टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : झारखंड आंदोलन के महानायक, समाज सुधारक व पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद दिशोम गुरु शिबू सोरेन पंचतत्व में विलीन हो गए. उनके जाने से भारतीय राजनीति के एक गौरवशाली और संघर्षशील युग का अंत हो गया. शिबू सोरेन, जिन्हें आज देश और खासकर झारखंड की जनता 'दिशोम गुरु' यानी 'जनजातीयों के गुरु' के नाम से जानती है, वह केवल एक राजनेता नहीं बल्कि एक युगद्रष्टा, एक आंदोलनकारी और एक सामाजिक क्रांति के अग्रदूत थे. उनके जाने से झारखंड की राजनीति, समाज और आत्मा का एक स्तंभ टूट गया. वे भले ही आज हमारे बीच न हों, लेकिन उनकी विरासत, विचार और विजन हमेशा जीवित रहेंगे.
शिबू सोरेन के विचारधारा ने बनाया झारखंड का सबसे बड़े नेता
जब भी झारखंड के इतिहास और राजनीति की बात होती है, तो एक नाम जो बिना किसी झिझक के सबसे पहले लिया जाता है, वह है शिबू सोरेन, जिन्हें लोग सम्मानपूर्वक 'दिशोम गुरु' कहते हैं. उनका जीवन सिर्फ़ एक राजनेता ही नहीं, बल्कि एक आंदोलनकारी, एक जननेता और एक क्रांतिकारी सोच का प्रतीक रहा है. उनका संघर्ष, उनकी विचारधारा और जनता से उनका सीधा जुड़ाव उन्हें झारखंड का सबसे बड़ा नेता बनाता है.
पिता की हत्या के बाद महाजनी प्रथा और सूदखोरी के खिलाफ लड़ी बड़ी लड़ाई
साहूकारों द्वारा अपने पिता की हत्या के बाद, शिबू सोरेन ने पढ़ाई छोड़कर आदिवासियों को एकजुट करने का अभियान शुरू किया, जिसके तहत वे उन्हें शिक्षा के प्रति जागरूक करने और नशे से दूर रहने के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित करते थे. साहूकारों के खिलाफ उनके द्वारा शुरू किए गए धनकटनी आंदोलन की याद आज भी रोमांचित करती है. उस दौरान मांदर की थाप पर घोषणाएँ होती थीं, महिलाएँ ज़मींदारों के खेतों से फ़सल काटने आती थीं. जबकि अन्य आदिवासी युवक धनुष-बाण से लैस होकर उनकी रक्षा करते थे. आगे चलकर यही धनुष-बाण शिबू सोरेन की राजनीतिक पहचान बन गए. बिरसा मुंडा की क्रांति अंग्रेजों के निरंकुश शासन के विरुद्ध थी, जबकि शिबू सोरेन ने आदिवासी समाज के शोषण, महाजनी प्रथा और सूदखोरी के विरुद्ध बड़ी लड़ाई लड़ी. उन्होंने स्वतंत्र झारखंड राज्य के लिए आंदोलन चलाया.
'शिव चरण मांझी' से ऐसे बने दिशोम गुरु शिबू सोरेन
शिबू सोरेन ने 1972 में ऐतिहाहासिक कदम उठाते हुए झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया. जिसका उद्देश्य था झारखंड को अलग राज्य की मांग, आदिवासियों की जमीन की रक्षा और बाहरी शोषण के खिलाफ संगठित संघर्ष था. शिबू सोरेन एक समाजसेवी से राजनीति के शिखर तक पहुँचे. झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक, विधायक, मुख्यमंत्री, सांसद और केंद्रीय मंत्री तक, उन्होंने जिस कुशलता से कई भूमिकाएँ निभाईं, वह अतुलनीय है. लगभग चार दशकों के अपने राजनीतिक जीवन में, वे लोकसभा के साथ-साथ राज्यसभा के भी सदस्य रहे. वे तीन बार झारखंड के मुख्यमंत्री रहे. आदिवासियों और गरीबों के सशक्तिकरण के लिए पूरी तरह समर्पित शिबू सोरेन आदिवासियों के प्रिय और सम्मानित नेता थे. यह विडंबना ही है कि झारखंड गठन के गौरवशाली 25 वर्ष पूरे होने से कुछ महीने पहले ही उनका निधन हो गया, लेकिन उनके ‘आदर्श और विचार आने वाले समय में भी लोगों को प्रेरित करते रहेंगे.’
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