TNPSTORY: शिबू सोरेन, जिन्हें आज देश और खासकर झारखंड की जनता 'दिशोम गुरु' यानी 'जनजातीयों के गुरु' के नाम से जानती है, वह केवल एक राजनेता नहीं बल्कि एक युगद्रष्टा, एक आंदोलनकारी और एक सामाजिक क्रांति के अग्रदूत हैं. हाल ही में जब उनकी तबीयत खराब होने के बाद उन्हें दिल्ली के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया, तो न केवल झारखंड बल्कि पूरे देश की आंखें नम हो गईं. आज हम उनके जीवन के उस अद्भुत सफर की कहानी सुनेंगे, जो शिव चरण मांझी से शिबू सोरेन और फिर 'दिशोम गुरु' बनने तक की यात्रा को समेटे हुए है.

एक साधारण आदिवासी परिवार से सत्ता के शिखर तक

शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को झारखंड (तत्कालीन बिहार) के  हजारीबाग के नेमरा गांव में हुआ था.जो अब रामगढ़ जिला में है.   वह संथाल जनजाति से ताल्लुक रखते हैं. उनके पिता सोबरा सोरेन एक किसान थे और उन्होंने शोषण व अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने की कीमत अपनी जान देकर चुकाई थी. अंग्रेजों और बाहरी जमींदारों के अत्याचार से पीड़ित इस परिवार ने बहुत कष्ट झेले, और यही वह बीज थे, जिससे आगे चलकर एक क्रांतिकारी नेता का जन्म हुआ.

शिव चरण से शिबू बनने की कहानी

शिबू सोरेन का मूल नाम 'शिव चरण मांझी' था, लेकिन बचपन में ही उन्होंने अपना नाम बदल लिया. कारण था—जनजातीय पहचान के साथ एक नया आत्मबोध. ‘शिबू’ नाम गांव में उनके मित्र उन्हें प्यार से बुलाते थे, जो बाद में उनके सार्वजनिक जीवन में स्थायी हो गया. ‘सोरेन’ उपनाम ने उनकी जनजातीय अस्मिता को और मजबूत किया.

अलग झारखंड आंदोलन की शुरुआत

1960 और 70 के दशक में जब कोयल-कारो, दामोदर और संथाल परगना के जंगलों में खनिज और जमीन पर बाहरी कब्जा बढ़ा, तो आदिवासी समाज को अपने अस्तित्व पर संकट महसूस हुआ. उस समय बिहार की सरकारें आदिवासियों की मांगों को अनदेखा कर रही थीं. शिबू सोरेन ने इसे एक आंदोलन में बदला.

1972 में उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) की स्थापना की. इसका उद्देश्य था,झारखंड राज्य की मांग, आदिवासियों की जमीन की रक्षा और बाहरी शोषण के खिलाफ संगठित संघर्ष. उन्होंने जनसभाओं, आंदोलनों और धरनों से एक जनजागरण अभियान चलाया, जिसमें हज़ारों युवा शामिल हुए.

जमीन बचाओ आंदोलन, बाहरी के खिलाफ जंग

शिबू सोरेन की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक था ‘जमीन बचाओ आंदोलन’. इसमें उन्होंने बाहरी लोगों द्वारा आदिवासियों की जमीन पर कब्जे के खिलाफ बिगुल फूंका. कई स्थानों पर उन्होंने खुद जाकर कब्जा छुड़वाया और कानूनी लड़ाइयां भी लड़ीं. यह आंदोलन इतना प्रभावशाली था कि उन्होंने 'दिशोम गुरु' की उपाधि प्राप्त की.

राजनीतिक सफर : विधानसभा से संसद तक

शिबू सोरेन 1980 में पहली बार सांसद बने और कई बार लोकसभा के सदस्य रहे. उन्होंने केंद्र में कोयला मंत्री और जनजातीय मामलों के मंत्री जैसे अहम पदों पर काम किया. 2004 में वह पहली बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने, हालांकि सरकार ज्यादा दिन नहीं चली. इसके बाद 2009 में वह दोबारा मुख्यमंत्री बने.

उनकी राजनीति का मुख्य केंद्र रहा है : जनजातीय अधिकार, स्थानीय लोगों की प्राथमिकता, और जल-जंगल-जमीन की रक्षा. उन्होंने झारखंड आंदोलन को राष्ट्रीय मंच पर ले जाकर उसे एक संवैधानिक पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाई.

राजनीति और विवाद

शिबू सोरेन का राजनीतिक जीवन हमेशा आसान नहीं रहा. उन पर हत्या जैसे गंभीर आरोप भी लगे. शिबू सोरेन को 2006 में एक पुराने केस में दोषी ठहराया गया था, लेकिन बाद में उन्हें बरी कर दिया गया. इन मुश्किलों के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी और जनसंघर्ष के प्रतीक बने रहे.

शिबू सोरेन परिवार और विरासत

उनके बेटे हेमंत सोरेन आज झारखंड के मुख्यमंत्री हैं, जो पिता की विचारधारा को आगे बढ़ा रहे हैं. झारखंड की राजनीति में 'सोरेन परिवार' एक बड़ा नाम बन चुका है, लेकिन आज भी लोगों के दिल में शिबू सोरेन वही जमीन से जुड़े नेता हैं, जिन्होंने हर गरीब आदिवासी को न्याय दिलाने का सपना देखा.

तबीयत नाजुक लेकिन स्थिर

अस्पताल में भर्ती अभी शिबू सोरेन की तबीयत नाजुक है और उन्हें दिल्ली के मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया है. डॉक्टरों की टीम उनकी हालत पर नजर बनाए हुए है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन दिल्ली में कैंप कर रहे हैं और लगातार पिता की सेहत की निगरानी कर रहे हैं. झारखंड से लगातार नेता, कार्यकर्ता और आम लोग उनके स्वास्थ्य की कामना कर रहे हैं.

 झारखंड से जुड़ा है भावात्मक रिश्ता

शिबू सोरेन सिर्फ एक नाम नहीं, एक विचारधारा हैं. उन्होंने झारखंड को एक अलग पहचान दिलाने के लिए जो संघर्ष किया, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक उदाहरण है. उनके भाषणों में हमेशा एक बात दोहराई जाती थी "हमारी मिट्टी, हमारा हक़"  जल,  जंगल और जमीन यह भावना आज भी झारखंड के हर कोने में जीवित है.

एक युगपुरुष की गाथा

शिबू सोरेन का जीवन हमें बताता है कि कोई भी बड़ा बदलाव एक साधारण व्यक्ति से शुरू हो सकता है, बशर्ते उसमें लोगों के लिए लड़ने का जज़्बा हो. शिव चरण मांझी से दिशोम गुरु बनने का यह सफर सिर्फ एक व्यक्ति की कहानी नहीं, बल्कि पूरे झारखंड की आत्मा की कहानी है.

आज जब वह जीवन के एक कठिन मोड़ पर अस्पताल में हैं, तो पूरा झारखंड उनके जल्दी स्वस्थ होने की प्रार्थना कर रहा है. दिशोम गुरु की यह कहानी आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा और संघर्ष का पाठ बनकर हमेशा जीवित रहेगी.

"झारखंड की मिट्टी का बेटा, जिसने जंगलों की आवाज़ को संसद तक पहुंचाया : दिशोम गुरु शिबू सोरेन"