रांची(RANCHI) : चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दू लवर वाहना/ कात्यायनी शुभं दद्या देवी दानव घातिनि || नवरात्र का आज छठा दिन है और आज माता दुर्गा के छठे रूप माता कात्यायनी की पूजा की जाती है. माता का यह स्वरूप बहुत करुणामयी माना जाता है, जिसे उन्होंने भक्तों की तपस्या को सफल करने के लिए धारण किया था. हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक जिन लोगों की शादी में अड़चनें आ रही हैं, उन्हें पूरे विधि-विधान के साथ मां कात्यायनी की पूजा करनी चाहिए. मान्यताओं के अनुसार मां कात्यायनी की अराधना करने से आज्ञा चक्र जाग्रति की सिद्धियां प्राप्त होती हैं. साथ ही मां की अराधना से से रोग, शोक, संताप और भय से भी मुक्ति मिल जाती है. शिक्षा प्राप्ति के क्षेत्र में सफलता हासिल करने के लिए प्रयोग कर रहे भक्तों को मां कात्यायनी की पूजा जरूर करनी चाहिए.
माता का स्वरूप
माता के स्वरूप की बात करें तो मां कात्यायनी का स्वरूप भव्य और अत्यंत चमकीला होता है. मां सिंह की सवारी करती हैं. ऊपर उठा उनका एक दाहिना हाथ अभय मुद्रा में होता है, जबकि दूसरी दाहिनी भुजा वर मुद्रा में है. उनके एक बायें हाथ में तलवार और दूसरे में कमल पुष्प है.
पूजा की विधि
मां कात्यायिनी की पूजा के लिए सबसे पहले स्नान कर पीला वस्त्र धारण कर पूजा- स्थल में प्रवेश करना चाहिए. उसके बाद सबसे पहले चौकी पर माता दुर्गा की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें. इसके बाद गंगा जल या गोमूत्र से शुद्धिकरण करें. माता को हल्दी के गांठ और शहद जरूर चढ़ाए. माता को शहद बेहद पसंद है.
ये है कथा
पौराणिक कथा के अनुसार मान्यता है कि मां ने महर्षी कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर पुत्री के रूप में उनके घर जन्म लिया. कात्यायन की पुत्री होने के कारण उनका नाम कात्यायनी रखा गया. दानव महिषासुर का वध करने के कारण मां कात्यायनी को महिषासुर मर्दनी भी कहते हैं.
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