पूर्वी सिंहभूम के घाटशिला अनुमंडल का धालभूमगढ़ प्रखंड के पहाड़पुर  एक गांव है जहां के लोगों की जिंदगी जीने का जरिया पहाड़ ही है, जैसा गांव का नाम है ठीक वैसे ही गांव के लोगों की यहां जिंदगी है. इन गांव के लोगों की जिन्दगी पहाड़ के पत्थरों पर निर्भर है .इस गांव के हर घर से छेनी हथौड़ी की ठक ठक की आवाज सुनने को मिलती है. गांव के लोग दिनभर छेनी हथौड़ी से पत्थरों को काट काट कर मसाला पीसने वाली सील और लोहड़ी बनाते हैं . इस गांव में 26 परिवार है और सभी सील लोहड़ी बना कर अपना गुजारा करते हैं 


पहाड़ के पत्थरों से बनाते हैं कई सामान

सुबह सुबह अपने घर से दूर पहाडों पर जा कर बड़े बड़े चट्टानों को तोड़ कर लाते हैं चट्टानों को तोड़ने में घंटों लग जाते हैं फिर कंधे पर ढो कर गांव लाते हैं .इसके बाद चट्टानों से तोड़े गये पत्थरों को तरासने का काम किया जाता है .छेनी हथौड़ी से पत्थरों को काट काट कर सील, लोहड़ी बनाते हैं , जैसे मुर्तिकार पत्थरों को छेनी हथौड़ी से मुर्ति का आकार देते है ठीक उसी तरह से इस गांव के लोग पत्थरों को काट काट कर सील और लोहड़ी का आकार देते हैं. इसमें बड़े सावधानी से पत्थरों को छेनी और हथौड़ी के काटा जाता है . इस कारीगरी में गांव की महिलाएं भी बेहद कुशल होती हैं.


 इस गांव के लोगों की जिंदगी जद्दोजहद से है भरी 


पहाड़पुर गांव के ग्रामीण अपनी जिन्दगी जीने के लिये हर दिन जिद्दोजहद करते हैं, इस गांव में घर के पुरूष अगर पत्थरों को काट काट कर सील और लोहड़ी का आकार देते हैं तो वहीं महिलाएं उसी आकार को पत्थर से घीस घीस कर सुन्दर और बेहतर बनाने का काम करती हैं. सप्ताह भर काम करने के बाद उसे गांव के आस पास हाट - बाजारों में बेचते हैं, जिसमें मुश्किल से कमाई हो पाती है.

 मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित हैं पहाडपुर के ग्रामीण


पहाड़पुर गांव में कुल 26 परिवार रहते है . इस गांव के कोई सड़क नहीं है .गांव में पानी के लिये जलमीनार बनाये गये हैं वो भी खराब पड़े हैं, ज्यादातर लोगों के पक्के मकान आज तक नहीं बन पाए हैं.  ग्रामीण बताते हैं कि उनके पास खेती करने के लिये कोई जमीन नहीं है,जिसके कारण पहाडों के पत्थरों से ही उनका घर चलता है.


 रिपोर्ट-प्रभंजन कुमार,घाटशिला