रांची(RANCHI): कन्हैया कुमार काँग्रेस पार्टी में शामिल हो गए हैं. इस बात के औपचारिक ऐलान के बाद से ही राजनीतिक गलियारे में इस बात पर चर्चा तेज हो गई कि कन्हैया और काँग्रेस एक दूसरे के लिए जरूरी हैं या मजबूरी. काँग्रेस पार्टी की बात करें तो बिहार की राजनीति में काँग्रेस के पास कोई बड़ा चेहरा नहीं है. इसलिए कांग्रेस एक युवा चेहरे की तलाश में थी, साथ ही पार्टी का प्रदर्शन भी हाल के चुनावों में काफी खराब रहा है. काँग्रेस के अलावा बिहार में अन्य पार्टियों की बात करें तो राजद के पास तेजस्वी यादव का एक अहम चेहरा है साथ ही वो अपनी पार्टी को आगे से लीड करते हुए नजर आते रहे हैं. वहीं लोक जनशक्ति पार्टी की बात करें तो राम विलास पासवान के निधन के बाद चिराग पासवान अपनी पार्टी को अच्छे से संभाल रहे हैं, बिहार के युवाओं में चिराग काफी लोकप्रिय हैं, साथ ही उनकी लोगों के बीच अच्छी पकड़ भी है. ऐसे समय में काँग्रेस को भी एक ऐसे ही युवा चेहरे की तलाश थी जिसे जनता पहचानती हो और जिसमें पार्टी को लीड करने की काबिलियत हो और कन्हैया कुमार इन सभी बातों में बिल्कुल फिट बैठते हैं. दोनों के विचारधारा भी काफी मिलते-जुलते हैं.
कन्हैया के पास भी नहीं था कोई दूसरा रास्ता
अब कन्हैया कुमार की बात करें तो 2019 में लोकसभा चुनाव में करारी हार मिलने के बाद से वे गायब ही रहे हैं. उन्हें अनुशासनहीनता के कारण सीपीआई पार्टी से भी निकाला जा चुका है. अब ऐसे में वो भी एक ऐसे मौके की तलाश में थे जहां उन्हें राजनीति में कुछ बड़ा दायित्व निभाने की जिम्मेदारी मिलें. बिहार के सापेक्ष में बात करें तो राजद में पहले से ही तेजस्वी यादव के रूप में एक बड़ा युवा चेहरा है, लोजपा में चिराग पासवान की लोकप्रियता किसी से छिपी नहीं है. इन दोनों के रहते तो कन्हैया कुमार राजद या लोजपा पार्टी का चेहरा नहीं बन सकते थे, ना हीं उन्हें पार्टी में कोई बड़ी जिम्मेदारी मिलने की संभावना थी. बीजेपी और नरेंद्र मोदी के विरुद्ध कन्हैया कुमार का सोच किसी से छिपा नहीं है. ऐसे में बीजेपी में तो वो जा नहीं सकते और ना ही बीजेपी उन्हें पार्टी में शामिल करेगी. ऐसे में कन्हैया के पास सिर्फ काँग्रेस में जाने का ही रास्ता बच रहा था. देशविरोधी होने का दंश झेल रहे कन्हैया के आने से कॉंग्रेस को कितना फायदा होगा या नुकसान होगा, ये तो वक़्त ही बताएगा.
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