टीएनपी डेस्क (Tnp desk):- पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान की एकबार फिर कायराना हरकत और इस मुल्क की नफरती सोच उजागर हो गयी. पाकिस्तान कश्मीर को हथियाने के लिए तकरीबन आठ दशक से कोशिश कर रहा है. लेकिन, उसके हाथ कामयाबी तो दूर, उल्टे तरह-तरह की फजीहतों के साथ-साथ काफी नुकसान हीं झेलना पड़ी है. चार-चार जंग आतंकियों का पनाहगार मुल्क का तमगा लगा चुका पाक हार चुका है.

जंग में परमाणु बम की धमकी 

एकबार फिर युद्ध भड़क गई है औऱ वह परमाणु बम की धमकियां भारत को दे रहा है. आतंकियों को पालने-पोसने वाला पाकिस्तान के पास परमाणु हथियार होने से पूरी दुनिया चिंतित है, क्योंकि अगर ये दहशतगर्दों के हाथ में लग गये तो पूरी मानवता के लिए खतरा है. खासकर अमेरिका, इजरायल जैसे देश आतंकवाद के जख्म को जानते है और हमेशा से इसे लेकर चिंतित रहे है. सबसे बड़ी परेशानी ये है कि पाकिस्तान की बात का कोई मोल नहीं यानि उसकी कथनी और करनी में आसमान-जमीन का फर्क होता है. वहां लोकतंत्र तो सिर्फ मुखौटा भर ही है, असली चलती औऱ चेहरा तो सेना है. ये बात उजागर हो चुकी है कि आईएसआई और सेना ही आतंकियों को ट्रेनिंग मुहैय्या कराकर मदद करती है. ऐसे में कैसे भरोसा कर लिया जाए कि पाकिस्तान अपने परमाणु हथियारों की हिफाजत कर सकेगा. 

आतंकवाद का दर्द झेल चुका है अमेरिका  

पाहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ औऱ रेल मंत्री हनीफ अब्बासी ने परमाणु बम की गीदड़भककी भारत को दी है. लिहाजा, अभी चल रही टेंशन में एकबार फिर परमाणु बम की सुर्खियां बनी हुई है. क्योंकि पाकिस्तान एक ऐसा मुल्क है, जहां कोई सिस्टम काम नहीं करता. मिलाजुलाकर सेना ही सर्वेसर्वा है. ऐसी सूरत में लाजमी है कि चिंता की तस्वीर उभरेगी और इसका समाधान भी निकलाने की भी जल्दी होगी. दरअसल, 2011 में अमेरिकी की एक समाचार चैनल एनबीसी न्यूज ने एक रिपोर्ट में दावा किया है कि अमेरिका ने पाकिस्तान के परमाणु बम को जब्त करने के लिए एक आकास्मिक योजना तैयार की है. यह योजना 9/11 हमले के बाद अमेरिका की प्राथमिकता रही है. पाकिस्तान के एबोटाबाद में 2 मई 2011 को अमेरिका के ऑपरेशन में खूंखार आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को मारने के बाद पाक में मौजूद परमाणु शास्त्रागार की सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ा दी. ऐसा बोला जाता है कि तात्कालीन पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल अशफाक कयानी ने परमाणु सुरक्षा के प्रभारी लेफ्टिनेंट जनरल खालिद किदवई को फोन कर आशंका जताई कि अमेरिका इसे हथियाने की कोशिश कर सकता है.  व्हाइट हाउस के पूर्व काउंटर-टेररिज्म उप निदेशक रोजर क्रेसी ने एनबीसी न्यूज को बताया था कि परमाणु हथियारों के सबसे खराब हालात के लिए अमेरिकी सरकार ने पहले ही योजना तैयार कर ली है. अमेरिका अपनी इस योजना को जमीन पर तब उतारने की स्थिति में होता, जब पाकिस्तान की आंतरिक अराजकता गृह युद्ध, सैन्य तख्तापलट या भारी अस्थिरता के हालात पैदा हुए हो. 

अमेरिका के लिए भी चिंता पाकिस्तान के परमाणु हथियार 

ऐसा माना जाता है कि अमेरिका सैटेलाइट इमेजरी, मानव खुफिया और सिग्नल खुफिया  के जरिए पाकिस्तान के परमाणु ठिकानों की निगरानी करती है. ‘बुलेटिन ऑफ द एटॉमिक साइंटिस्ट्स’ की 2023 की रिपोर्ट की माने तो पाकिस्तान के परमाणु हथियार आक्रो, खुजदार, और पानो अकिल जैसे ठिकानों पर रखे गये हैं. जरूरत के समय  अमेरिकी विशेष बल, जैसे डेल्टा फोर्स या नेवी सील्स तुरंत पाकिस्तान में घुसकर परमाणु हथियारों को अपने कब्जे में ले लेंगे. हालांकि, पाकिस्तान के परमाणु बम कई गुप्त जगहों पर रखे गये हैं. जिससे इसे हासिल करने का ऑपरेशन कठीन हो सकता है. 2011 में तात्कालीन सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ ने स्नैच एंड ग्रैब को पाकिस्तान की संप्रभुता पर हमला माना था औऱ युद्ध की वजह बताया था. 

अमेरिका लिए आसान नहीं ‘स्नैच एंड ग्रैब’ ऑपरेशन 

एक अनुमान के मुताबिक पाकिस्तान के पास 170 परमाणु हथियार हैं, जो कि विभिन्न मिसाइलों गौरी, शाहीन , गजनवी में लगे हैं और सैन्य ठिकानों पर तैनात हैं. इन हथियारों को सुरंगो, पहाड़ों, सैन्य ठिकानों और गुप्त स्थानों पर रखा गया है. जिसका सटीक लोकेशन पता करना मुश्किल है. पाकिस्तान ये जरुर दावा करता है कि उसके परमाणु हथियार बेहद सुरक्षित है. बाहरी हस्तक्षेप से बचाने के लिए मुनासिब उपाय किए गए हैं. लेकिन भारोस इस मुल्क पर नही जमता. इधर अमेरिका के लिए भी ‘स्नैच एंड ग्रैब’ योजना को लागू करना आसान नहीं, बल्कि बेहद ही जटील है. 
अमेरिका को भी मालूम है कि देर-सवेर पाकिस्तान उसके लिए भी खतरा बनेगा, इसलिए स्नैच एंड ग्रैब का ऑपरेशन मुश्किल वक्त में चलाना उसके लिए जरुरी है, क्योंकि अगर परमाणु गलत हाथों में लग जाए तो इसकी खतरे की जद में अमेरिका ही नहीं पूरा विश्व आएगा. खासकर पाकिस्तान आतंकियों का मुल्क है. लाख बोलने पर भी आतंक को ही वहां सींच जा रहा है. 

रिपोर्ट- शिवपूजन सिंह