धनबाद(DHANBAD): बिहार का छोटा भाई झारखंड अब "जवान" हो गया है.  अपने पैरों पर खड़े होने के बाद दौड़ने की लगातार कोशिश कर रहा है.  लेकिन इन 25 सालों में झारखंड राजनीति की प्रयोगशाला बना रहा.  इसमें कोई संदेह नहीं है झारखंड ने अपने 25 साल के कालखंड में 14 मुख्यमंत्री देखें ,तीन बार राष्ट्रपति शासन भी लगा, निर्दलीय विधायक को मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचने का इतिहास भी झारखंड के खाते में ही गया.   शायद देश में अलग राज्य का सबसे बड़ा आंदोलन चलने का श्रेय भी झारखंड के खाते में ही है.  जानकार तो यह भी बताते हैं कि जयपाल सिंह मुंडा ने अलग झारखंड राज्य का आंदोलन शुरू किया लेकिन बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री के बी  सहाय की वजह से उनकी पार्टी अलग नहीं रह पाई और कांग्रेस में विलय हो गया.  हालांकि  आंदोलन धीरे-धीरे बढ़ता रहा.  पुराने लोग बताते हैं कि उसके बाद झारखंड आंदोलन की बागडोर एन ई  होरो , बागुन सुम्ब्रई , रामदयाल मुंडा जैसे लोगों ने संभाली.

धनबाद में झामुमो के गठन के बाद कैसे आई अलग राज्य आंदोलन में तेजी 
 
 लेकिन आंदोलन में तेजी तब आई , जब धनबाद में शिबू सोरेन, विनोद बिहारी महतो  और ए के राय ने मिलकर झामुमो  का गठन किया.  विनोद बिहारी महतो को पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया, जबकि शिबू सोरेन महामंत्री बने थे.  बाद में एके  राय की राह  अलग हो गई.  लेकिन पार्टी की गतिविधियां चलती रही.  इस बीच आंदोलन में कई उतार चढ़ाव आये. इसके बाद झारखंड स्वायत्त परिषद (JAAC) का गठन 9 अगस्त 1995 को हुआ था.  साल 2000 में केंद्र में अटल बिहारी वाजपेई की सरकार ने अलग झारखंड राज्य को मान्यता दे दिया  और 15 नवंबर 2000 को झारखंड अलग राज्य के रूप में स्थापित हो गया.  15 नवंबर 2000 को झारखंड के पहले मुख्यमंत्री के तौर पर बाबूलाल मरांडी ने शपथ ली.  उस समय बाबूलाल मरांडी विधायक नहीं थे.  मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने रामगढ़ विधानसभा सीट से उपचुनाव जीता.  बाबूलाल मरांडी के सीएम रहते हुए झारखंड में डोमिसाइल नीति को लेकर बड़ा विवाद छिड़ गया.  बड़े पैमाने पर हिंसा भी हुई.  उसके बाद वह मुख्यमंत्री पद से हटा दिए गए. 

मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद बाबूलाल भाजपा में कमजोर पड़ते गए
 
मुख्यमंत्री पद से हटाने के बाद बाबूलाल भाजपा में कमजोर पड़ते गए.  2006 में उन्होंने बीजेपी छोड़ दी और अपनी नई पार्टी बना ली.  झारखंड विकास मोर्चा नामक  पार्टी में 14 साल उन्होंने पॉलिटिक्स की.  फिर 2020 में वह भाजपा में वापस लौट गए.  अपनी पार्टी का उन्होंने भाजपा में विलय कर दिया.  बाबूलाल मरांडी के इस्तीफा के बाद भाजपा ने अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री बनाया.  वह खरसावां विधानसभा सीट से विधायक थे.  18 मार्च 2003 को उन्होंने शपथ ली.  मार्च 2005 तक झारखंड के मुख्यमंत्री रहे.  2005 में झारखंड में पहली बार विधानसभा का चुनाव हुआ.  30 सीट जीतकर भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनी.  उसके नेतृत्व वाली गठबंधन को 36 सीट  मिली.  जो जादुई आंकड़ा से 5 सीट कम था.  झामुमो को 17 सीट  आई  और कांग्रेस के खाते में 9 सीट गई.   यूपीए गठबंधन को 26 सीट  मिला, तब केंद्र में मनमोहन सिंह की सरकार थी और सिब्ते रजी झारखंड के गवर्नर थे.  चुनाव परिणाम के बाद अर्जुन मुंडा ने राज्यपाल से मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश किया. 

