अफगानिस्तान में एक बार फिर लगभग २० साल बाद  तालिबान का कब्जा हो गया है. हालांकि  तालिबान वहां के लोगो के बीच शांति और सुरक्षा का बात कर रहा  हैं लेकिन वहां फसे लोगो में बेचैनी के साथ साथ खौफ का मौहाल  हैं. ऐसे में ये भारत के लिए भी काफी चिंता की बात हैं क्योकि अफगानिस्तान की परिस्थिति को देखते हुए वहां  बसे भारतीयों पर भी संकट मंडरा रहा हैं. बता दे की तालिबान को खत्म करने में अमेरिकी और मित्र देशों की सेनाओं को पिछले 20 साल में भी सफलता नहीं मिली. ऐसा माना जाता हैं की तालिबान को पाकिस्तानी समर्थन ने अब तक  जिंदा रखा. अब हाल ये है की एक बार फिर तालिबान सक्रिय हो कर लोगो में खौफ पैदा कर रहा हैं. 

क्या है तालिबान 
1990 के दशक के दौरान तालिबान का उभार अफागिस्तान से रुसी सैनिको की वापसी के बाद उतरी पाकिस्तान में हुआ था.  पश्तो भाषा में तालिबान का मतलब छात्र होता हैं.  खासकर ऐसे छात्र जो कट्टर इस्लामी धार्मिक शिक्षा से प्रेरित होंते हैं. तालिबान का मूल मकसद पूरी दुनिया में शरिया कानून और इस्लामी राज्य स्थापित करना हैं. सऊदी अरब से आ रही आर्थिक मदद ने तालिबान की स्थापना में काफी  हद तक जिम्मेदार माना गया हैं. 

                                     तेज़  घर वापसी के लिए हवाई जहाज़ पर बैठे लोग 
 
क्या होगा भारत पर इसका असर 
जहाँ एक ओर चीन और पाकिस्तान, तालिबान से अपनी दोस्ती के चलते काबुल के नए घटनाक्रम को लेकर थोड़े आश्वस्त दिख रहे हैं, वहीं भारत फ़िलहाल अपने लोगों को जल्द से जल्द  काबुल से निकालने में लगा हुआ है. तालिबान को आधिकारिक तौर पर भारत ने कभी मान्यता नहीं दी, लेकिन इस साल ही  जून में दोनों के बीच बातचीत की ख़बरें सामने आयी  थी.हालांकि भारत सरकार ने अनेक  स्टेकहोल्डरों से बात करने वाला एक बयान देकर पुरे मामले को तूल मिलने से बचा लिया था. ऐसे में अब देखना ये होगा की भारत बस अपने लोगो को वापस लाने का ही काम करेगा या फिर अफगानिस्तान में हुए पूरे मामले पर कोई टिप्णी भी जारी करेगा.