धनबाद(DHANBAD): आज महाअष्टमी है. सुबह से ही हाथों में पूजा की थाली, मुंह से माता रानी के जयकारे के साथ नए-नए कपड़ों में लोग माता के दरबार में हाजिरी लगा रहे है. मौसम भी आज धनबाद में आस्था को चुनौती दे रहा है. वैसे ,तो पूजा की शुरुआत से ही मौसम साथ नहीं दे रहा है, बावजूद लोग उत्साह और उमंग के साथ पूजा पंडालों की ओर कदम बढ़ा रहे है. धनबाद में इस साल पूजा की विशेष तैयारी है. यहां की पूजा पारंपरिक और आधुनिकता का मिश्रण होती है. पारंपरिक पूजा करने वाले आधुनिकता से परहेज करते हैं, लेकिन हाल के सालों में जहां-जहां पूजा की शुरुआत हुई है, वहां आधुनिकता का प्रवेश हुआ है. धनबाद के बारे में कहा जाता है कि यहां राजा -महाराजाओं ने पूजा की शुरुआत की थी. उनकी परंपरा का भी आज भी निर्वाह किया जाता है.
राजा -महाराजाओं ने की थी पूजा की शुरुआत
पारंपरिक ढंग से पूजा की जाती है. झरिया के प्राचीन और ऐतिहासिक पुराना राजगढ़ दुर्गा मंदिर में मां दुर्गा पूजा का इतिहास 350 साल पुराना है. इस मंदिर के प्रति लोगों की पूरी आस्था है. कहा जाता है कि सबसे पहले यहां पूजा होती है. इसके बाद ही अन्य परंपरागत मंदिरों या पंडालो में पूजा की जाती है. दशमी के दिन मां की प्रतिमा का विसर्जन सबसे पहले यही किया जाता है. इसके बाद ही अन्य प्राचीन एवं परंपरागत मंदिरों की प्रतिमाएं विसर्जित होती है. बंगाली पद्धति से मां दुर्गा की पूजा की जाती है. मंदिर की स्थापना झरिया राज परिवार की कुलदेवी के मंदिर के बगल में ही की गई है. कहते हैं कि झरिया के राजा संग्राम सिंह ने डोमगढ़ राजा को पराजित करने के बाद मंदिर की स्थापना की थी.
यहां सप्तमी, अष्टमी और नवमी तीनों दिन बलि की परंपरा है
यहां पर सप्तमी, अष्टमी और नवमी तीनों दिन बलि दी जाती है. खासियत यह है कि350 साल पुराने लकड़ी के पटरे पर ही मां की प्रतिमा बनाई जाती है. पुराना राजा का दुर्गा मंदिर के बगल में सिरा घर (कुलदेवी का स्थान) है. बताया जाता है कि यह दुर्गा मंदिर की स्थापना से पहले का है. जब झरिया राजा संग्राम सिंह ने डोमगढ़ राजा को पराजित किया, तो उनकी मुट्ठी से तलवार नहीं छूट रही थी. उसके बाद कुलदेवी को प्रसन्न करने के लिए रानी ने प्रार्थना की. यहां पर पहले हाथ से रानी घटरा यानी पुआ तैयार करती थी. लेकिन अब थोड़ा परिवर्तन हुआ है. बावजूद सप्तमी से यहां पर विशेष रूप से पूजा राज परिवार की महिला सदस्य करती है. कुलदेवी को प्रसन्न करने के लिए पूजा होती है. इस मंदिर को झरिया राजा दुर्गा प्रसाद ने बहुत प्रयास किया पक्का करने का, लेकिन मां ने स्वीकार नहीं किया.
रिपोर्ट -धनबाद ब्यूरो

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