने उम्मीदवार को उतार दिया. ऐसे में यह मैसेज जनता के बीच सही नहीं गया. बिहार के लोगों को लगा की जब यह खुद लड़ रहे है तो फिर चुनाव के बाद क्या होगा.

यहां अगर सबसे बड़ी बात पर गौर करें तो जब सीट बंटवारा हुआ और टिकट की घोषणा की गई. इसके बाद कांग्रेस के नेताओं ने खुद मोर्चा खोल दिया था. और कांग्रेस के दफ्तर पर प्रदर्शन कर टिकट बेचने का आरोप लगाया. सीधे तौर पर प्रदेश प्रभारी अलवारु पर पैसा लेकर टिकट देने का गंभीर आरोप लगाया.

अब इन सभी बिन्दु को देखने के बाद तो यह साफ हुआ की कांग्रेस की हार में खुद राहुल गांधी और उनके प्रदेश के नेता ही शामिल है. जनता के मुद्दों को छोड़ कार्यकर्ताओं को नजर अंदाज कर टिकट का बंटवारा मुद्दे गौण कर वोट चोरी पर फोकस किया गया. जो उल्टा बैक फायर हो गया.