धनबाद (DHANBAD) : झारखंड की राजनीति क्या करवट लेने वाली है? क्या बीजेपी को निशाने पर लेने का हथियार तैयार किया जा रहा है? क्या 26% आदिवासियों को लुभाने का प्रयास किया जा रहा है? क्या कांग्रेस झामुमो के संकल्प को छीनने की कोशिश कर रही है ? यह सब कई सवाल है, जो झारखंड की राजनीति में कहे-सुने जा रहे है. झारखंड में सरना कोड की मांग  एक लंबे समय से की जाती रही है. पिछले 24 घंटे की बात की जाए, तो यह झारखंड की राजनीति की धुरी  बन गई ही. वैसे पहले से भी यह राजनीतिक धुरी थी, लेकिन अब इसमें धार देने की कोशिश हो रही है. 

झारखंड के एक बड़े वोट बैंक को प्रभावित करता है 
 
सरना कोड का मुद्दा न केवल आदिवासियों की संस्कृति और धार्मिक पहचान से संबंधित है, बल्कि यह एक बड़े वोट बैंक को प्रभावित करने का राजनीतिक हथियार भी बन सकता है. झारखंड की लगभग 26 प्रतिशत आबादी आदिवासियों की है. जो मुख्य रूप से खुद को सरना धर्म मानते है. साल 2020 में झारखंड विधानसभा से  आदिवासी धर्मकोड को जनगणना में शामिल करने का प्रस्ताव पारित किया गया था. इसे  केंद्र के पास भेजा गया लेकिन कोई निर्णय नहीं हुआ.  

झामुमो-कांग्रेस के राजनीतिक एजेंडे में है शामिल 

झारखंड मुक्ति मोर्चा सारना धर्मकोड  को लागू करने की मांग अपने राजनीतिक  एजेंडे के केंद्र में रखा है. लेकिनअब कांग्रेस,झामुमो से इस राजनीतिक एजेंडा को छीनने की कोशिश में है. सोमवार को रांची में कांग्रेस का धरना हुआ. महामहिम को ज्ञापन दिया गया तो मंगलवार को झारखंड के सभी जिला मुख्यालयों में झामुमो का प्रदर्शन हो रहा है. कहा जा रहा है कि यह आदिवासी समाज में अपनी पैठ मजबूत करने की एक कोशिश है. साथ ही कांग्रेस प्रयास कर रही होगी कि उसे आदिवासी हितो के रक्षक के रूप में देखा जाए. वैसे कांग्रेस भी अपने चुनावी घोषणा पत्र में सरना कोड को शामिल की है. कहा जा रहा है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी के निर्देश पर झारखंड में कांग्रेस अचानक सक्रिय हो गई है. मांग की जा रही है की जनगणना के सातवें कॉलम में सरना कोड को शामिल किया जाए, नहीं तो झारखंड में जनगणना नहीं होने देंगे.  

केंद्र सरकार पर किये जा रहे हमले 

कांग्रेस और झामुमो का कहना है कि सरना कोड के सिलसिले में केंद्र सरकार की नीति स्पष्ट नहीं है. इधर, भाजपा इस मुद्दे पर दोहरे रवैया का आरोप झेल रही है. भाजपा कह रही है कि 2014 में यूपीए सरकार के दौरान सरना  धर्म कोड  की मांग को अव्यवहारिक कहते हुए खारिज कर दिया गया था. भाजपा कांग्रेस के साथ-साथ झामुमो पर भी पलटवार कर रही है. हालांकि 2024 के चुनाव में भाजपा भी कह रही थी कि अगर झारखंड में एनडीए की सरकार बनी तो सरना धर्मकोड को लागू कर दिया जाएगा. सवाल उठ रहे हैं कि सारना धर्मकोड को लेकर एका एक इतनी तेजी क्यों लाई गई है. बता दें कि झारखंड में आदिवासी समुदाय एक बहुत बड़ा वोट बैंक है. इस वजह से सभी राजनीतिक दलों को यह आकर्षित करता है. लेकिन सवाल यही उठता है कि इस धर्म कोड के लिए कौन कितना तैयार है.  

झामुमो-कांग्रेस बनाना चाहते है हथियार 

झामुमो इस मुद्दे को लेकर अपने को मजबूत साबित करने की कोशिश कर रहा है, तो कांग्रेस भी अपनी खोई जमीन को प्राप्त करने की कोशिश कर रही है. झारखंड में कांग्रेस और झामुमो ने ऐलान कर दिया है कि जब तक जनगणना के सातवें कॉलम में सरना कोड  को शामिल नहीं किया जाएगा, प्रदेश में जनगणना नहीं होने देंगे. देखना है इस मुद्दे को लेकर आगे होता है क्या? आपको बता दें कि बिहार में माई-बहिन सम्मान योजना को तेजस्वी यादव से छीनने की कांग्रेस कोशिश कर चुकी है. कांग्रेस ने बिहार में राजद  से पहले एक हेल्प लाइन नंबर भी जारी कर दिया है. जबकि झारखंड की मंईयां सम्मान योजना की तर्ज पर तेजस्वी यादव ने बिहार में माई -बहिन सम्मान योजना लागू करने की घोषणा की थी. लेकिन कांग्रेस उसे आगे निकलकर हेल्पलाइन नंबर तक जारी कर दिया है. 

रिपोर्ट-धनबाद ब्यूरो