पटना (PATNA) : बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों में एनडीए ने 160 का आंकड़ा पार कर लिया है. 243 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 121 है और एनडीए कई सीटों पर आगे चल रहा है. दूसरी ओर, महागठबंधन अपने पिछले प्रदर्शन से पीछे रह गया है. सुबह 8 बजे मतगणना शुरू हुई और डाक मतपत्रों ने नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए को बढ़त दिलाई. शाम 4 बजे तक, भाजपा (83) सीटों पर आगे चल रही है और जेडीयू (77) अपनी "बड़े भाई" की भूमिका खोती दिख रही है.
दूसरी ओर, महागठबंधन (राजद-कांग्रेस-वामपंथी) की उम्मीदें धराशायी होती दिख रही हैं. सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद, तेजस्वी यादव की राजद केवल 26 सीटें जीतती दिख रही है, जबकि कांग्रेस केवल पांच सीटें जीतती दिख रही है. यानी महागठबंधन कुल 31 सीटों पर सिमटने की संभावना है. प्रशांत किशोर की जन सुराज और मुकेश सहनी की वीआईपी भी कोई खास प्रभाव नहीं छोड़ पाई हैं. इसके अलावा, एआईएमआईएम जैसी पार्टियां लगभग नदारद ही दिख रही हैं. इस बार के चुनावी नतीजों को देखते हुए ये कहना गलत नहीं होगा कि नीतीश कुमार की सुनामी में राजद-कांग्रेस सहित जनसुराज के प्रशांत किशोर उड़ गए हैं.
2020 के चुनावों में बेहद कम स्ट्राइक रेट
पिछले विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद खराब रहा था. 2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में, कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन केवल 19 सीटों पर जीत हासिल कर पाई. 27% के बेहद कम स्ट्राइक रेट के साथ, कांग्रेस का प्रदर्शन महागठबंधन के अन्य सहयोगियों में सबसे खराब रहा. महागठबंधन में सबसे ज़्यादा सीटें जीतने के बावजूद कांग्रेस के कमज़ोर नतीजे हमेशा से तेजस्वी और लालू यादव के लिए चिंता का विषय रहे हैं.
राहुल गांधी साइलेंट मोड में
बिहार चुनाव से पहले, मतदाता अधिकार यात्रा के दौरान राहुल गांधी काफ़ी आक्रामक दिखे. उस समय SIR का मुद्दा भी काफ़ी गरम था, और राहुल एनडीए के ख़िलाफ़ एक नैरेटिव बनाने में कुछ हद तक कामयाब भी दिखे. हालाँकि, मतदाता अधिकार यात्रा के दौरान महागठबंधन के पक्ष में बनी हवा को वह बरकरार नहीं रख पाए. महागठबंधन की मतदाता अधिकार यात्रा के बाद, राहुल गांधी साइलेंट मोड में चले गए. तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किए जाने पर भी वह कई मौकों पर चुप रहे. इससे महागठबंधन को शर्मिंदगी उठानी पड़ी. तेजस्वी यादव के नाम की घोषणा में काफ़ी देरी हुई. बाद में महागठबंधन की प्रेस कॉन्फ्रेंस में एक पोस्टर लगाया गया जिसमें सिर्फ़ तेजस्वी यादव ही नज़र आए. राहुल गांधी भी पोस्टर से गायब थे.
PK की जमीनी नेटवर्किंग कैमरों में दिखी, वोटों में नहीं
कभी कई राज्यों में चुनावी रणनीति के सूत्रधार रहे और "जनसुराज" के ज़रिए बिहार में एक नई राजनीतिक प्रतिमान स्थापित करने का दावा करने वाले प्रशांत किशोर इस चुनाव में जनता का विश्वास जीतने में नाकाम रहे. नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की सुनामी ने लालू-तेजस्वी की राजनीति के साथ-साथ पीके के मॉडल को भी पूरी तरह से पीछे धकेल दिया. प्रशांत किशोर ने तीन साल पैदल यात्रा की, सैकड़ों गाँवों का दौरा किया, शिक्षा और स्वास्थ्य के सवाल उठाए और मौजूदा राजनीतिक नेतृत्व को चुनौती दी. लेकिन चुनाव नतीजों में उनकी कोशिशें वोटों में तब्दील नहीं हो पाईं. जनसुराज को समर्थन तो मिला, लेकिन इतना नहीं कि वह एक बड़ी राजनीतिक ताकत बन सके.

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