इस समय शिबू सोरेन ने किस भरोसे पर सरकार बनाने का दवा पेश किया था 

 उधर, शिबू सोरेन  ने भी 42 विधायकों के समर्थन का दावा कर दिया.  गवर्नर ने शिबू सोरेन को सरकार बनाने को कहा.   2 मार्च 2005 को शिबू सोरेन  ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.  21 मार्च तक बहुमत साबित करने का समय मिला.  लोग बताते हैं कि शिबू सोरेन कुछ दिनों बाद ही इस्तीफा दे दिया. बहुमत नहीं मिल पाया.  फिर अर्जुन मुंडा दोबारा सीएम बने.  12 मार्च 2005 को अर्जुन मुंडा फिर मुख्यमंत्री बने.  इस बार उनका कार्यकाल लगभग 15 महीना का रहा.  उस समय निर्दलीय विधायकों का भी झारखंड में ग्रुप था.  जिन में मधु कोड़ा, कमलेश सिंह, बंधु तिर्की, एनोस एक्का  और सुदेश महतो शामिल थे.  अर्जुन मुंडा की सरकार इन्हीं पर टिकी हुई थी.  18 सितंबर 2006 को अर्जुन मुंडा की सरकार गिर गई, क्योंकि सुदेश महतो को छोड़कर मधु कोड़ा सहित चार विधायकों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया.  उसके बाद मधु कोड़ा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली.  

चर्चित घटनाक्रम -निर्दल मधु कोड़ा 18 सितंबर 2006 को बन गए सीएम 

कांग्रेस और झामुमो  के समर्थन से मधु कोड़ा 18 सितंबर 2006 को मुख्यमंत्री बने.  वह जगन्नाथपुर विधानसभा से निर्दलीय जीतकर विधायक बने थे. मधु  कोड़ा सरकार में झामुमो, आरजेडी, यूनाइटेड गोमांतक  डेमोक्रेटिक पार्टी,  फॉरवर्ड ब्लॉक और तीन निर्दलीय विधायक शामिल हुए.  जबकि कांग्रेस ने बाहर से समर्थन किया.  मधु कोड़ा ने मुख्यमंत्री बनने के बाद खनन ऊर्जा सहित अन्य कई महत्वपूर्ण विभाग अपने पास रखा.  उसके बाद क्या हुआ, इसकी चर्चा कभी बाद में हम करेंगे.  हालांकि भ्रष्टाचार के मुद्दे दर्ज होने के बाद कांग्रेस ने मधु कोड़ा सरकार से समर्थन वापस ले लिया.  इसके बाद एक बार फिर शिबू सोरेन मुख्यमंत्री बने.  शिबू सोरेन को राजद  और कांग्रेस की मदद मिली.  इस बार  उनके कार्यकाल 3 महीने से कुछ अधिक दिनों का रहा.  शिबू सोरेन जब मुख्यमंत्री बने तो विधानसभा के सदस्य नहीं थे.  उन्हें 6 महीने के भीतर विधानसभा की सदस्यता हासिल करनी थी.  जदयू विधायक रहे रमेश सिंह मुंडा के निधन के बाद तमार सीट   खाली हुई थी.
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थाल छोड़ छोटानागपुर से चुनाव लड़ना क्यों उल्टा पड़  गया शिबू सोरेन के लिए 
  
शिबू सोरेन यहां से चुनाव लड़ने का फैसला किया.  यह फैसला शिबू सोरेन के लिए उल्टा पड़ गया.  पहली बार शायद संथाल परगना  छोड़कर वह छोटानागपुर से चुनाव लड़ने का फैसला लिया था.  राजा पीटर से वह  चुनाव हार गए.  उनके बाद  सरकार गिर गई और राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया.  फिर 2009 में दूसरी बार चुनाव हुआ, कांग्रेस गठबंधन 25 सीटों के साथ सबसे बड़े दल के रूप में  उभरा.  चुनाव से पहले कांग्रेस ने बाबूलाल मरांडी की पार्टी से गठबंधन किया था.  जेवीएम को 11 सीटें   मिली.  कांग्रेस के खाते में 14 सीट  गई, वहीं भाजपा गठबंधन को इस बार 30 सीट   आई, जिसमे  बीजेपी को 18 सीट मिली, राजद  को 5 सीट , झामुमो के खाते में 18 सीट  आई और 13 सीट  निर्दल  और दूसरे दलों को मिली .   फिर शिबू सोरेन एनडीए के सहयोग से मुख्यमंत्री बन गए और बीजेपी की ओर से रघुवर दास उपमुख्यमंत्री बने.  फिर केंद्र में समर्थन को लेकर हुए विवाद के बाद बीजेपी ने उनके सरकार से समर्थन वापस ले लिया.  उसके बाद उनकी सरकार अल्पमत में आ गई.  फिर जब बहुमत जुगाड़ नहीं हो पाया तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया. 

