Bihar politics: बिहार में चुनाव के पहले कांग्रेस ने 40 जिला अध्यक्षों को बदल दिया है.  बिहार में कांग्रेस आक्रामक राजनीति की सोच में कभी आगे बढ़ती है कभी पीछे लौटती है. इतना तो तय माना जा रहा है कि कांग्रेस गठबंधन में ही विधानसभा का चुनाव लड़ेगी.  अब तक मंडल की राजनीति के बाद बिहार जैसे राज्य में पिछड़ी जातियों का वोट सभी दलों के लिए लाभदायक रहा है.  कांग्रेस भी इन जातियों को अपना वोट बैंक मानती रही है.  लेकिन इस बार जो बदलाव हुए हैं, उससे कई तरह के संदेश निकाले  जा सकते है. 

40 जिला अध्यक्षों में 21 चेहरे  रखे गए है नए 
 
धनबाद के एक कांग्रेसी नेता के अनुसार जिन 40 जिला अध्यक्षों को बदला  गया है.  उनमें 14 सवर्ण जाति   के हैं, पांच दलित, सात अल्पसंख्यक, 10 ओबीसी, तीन अति पिछड़ा समाज एवं एक वैश्य समाज से आते है.  हालांकि कहा जा सकता है कि कांग्रेस ने ऐसा कोई नया परिवर्तन नहीं किया है.  मामला इसलिए चर्चा में अधिक है कि विधानसभा का चुनाव प्रस्तावित है.  कहा जाता है कि इसके पहले भी पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने 2023 में जब 39 जिलों में अध्यक्ष नियुक्त किया था .  तो उनमें 25 जिलों की कमान सवर्ण  बिरादरी के हाथ में थी. 

27 मार्च को जिला एवं प्रखंड के संगठन में बदलाव के लिए बनी थी समिति 
 
बता दे कि कांग्रेस के नवनियुक्त प्रभारी कृष्णा अल्लावारु ने  27 मार्च को जिला एवं प्रखंड के संगठन में बदलाव के लिए एक कमेटी बनाई थी.  इस कमेटी ने बहुत जल्दीबाजी में अपनी अनुशंसा  हाई कमान को भेजी थी.  इसके बाद 21 नए लोगों को जिला अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई है.  19 पुराने चेहरों को जिला अध्यक्ष बनाया गया है.  सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या कांग्रेस नया दांव  चलकर अगड़ी जातियों के अपने वोटरों को लुभाने में भी जुटी है.  साथ ही  दलित, पिछड़ा, अति  पिछड़ा के भी हिमायती  होने का दावा कर रही है.  बहरहाल, आगे और  बदलाव हो सकते है.  देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस की इस राजनीति का बिहार के चुनाव में कितना लाभ पार्टी को मिल सकता है.

बिहार में शुरू हो गया है नेताओं का ताबड़तोड़ दौरा 

 इधर , बिहार में नेताओं का दौरा  शुरू हो गया है.  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हो, गृह मंत्री अमित शाह हो या राहुल गांधी हो.  सबने बिहार पर नजर गड़ा दी है.  राहुल गांधी इस महीने की 7 तारीख को पटना में संविधान सुरक्षा सम्मेलन में पहुंच रहे है.  यहां से वह बेगूसराय भी जा सकते है.  कन्हैया कुमार की यात्रा कुछ दिन रुकने के बाद 2 अप्रैल को किशनगंज से शुरू हो गई है.  कन्हैया कुमार अपनी  यात्रा को बीच में ही छोड़कर दिल्ली चले गए थे.  बेगूसराय जाने का इसलिए अंदेशा है कि कन्हैया कुमार बेगूसराय के ही रहने वाले है. कांग्रेस उन्हें बिहार में प्रोजेक्ट करने में लगी हुई है.  2019 के लोकसभा चुनाव में वह अपनी पुराणी पार्टी की  टिकट पर बेगूसराय से लोकसभा चुनाव भी लड़ चुके है.  उस चुनाव में केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कन्हैया कुमार को पराजित किया था.  

रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो