Patna-देश में आज तानाशाही का सरकार है, सारी संविधानिक संस्थानों को ध्वस्त किया जा चुका है, सब कुछ एक व्यक्ति की मर्ज से चल रहा है, सड़क से संसद तक लोगों के जुबान पर ताला लगाने की कोशिश जारी है, इतिहास की पहली घटना है, जब संसद से एक साथ 141 सांसदों का निष्कासन कर प्रतिनिधियों को उनकी जिम्मेवारियों के निर्वहन से रोका जा रहा है, जब जनता के नुमायदों को सदन में जनता की आवाज उठाने की ही इजाजत नहीं दी जा रही, तो उस हालत में सांसदों का औचित्य क्या रह गया है. क्या विपक्ष अब सवाल भी सत्ता पक्ष की मर्जी से उठायेगा, इन सांसदों का गुनाह मात्र इतना है कि इनके द्वारा संसद की असुरक्षा को लेकर सवाल खड़े किये गयें, सरकार से इस बात का जवाब मांगा गया था कि आखिर हमारी संसद में सुरक्षा की चूक कैसे हुई, देश के अलग अलग हिस्सों आकर नौजवानों में संसद की सुरक्षा को ध्वस्त कैसे कर दिया, इसका जिम्मेवार कौन है? और यदि इसी सवाल का जवाब गृह मंत्री से मांगा जा रहा है तो यह गुनाह कैसे हो गया, क्या इस सवाल को खड़ा करने के एवज में हमारे निर्वाचित प्रतिनिधियों को सदन से बाहर का रास्ता दिखला दिया जायेगा.

कांग्रेस राजद और जदयू कार्यकर्ता भी लगा रहे हैं जोर

दरअसल यह सारे सवाल पटना की सड़कों पर विरोध प्रदर्शन करते वाम नेता अरुण कुमार की ओर से उछाला गया है. इंडिया अलायंस के बैनर तले पटना की सड़कों पर निकाले गये इस विरोध प्रदर्शन में कांग्रेस, राजद, माले, राजद, जदयू सहित कई दूसरे दलों के कार्यकर्ता भी है. हालांकि इस बीच खबर यह भी फैली कि इस विरोध प्रर्दशन में कांग्रेस के कार्यकर्ता शामिल नहीं है, लेकिन बाद में इस विरोध प्रदर्शन में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं और नेताओं की मौजूदगी मिली. दरअसल इंडिया गठबंधन की दिल्ली बैठक में जिस तरीके से पीएम चेहरे के रुप में कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे का नाम आगे करने की खबर मिली, दावा किया जाने लगा कि ममता बनर्जी के इस प्रस्ताव से सीएम नीतीश को निराशा हुई है, क्योंकि जदयू- राजद कार्यकर्ताओं के द्वारा लगातार सीएम नीतीश को संयोजक बनाने की मांग हो रही थी, लेकिन जदयू नेताओं के द्वारा इस नाराजगी को महज कोरा कल्पना बताया गया, खुद लालू यादव ने भी इसका खंडन किया.

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