टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : अक्सर चावल या दाल पकाते समय हम एक दाना निकाल कर देखते हैं कि यह पका या नहीं. कुछ यही हाल है समाज में महिलाओं की अभिव्यक्ति का. अगर आप, आपके परिवार, पड़ोस या गांव में कोई महिला पीड़ित है तो इसका मतलब है कि और भी कई महिलाएं इस दर्द से गुजर रही हैं. अक्सर हम घर परिवार की इज्जत, समाज क्या कहेगा आदि के नाम पर उफ तक नहीं करते. महिला सशक्तिकरण के लिए काम कर रही महिलाओं ने इस सूत्र की पहचान कर अपने अनुभवों का निचोड़ देते हुए कहा है कि पर्सनल इज पॉलिटिकल. एक के प्रतिरोध में दूसरी कई महिलाओं की तकलीफों का इलाज छिपा है. इसी विश्वास के साथ आज हम बोलेंगे, मुंह खोलेंगे…. मिलिए न्यूज पोस्ट की टीम की महिला टीम से और जानिए क्या है महिला दिवस पर उनकी सोच…….
...क्योंकि पर्सनल इज पॉलिटिकल
माया महा ठगनी हम जानी...त्रिया चरित्रं देवम न जानम...जाने कितने पूर्वाग्रह कैसे कैसे पैठ कर रखा है पुरुषों ने पीढ़ियों से. हमें इन पूर्वाग्रहों से मुक्ति चाहिए. जी हां, आठ मार्च को जब एक बार फिर सवाल उठा कि हम महिलाएं किससे मुक्ति चाहती हैं तो हम बता दें कि हमें न पुरुषों से मुक्ति चाहिए और न परिवार, समाज या देश से. हमारी लड़ाई बस पीढ़ी दर पीढ़ी स्थापित कर दी गई उस पुरुषवादी मनोवृति से है जो महिलाओं को खुद से कमतर समझते हैं. हां, हम जानते हैं कि दोषी पुरुष नहीं, बल्कि पितृसत्तात्मक व्यवस्था है जो जन्म से मृत्यु तक पुरुषों को एक ही पाठ पढ़ाती है कि महिलाएं उनसे कमतर हैं. उनके भोग के लिए हैं. हमारी लड़ाई में भी हमारी जिम्मेदारी छिपी है, क्योंकि हम जानते हैं कि पुरुष कहीं दूसरी दुनिया से आयातित नहीं, बल्कि हमारी ही कोख से आया है. जाहिर है कि जब जन्म हमने दिया है तो उसके परवरिश में हुई भूल चूक की जिम्मेदारी भी हमारी ही है. - चेतना झा
समाज करे ठोस पहल
महिला पुरूष को जन्म देती है इसलिए वह पहले से ही सशक्त है, सशक्तिकरण का मतलब नौकरी नहीं है. सशक्तिकरण का अर्थ है कि वह खुद को कमतर न समझे. समाज महिला को देवी नहीं इंसान समझे और उसकी गलती को स्वीकार करते हुए उसे सम्मान दे.समाज महिलाओं के प्रति संवेदनशील बने.महिलाओं की सुरक्षा आज सबसे बड़ी चुनौती है.ऐसे में समाज और सरकार इस दिशा में ठोस पहल करें.जैसे हर कामयाब पुरुष के पीछे एक औरत का हाथ होता है वैसे ही आज की सशक्त महिला के पीछे भी पुरूष खड़े हैं. -अन्नी अम़ृता
क्या चुप रहेंगे…नहीं बिल्कुल नहीं
पूरी दुनिया में हर साल 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है. अपने घर से लेकर देश की तरक्की में महिलाओं ने हर संभव अपना योगदान दिया है.साल के 365 दिन उनके त्याग और परिश्रम के लिए न्यौछावर किये जाए तो भी कम है. मगर इस एक दिन समाज महिलाओं द्वारा की गयी हर तपस्या का सम्मान करता है. लड़की हैं तो क्या चुप रहेंगे…नहीं बिल्कुल नहीं. - रंजना कुमारी
A day to cherish..
International woman’s day is a day to celebrate woman, to cherish her selfless care and love to the family and also to recognize and facilitate her achievements as a woman. It’s a day we talk about woman equality, woman dignity and women’s rights. But only talking would not work, a woman needs to raise her voice against every action she thinks is inappropriate, be it at work place or back at home. She should back fire and respond, rather keeping shut and motivate the negativity around her. Let us love, support and motive all the women out there. Happy International Woman’s Day..! -श्रेया गुप्ता
मैं कुछ बन कर ही दिखाऊंगी
आज सबसे ज्यादा महिला सशक्तिकरण की बातें हो रही हैं. लेकिन महिला दिवस का औचित्य तब तक प्रमाणित नहीं होता जब तक सही अर्थों में महिला की दशा नहीं सुधरती. वास्तविक सशक्तिकरण तभी होगा जब महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होंगी और उनमें कुछ करने का आत्मविश्वास जागेगा. महिला दिवस के अवसर पर अपने आप से कहें कि मैं कर सकती हूं, मैं करूंगी, मैं कुछ बन कर ही दिखाऊंगी, मैं प्रण लेती हूं ....मैं फिर से सभी को महिला दिवस की शुभकामनाएं देती हूं. -समीक्षा सिंह
बदलाव के लिए जरूरी मुखरता
एक महिला को दूसरे से किसी सशक्तिकरण और विशेषाधिकार की आवश्यकता नहीं है, वह स्वयं शक्तिशाली और विशेष है. एक नारी जो डॉक्टर, इंजीनियर, पत्रकार, राजनेता जैसे सभी वर्ग मे उचाई छूने वाले को जन्म देती है तो उसके सम्मान के लिए अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुभकामनाएं. हर दिन महिलाओं को खुद आवाज उठानी होगी, तभी होगा बदलाव. - अशु शुक्ला
हर महिला अपने आप में एक हीरा है. सभी की अपनी कहानी, अपनी कठोर तपस्या होती है. यही वजह है कि आज महिलाएं किसी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं. चाहे वह घर की बात है या बाहर की. पूरे देश और दुनिया में महिलाएं अपना अलग अस्तित्व बना चुकी है. यही उत्साह और जोश आगे भी बना रहे. पहले के मुकाबले अब लोगों की मानसिकता भी बदली है. लेकिन आज भी समाज में कुछ वर्ग ऐसे हैं जो अब भी महिलाओं को उनका अधिकार नहीं दे रहे. -शाम्भवी सिंह
बराबरी की बात बेमानी
महिलाएं पुरुषों के बराबर नहीं है. वे पुरुषों से एक कदम आगे हैं. पुरुषों की जननी हैं. ऐसे में बराबरी की बात बेमानी है. हर वह घर खुशनसीब है जहां बहू-बेटियां हैं. महिलाओं का सम्मान करना सीखना परवरिश का हिस्सा है. - संध्या कुमारी
रिपोर्ट : चेतना झा, रांची
Recent Comments