एक बार फिर प्रदेश में क्यों लगा राष्ट्रपति शासन ,आगे क्या हुआ 

 शिबू सोरेन के हटने के बाद एक बार फिर राष्ट्रपति शासन लगा.  इसके बाद फिर एनडीए की सरकार बनी.  गठबंधन में तीन दल शामिल हुए, भाजपा, झामुमो  और आजसू.  आजसू  के पास उस समय 5 सीट थी.  इस बार समझौते में मुख्यमंत्री पद बीजेपी के खाते में गया  और अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री बने और दो डिप्टी सीएम बने.   हेमंत सोरेन और सुदेश महतो डिप्टी सीएम बने.  यह समझौता   2010 में हुआ  और लगभग ढाई साल तक सरकार चली.  फिर विवाद छिड़ गया और बीजेपी ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया.  इसके बाद फिर एक बार राष्ट्रपति शासन लगा.  यह तीसरा मौका था, जब झारखंड में राष्ट्रपति शासन लगा था.  13 जुलाई 2013 को हेमंत सोरेन ने सरकार बनाने का दावा पेश किया. 

कुछ इस तरह हेमंत सोरेन झारखंड के तब पांचवे मुख्यमंत्री बने थे 
 
फिर हेमंत सोरेन  पांचवें मुख्यमंत्री बने.  मुख्यमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल 1 साल 5 महीने से कुछ अधिक रहा.  फिर 2014 के चुनाव में 37 सीटों के साथ बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बानी.  भाजपा के सहयोगी आजसू  को 5 सीट मिली.   बाबूलाल मरांडी की झारखंड विकास मोर्चा ने 8 सीटों पर जीत दर्ज की.   बीजेपी के नेतृत्व में  एनडीए गठबंधन की सरकार बनी और रघुवर दास मुख्यमंत्री बने. इसके पहले झाविमो में टूट भी हुई और बाबूलाल मरांडी के कई  विधायक भाजपा के  साथ हो  गए. रघुवर दास 2019 तक वह मुख्यमंत्री के पद पर रहे.  2019 के चुनाव में झामुमो , कांग्रेस और राजद  के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा.  झामुमो 30  सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी.  वहीं कांग्रेस को 16 सेट मिली.  राजद के खाते में एक सीट आई.  इसके अलावा झारखंड विकास मोर्चा को तीन सीट मिली.  आजसू  ने दो सीट जीती और अन्य के खाते में चार सीट गई. 

रघुवर दास जमशेदपुर पूर्वी से सरयू राय से पराजित हो गए,तब क्या हुआ 

रघुवर दास जमशेदपुर पूर्वी से सरयू राय से पराजित हो गए.  फिर  हेमंत सोरेन तीसरी बार सीएम बने.  47 सीटों के साथ झामुमो , कांग्रेस, राजद  गठबंधन ने झारखंड में सरकार बनाई और हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बने.  31 जनवरी 2024 तक वह मुख्यमंत्री रहे.  31 जनवरी को कथित जमीन घोटाले के एक मामले में ईडी  ने उनको गिरफ्तार कर लिया.  उसके बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया.  इस्तीफा देने के बाद चंपई सोरेन मुख्यमंत्री बने.  2 फरवरी 2024 को चंपई  सोरेन ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली.  चंपई सोरेन 3 जुलाई 2024 तक इस पद पर रहे.  हेमंत सोरेन की रिहाई के बाद उन्हें पद छोड़ना पड़ा.  28 जून 2024 को हेमंत सोरेन को कथित जमीन घोटाले में हाई कोर्ट से जमानत मिल गई.  हेमंत सोरेन लगभग 5 महीने तक जेल में रहे.  फिर हेमंत सोरेन गठबंधन के नेता चुन लिए गए.  

चंपई सोरेन के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के बाद आगे क्या हुआ 
 
फिर चंपई सोरेन ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और इसके साथ ही हेमंत सोरेन ने एक बार फिर सीएम पद की शपथ ले ली.  मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद चंपई सोरेन ने झामुमो  को छोड़कर भाजपा के साथ हो लिए.  यह अलग बात है कि हेमंत सोरेन के जेल जाने के बाद उनकी पत्नी कल्पना सोरेन की राजनीतिक हैसियत बढ़ गई.  गांडेय  सीट पर उपचुनाव की घोषणा हुई.  झामुमो  विधायक सरफराज अहमद ने इस्तीफा दे दिया था.  फिर 2024 का चुनाव आया.  इस चुनाव में महागठबंधन ने प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाई है. ऐसे समय झारखण्ड में जयराम महतो का राजनीतिक उदय हुआ.   इस प्रकार कहा जा सकता है कि झारखंड के 25 साल में यह  प्रदेश राजनीति का इतना बड़ा उथल-पथल देखा, जिसका सीधा प्रभाव इसके विकास पर पड़ा.  अब झारखंड आगे बढ़ाने की दिशा में अग्रसर हो चला है. 

रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो