टीएनपी डेस्क (Tnp Desk):-  झारखंड में लोकायुक्त, मुख्य सूचना आयुक्त, सूचना आयुक्त, मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष समेत कई संवैधानिक पद लंबे समय से खाली पड़े हैं . इसके चलते कामकाज पर काफी असर पड़ा है. निष्पादन नहीं होने से शिकायतों की लिस्ट लंबी हो गई है. इन रिक्त पड़े पदों पर नियुक्ति की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका पर सोमवार को हाईकोर्ट में सुनवाई हुई है.

मुख्य न्यायाधीश एम.एस.रामचंद्र राव और न्यायाधीश राजेश शंकर की खंडपीठ के समक्ष राज्य सरकार की ओर से जवाब दाखिल किया गया. जिसमे कहा गया है कि नेता प्रतिपक्ष का पद खाली रहने की वजह से प्रक्रिया पूरी नहीं हो पा रही थी. अब नेता प्रतिपक्ष की नियुक्ति हो गई है. लिहाजा, बहुत जल्द संवैधानिक पदों पर नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी.

राज्य सरकार के जवाब पर खंडपीठ ने अगस्त माह में सुनवाई की अगली तारीख तय करने को कहा है. यह जानकारी झारखंड हाईकोर्ट के अधिवक्ता धीरज कुमार ने दी है. दरअसल, जनवरी, 2025 में खाली संवैधानिक पदों पर नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन.कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने कहा था कि सदन में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी अपने किसी निर्वाचित सदस्य को कमेटी के लिए विपक्ष के नेता के रूप में नामित करे.

इस प्रक्रिया को दो सप्ताह में पूरा करने के लिए कहा गया था. इसके बाद 6 मार्च को भाजपा ने बाबूलाल मरांडी को सर्वसम्मति से नेता प्रतिपक्ष चुना था. 7 मार्च को झारखंड विधानसभा में स्पीकर रबींद्रनाथ महतो ने उनके नाम का एलान किया था.

सबसे खास बात ये है कि महत्वपूर्ण संवैधानिक पदों के रिक्त रहने से न्याय व्यवस्था प्रभावित हो रही है. सूचना आयोग, लोकायुक्त, राज्य महिला आयोग में शिकायतों की फाइल लगातार मोटी ही होती जा रही है क्योंकि उनका निष्पादन नहीं हो पा रहा है. वहीं रिक्त पदों को भरने की प्रक्रिया पूरी करने का हवाला देकर राज्य सरकार की ओर से कई बार अतिरिक्त समय देने की मांग की जा चुकी है.

अगस्त 2024 में ही खंडपीठ के समक्ष राज्य सरकार की ओर से बताया गया था कि लोकायुक्त समेत अन्य पदों पर 15 दिन में ही नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी. लेकिन आज तक ये सभी महत्वपूर्ण पद खाली ही पड़े हुए हैं.

गौरतलब है कि नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी हाल ही में इसे लेकर राज्य सरकार पर गंभीर आरोप लगाए थे, उनका कहना था कि नियुक्तियों में वर्षो से हो रही देरी के कारण लोकायुक्त, राज्य महिला आयोग, सूचना आयोग और उपभोक्ता फोरम जैसी संस्थाए अप्रभावी हो गई है. इससे आम लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.