पाकुड(PAKUR): ऐतिहासिक है पाकुड़ का रथमेला मुगलकाल से ही यहां रथयात्रा निकाली जाती है. भगवान मदनमोहन रथयात्रा वर्ष 1697 से शुरू हुई थी. इसका शुभारंभ पाकुड़ राज के तत्कालीन प्रथम राजा पितृ चंद्र शाही ने की थी.पाकुड़ राज के कुलदेवता भगवान मदनमोहन व रुकमणि माता थे.जिला का राज स्टेट लिट्टीपाड़ा प्रखंड का कंचनगढ़ हुआ करता था. कंचनगढ़ के राजबाड़ी का खंडहर आज भी मौजूद है.पितृ चंद्र शाही के पुत्र सितेश चंद्र शाही ने पाकुड़ राज के दूसरे राजा के रूप में 1739 में कार्यभार संभाला.

पाकुड़ राज को बादशाह अकबर ने 1760 में पूर्ण राज का दर्जा दिया

बहुत दिनों के बाद पाकुड़ राज को बादशाह अकबर ने 1760 में पूर्ण राज का दर्जा दिया.इसके बाद राजपाठ का सुचारू रूप से संचालन होने लगा.उस समय रथयात्रा में आदिम जनजाति पहाडिय़ा एवं आदिवासी समुदाय के काफी लोग मेले में शामिल हुआ करते थे.इसलिए कंचनगढ़के राजा पहाडिय़ा राजा के रूप में जाने जाते थे. 1802 में पहाडिय़ा समुदाय का विद्रोह शुरु हुआ. इस कारण राजा सितेश चंद्र शाही 1815 में कंचनगढ़ के राजपाठ उठाकर जिले के हिरणपुर प्रखंड के मोहनपुर में आकर बस गए.पूर्व में यह विशाल रथ नीम की लकडी का का था.मोहनपुर में रथयात्रा के दौरान भी भव्य मेले काआयोजन किया जाता था. उसके बाद पाकुड़ राज के तृतीय राजा गोपीनाथ पांडेय ने 1826 कार्यभार संभाला और श्रद्धा पूर्वक रथयात्रा संपन्न होने लगा. 1856 में तृतीय राजा पाकुड़ में आकर बस गए.

तृतीय राजा ने शहर में भव्य मेला का आयोजन किया था

तृतीय राजा ने शहर के राजापाड़ा स्थित राजबाड़ी मैदान में भव्य मेला का आयोजन किया था.यह आज भी जारी है. इसके बाद चतुर्थ राजा कुमार कालीदास पांडेय ने 1921 में प्रभार ग्रहण किया और वे रथयात्रा को राजशाही रीति-रिवाज से संचालित करने लगे.

1931 में रानी ज्योतिर्मय देवी ने रथ को पीतल से निर्माण कराया

पहले रथ यात्रा राजबाड़ी से निकलकर शहर के मुख्य मार्ग होते हुए रानी ज्योतिर्मय स्टेडियम तक जाकर आठ दिनों तक उसी स्थान रखा जाता था. लेकिन प्रशासन द्वारा स्टेडियम का घेराबंदी कर देने से वर्तमान में रथयात्रा भगतपाड़ा बिल्टु स्कूल तक जाकर पुनः वहां से राजबाडी लाया जाता है.चतुर्थ राजा पांडेय के गुजर जाने के बाद 1931 में रानी ज्योतिर्मय देवी ने रथ को पीतल से निर्माण कराया.यह तकरीबन 20 फीट ऊंचा है.

रिपोर्ट-नंदकिशोर मंडल