देवघर(DEOGHAR): बैद्य यानी चिकित्सक और नाथ मतलब स्वामी.हम अगर बैद्यनाथ को जाने तो इसका मतलब चिकित्सको के स्वामी होता है. रावण एक प्रख्यात पंडित था जिसे सभी विद्या का ज्ञान था. इसलिए इसने भोले नाथ से बैद्यनाथ नामक आत्मलिंग मांग कर लंका ले जाना चाहता था. रावण ने भगवान शंकर से आत्मलिंग ले कर जब लंका जा रहा था तभी किसी कारणवस उसे देवघर में ही स्थापित करना पड़ा. बाबानगरी में जो पवित्र द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक स्थापित है उसे रावणेश्वर बैद्यनाथ के नाम से जाना जाता है.इस ज्योतिर्लिंग में प्रतिदिन प्रातःकालीन पूजा और संध्या काल मे बाबा बैद्यनाथ का अद्भुत श्रृंगार पूजा होता है.सांध्यकालीन श्रृंगार पूजा में बाबा को एक खास तरह का चंदन चढ़ाया जाता है जिसे घाम चंदन कहते है.घाम मतलब पसीना होता है.
यह चंदन बेल की लकड़ी से बनता है.
प्रतिदिन सवा किलो बेल से बना चंदन बाबा के मस्तक पर चढ़ाया जाता है. भगवान शंकर को बेलपत्र अतिप्रिय है.इसके नित्य सेवन करने से कई रोग समाप्त हो जाते है.बेल शरीर को ठंडा रखता है.यही कारण है कि भोलेनाथ के मस्तिष्क को ठंडा रखने के लिए देवघर के इस ज्योतिर्लिंग में प्रतिदिन संध्या पूजा के दौरान इनके मस्तक पर बेल से निर्मित चंदन का लेप चढ़ाया जाता है.फिर इस चंदन को प्रातःकालीन पूजा के समय हटा दिया जाता है.रात भर बाबा के मस्तक से निकला पसीना इस चंदन में समाहित हो जाता है.जिसे स्थानीय भाषा मे घाम चंदन कहते है.घाम मतलब पसीना होता है।बेल के लकड़ी से चंदन बनाने के लिए बाबा के सेवक प्रतिदिन गर्भगृह के बाहर पूरी श्रद्धा,निष्ठा और शुद्धता से इसे बनाते है.लगभग 3 से चार घंटा लगता है सवा किलो बेल का चंदन बनाने में.पत्थर के सिलवट पर निराहार रहते हुए बेल की लकड़ी को पीसकर चंदन बनाया जाता है.जब तक यह विशेष चंदन बाबा पर नही चढ़ता है तब तक इसको बनाने वाले निराहार रहते है.चन्दन बनाने वाले सेवक सदियों से बना रहे है.
पसीना रात भर इस चंदन में समाहित होता है
बाबा भोलेदानी के पसीना रात भर इस चंदन में समाहित होता है.सुबह जब इसको बाबा के मस्तक से हटाया जाता है तो इस अमृत समान चंदन लेने वालों की भीड़ लग जाती है.बाबा बैद्यनाथ मंदिर के सरदार पंडा पंडित गुलाबानन्द ओझा बताते है कि इस घाम चंदन का नित्य उपयोग करने से कैंसर जैसे असाध्य रोग से मुक्ति मिल जाती है.इनके अनुसार कई ऐसे उदाहरण दिए गए जिससे प्रतीत होता है कि यह सिर्फ एक चंदन नही है बल्कि संजीवनी बूटी है.इसका सेवन नित्य प्रतिदिन स्नान करने के बाद पूर्व दिशा की ओर मुख कर के एक सरसों दाना की तरह अपने मुख में लेना होता है.यहाँ के तीर्थ पुरोहित भी खुद तो सेवन करते ही है और अपने यजमानों को भी सेवन करने की सलाह देते है.वैसे तो बाबा पर अर्पित जल जिसे नीर कहते है उसके सेवन से चर्म रोग समाप्त होता है.इसके अलावा इनका घाम चंदन में ऐसी शक्ति है जिससे कई असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है.यही सब कारणों से इस शिवधाम की बात अन्य से अलग बनाती है तभी तो सालों भर यहाँ श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.
रिपोर्ट-ऋतुराज सिन्हा
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