रांची (RANCHI): जल, जंगल और जमीन के प्रति झारखंड के आदिवासियों और मूलवासियों का प्रेम है, यही जज्बा युवाओं का हॉकी को लेकर है. शायद ही किसी वर्ष की नेशनल टीम हो, जिसमें झारखंड से कोई खिलाड़ी शामिल न होता हो. जयपाल सिंह मुंडा से लेकर सलीमा टेटे तक सैकड़ों नाम सरे-फेहरिस्त हैं, जिनके खेल से दुनिया वाकिफ है. लेकिन सरकार की ओर से इसके प्रोत्साहन के लिए क्या प्रयास किये जाते हैं और आज उसके हालात कैसे हैं, इस खबर में यही बताने की कोशिश करेंगे.

तीन साल पहले उभरती प्रतिभाओं को निखारने के लिए सरकार ने एकलव्य सेंटर ऑफ एक्सीलेंस खोला था. हॉकी के इस पहले सेंटर की शुरुआत रांची के मोरहाबादी स्थित एस्ट्रोटर्फ स्टेडियम से हुई थी. तब के खेल मंत्री अमर कुमार बाउरी ने सेंटर के खिलाड़ियों के लिए शिक्षा और छात्रवृति देने की भी घोषणा की थी. इसी साल दुमका और रांची में तीरंदाजी का सेंटर भी शुरू किया गया है. अब ऐसे तीन सेंटर हैं. जिसमें दो तीरंदाजी के लिए और एक हॉकी के लिए समर्पित है.

एक्सीलेंस सेंटर में सुविधाओं का घोर अभाव
रांची के हॉकी एक्सीलेंस सेंटर में खिलाड़ियों के पास न अच्छी गेंद और ना ही स्टिक है. खिलाड़ियों के पास जूते तक नहीं है. किसी भी सेंटर में फिजिकल ट्रेनर, साइकोलॉजिस्ट, न्यूट्रीशियन, वॉर्डेन और मसाजर/फिजियो नहीं है. खिलाड़ियों को बेसिक सुविधा तक उपलब्ध नहीं हो पाती है. अगर कोई खिलाड़ी बीमार पड़ जाए तो लेने के देने पड़ जाएं. क्योंकि मेडिकल सुविधाकिसी भी खिलाड़ी को नहीं मिल पा रही है. शुरू में सीनियर खिलाड़ियों के हिसाब से पौष्टिक आहार देने की योजना थी. बाद में आवासीय सेंटर के खिलाड़ियों की तरह हर खिलाड़ी को 175 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से डाइट दिया जाने लगा. सही डाइट नहीं होने से वर्कआउट में दिक्कत आती है.

 
सुविधा नहीं होने से सेंटर छोड रहे खिलाड़ी
प्रशिक्षण की जरूरत खिलाड़ियों के हुनर में निखार के लिए जरूरी है. इसके साथ ही इतना ही जरूरी है. उनके लिए मूलभूत सुविधाओं का होना. लेकिन सेंटरों में बेसिक सुविधा की कमी के कारण कई खिलाड़ी सेंटर छोड़कर घर भी लौट चुके हैं. हर सेंटर का कोटा 64 खिलाड़ियों का है. लेकिन मौजूदा स्थिति में हॉकी के सेंटर में 55 खिलाड़ी तो रांची के तीरंदाजी सेंटर में 45 और दुमका के तीरंदाजी सेंटर में महज 40 खिलाड़ी ही हैं.

सवाल- कहां जाता है करोड़ों रुपए का बजट
सेंटरों पर साल का बजट करोड़ों रुपये का है. सवाल उठना जरूरी है कि आखिर इतने पैसे जाते कहां हैं. विडंबना ही है कि एक्सीलेंस सेंटर का हाल यह है तो एक्सीलेंसी का क्या होगा. तस्वीर यह है कि किसी भी सेंटर में पर्याप्त उपकरण तक नहीं है. है भी तो पुराने हैं. पांच कोच होने चाहिए, लेकिन सिर्फ दो ही कोच हैं, वो भी प्रतिनियुक्ति पर तैनात हैं. खिलाड़ियों को परिवार से स्टिक, गेंद और जूते खरीदने के लिए पैसे मांगने पड़ते हैं. खिलाड़ियों ने बताया कि आवश्यक सामग्रियों के लिए माता-पिता से पैसे मांगकर काम चला रहे हैं. सेंटर के कोच द्रोणाचार्य अवॉर्डी नरेंद्र सिंह सैनी के बकौल विभाग इन परेशानियों से अंजान नहीं है. उसे कई बार इससे अवगत कराया जा चुका है. लेकिन कभी कोई सुनवाई नहीं हुई है. हॉकी एक्सीलेंस सेंटर के खिलाड़ियों को जून 2019 में पहली और आखिरी बार किट मिला था.