रांची(RANCHI): राज्य में अस्पतालों और नर्सिंग होम से निकलने वाला कचरा बड़ी चुनौती बन कर उभऱा है, समूचित प्रबंधन के अभाव में निजी अस्पतालों के द्वारा इन कचरों को नजदीकी नालों और नदियों में फेंका जा रहा है. जिसके कारण आम लोगों के बीच संक्रमण का खतरा बना हुआ है.

सिया की रिपोर्ट में खुलासा

स्टेट लेवल इंवायरमेंट इंपैक्ट एसेसमेंट अथारिटी (सिया) की ओर से दायर शपथ पत्र के अनुसार लोहरदगा, सरायकेला-खरसावां और धनबाद में बायो मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट का प्लांट बनाने के लिए पर्यावरण क्लीयरेंस प्रदान किया है, जबकि पाकुड़, देवघर और दुमका में सिया की ओर से संबंधित दस्तावेज की मांग की गयी है, खूंटी और पलामू में ट्रीटमेंट प्लान बनाने की प्रक्रिया की जा रही है.

दाव पर आम लोगों की जिंदगी

इस शपथ पत्र के अनुसार पूरे झारखंड में अभी कहीं भी मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट का प्लांट काम नहीं कर रहा है, मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट को नदी नालों में फेंकने के कारण आम लोगों की जिंदगी दांव पर लग गयी है, नदियों के किनारे गुजर बसर करने वालों के बीच संक्रमण का खतरा और भी ज्यादा है.

जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान खुलासा

दरअसल इस मामले का खुलासा एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान हुआ, मामले की सुनवायी के बाद चीफ जस्टिस अपरेश कुमार सिंह, जस्टिस दीपक रौशन की खंडपीठ ने इस मामले में सरकार और प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड से अद्यतन रिपोर्ट मांगी है. अदालत ने राज्य सरकार के इस बात की जानकारी की मांग की है कि राज्य के सभी जिलों में यह ट्रीटमेंट प्लांट कब तक चालू किया जायेगा. इसके साथ ही खंडपीठ ने पूछा कि किन-किन जिलों में ट्रीटमेंट प्लांट बन चुका है और कहां-कहां निर्माणाधीन और कहां चालू है? इसकी पूरी सूची उपलब्ध करवाने का निर्देश दिया है.

सड़क, नाला, नदी और पहाड़ों पर फेंक जा रहा है कचरा

यहां बता दें कि झारखंड ह्यूमन राइट्स कांफ्रेंस की ओर से इस मामले में जनहित याचिका दायर की गयी थी, झारखंड ह्यूमन राइट्स कांफ्रेंस ओर से अधिवक्ता ऋतु कुमार और समावेश भंजदेव ने अदालत को बताया कि बायो मेडिकल वेस्ट के निस्तारण का निर्माण किया गया था, लेकिन उसका अनुपालन नहीं किया गया, आज हालत यह है कि अस्पताल और नर्सिंग होम से निकले वाले बायो कचरे को सड़क, नाला, नदी और पहाड़ों पर फेंक जा रहा है, इसके कारण राज्य की एक बड़ी आबादी को संक्रमण का खतरा है.

रिपोर्ट: देवेन्द्र कुमार