TNP DESK- पहले चरण का प्रचार खत्म हो गया है. 6 नवंबर को 18 जिलों की 121 सीटों और 11 नवंबर को 20 जिलों की 122 सीटों पर वोट डलेंगे. इस बार भी चुनाव में जंगलराज सबसे बड़ा मुद्दा बन गया है. पीएम मोदी और सीएम नीतीश कुमार हर रैली में जंगलराज की बात कर रहे हैं. जबकि लालू राबड़ी का शासन खत्म हुए 20 साल बीत चुके हैं. तेजस्वी यादव विकास और रोजगार की बात कर रहे हैं, लेकिन एनडीए लगातार पुराने दौर की याद दिला रहा है.

NDA का जंगलराज वाला नैरेटिव

पीएम मोदी ने समस्तीपुर की सभा में 30 बार जंगलराज शब्द का इस्तेमाल किया. उन्होंने कहा बिहार में फिर से जंगलराज नहीं लौटने देना है. नीतीश कुमार ने कहा कि पहले शाम होते ही लोग घर से निकलने से डरते थे. अमित शाह ने पूछा कि बिहार को विकास चाहिए या जंगलराज. जवाब मिला विकास.

जंगलराज शब्द कैसे आया

1997 में लालू यादव चारा घोटाले में फंसे और राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बनीं. उस वक्त पटना में जलभराव पर हाईकोर्ट ने कहा था कि शहर की हालत जंगलराज जैसी है. यहीं से विरोधी पार्टियों ने इस शब्द को लालू राबड़ी शासन से जोड़ दिया.

लोगों के मन में जंगलराज की छवि क्यों बनी

1990 से 2005 के बीच हत्या, अपहरण और जातीय हिंसा का बोलबाला था. 1991 से 2001 के बीच 58 नरसंहार हुए. 2001 से 2004 तक 1500 से ज्यादा फिरौती के लिए अपहरण हुए. नीतीश कुमार के आने के बाद ये घटनाएं कम गईं. इसी दौर की याद आज भी लोगों के मन में डर बनकर है.

20 साल बाद भी NDA क्यों उठा रहा यह मुद्दा

एक्सपर्ट्स कहते हैं एनडीए तीन कारणों से जंगलराज को दोहरा रही है.
पहला, नीतीश सरकार 20 साल से सत्ता में है, लोगों की नाराजगी मिटाने के लिए पुराने दौर की तुलना दिखाई जा रही है. उस समय बिहार की हालत बहुत खराब थी. प्रति व्यक्ति आय देश के औसत से आधी थी. नीतीश के आने के बाद विकास दर बढ़ी.

दूसरा, महिलाओं को सुरक्षा के नाम पर गोलबंद करना. 2020 में महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा वोट डाले थे और ज्यादातर ने NDA को वोट दिया.

तीसरा, कार्यकर्ताओं को जोश में लाना. ठंडे माहौल के चुनाव में पुराने डर को याद दिलाना उन्हें सक्रिय करता है.

तेजस्वी जंगलराज की छवि से क्यों नहीं बच पा रहे

RJD के टिकट बंटवारे में बाहुबली और दबंग छवि वाले उम्मीदवार अब भी दिख रहे हैं. तेजस्वी यादव ने 143 सीटों में से 9 ऐसे उम्मीदवार दिए हैं जो या तो बाहुबली हैं या उनके परिवार वाले.

इसके अलावा, पार्टी अब भी यादव-मुस्लिम समीकरण पर टिके रहना चाहती है. इससे दूसरे वर्गों में वही पुरानी छवि बनती है कि अगर सत्ता में आए तो फिर वही जंगलराज लौट आएगा.

असर क्या होगा

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि जंगलराज का मुद्दा अभी भी एनडीए के लिए सबसे बड़ा हथियार है. यह फॉरवर्ड और पिछड़े वोटरों को RJD से दूर कर देता है. 2020 में भी पीएम मोदी ने तेजस्वी को जंगलराज का राजकुमार कहा था और इसी बात से चुनाव पलट गई थी.
इस बार भी एनडीए उसी नैरेटिव को दोहरा रही है ताकि बिहार के मतदाता पुराना डर याद करें और उनके पक्ष में वोट करें.