झारखंड में 28 महीने का क्या है टोटका, सियासत से यह कैसे है जुड़ा ..जानिए वर्तमान संदर्भ में झारखंड का राजनीतिक इतिहास
रांची- झारखंड के गठन का लगभग दो दशक से अधिक का समय हो गया है. यह राज्य बिहार से कटकर बना तो काफी उम्मीद थी कि झारखंड तेजी से आगे बढ़ेगा. खनिज संसाधन से संपन्न यह राज्य राजनीतिक रूप से शायद परिपक्व नहीं था. राजनीतिक सूझबूझ और विकास के प्रति राजनेताओं का समर्पण अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहा. यही वजह है कि झारखंड के निर्माण के बाद कई अति महत्वाकांक्षी नेताओं ने व्यक्तिगत स्वार्थ हित के कारण राजनीतिक कमजोरी का परिचय दिया.सरकारों का बनना और बिगड़ना होता रहा. 2014 तक झारखंड ने राजनीतिक अस्थिरता का वह दौर देखा जिसमें लगभग 15 साल के कालखंड में 9 मुख्यमंत्री बनते और हटते देखा है.
पहली दफा 2014 के विधानसभा चुनाव में एनडीए को पूर्ण बहुमत मिला और राज्य में एक स्थिर सरकार बनी है जो पूरे 5 साल तक चली रघुवर दास के नेतृत्व में यह सरकार काम करती रहे यह अलग बात है कि जनता ने उनके काम को 2019 के विधानसभा चुनाव में पुरस्कृत नहीं किया और वह सत्ता से बाहर हो गए भाजपा के नेतृत्व वाली यह सरकार एक बड़ा संदेश दे गई राज्य में झारखंड मुक्ति मोर्चा कांग्रेस और राजद की संयुक्त सरकार बनी जो फिलहाल चल रही है. राजनीतिक नब्ज पहचानने वाले लोगों का कहना है कि वर्तमान में जो राजनीतिक परिदृश्य है वह अच्छा नहीं दिख रहा. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर जो लगातार आरोप लग रहे हैं .उससे संकट बढ़ता दिख रहा है. अब रही बात 28 महीने का क्या झारखंड से संबंध रहा है.झारखंड बनने के बाद पहली बार बाबूलाल मरांडी मुख्यमंत्री बने यह सरकार काम करने लगी बाबूलाल मरांडी के काम की तारीफ की हो रही थी, लेकिन अचानक राजनीतिक बवंडर ने 28 महीने के काम के बाद बाबूलाल मरांडी की छुट्टी कर दी.
28-28 महीने के सत्ता का खेल
भाजपा और झारखंड मुक्ति मोर्चा के सहयोग से 2011 में सरकार बनी यह सरकार 28-28 महीने के सत्ता हस्तांतरण फार्मूले पर बनी थी. भाजपा के 28 महीने के बाद सत्ता जारखंड मोर्चा को हस्तांतरित होनी थी फिर राजनीतिक स्वार्थ और और अदूरदर्शिता का परिचय दिखने लगा सरकार भरभरा कर गिर गई. यहां भी 28 महीने का टोटका महसूस किया गया
सरकार और माइनिंग लीज़ विवाद
2019 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को बेदखल कर गठबंधन सरकार ने सत्ता पर कब्जा जमाया. झारखंड की जनता ने इस गठबंधन को बड़ी उम्मीद से सत्ता की बागडोर सौंपी है. लेकिन कुछ मामले ऐसे आ रहे हैं जिससे सरकार की सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता दिख रहा है. मुख्यमंत्री द्वारा अनगड़ा में माइनिंग लीज लिए जाने का मामला, पत्नी कल्पना सोरेन के नाम बिजुपाड़ा में भूमि आवंटन करवाना ,मंत्री मिथिलेश ठाकुर पर भी पद के दुरुपयोग का आरोप लग रहा है.मंत्री आलमगीर आलम के बारे में भी जांच की बात कही जा रही है. स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता अलग विवाद में हैं.लिहाजा यह सरकार भी 28 महीने के उस पड़ाव पर है जहां राज्य के भविष्य के साथ उथल-पुथल हो रहा है.
राज्यपाल ने राज्य की स्थिति से अवगत कराया
राज्यपाल रमेश बैस ने दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को झारखंड की तमाम वस्तु स्थिति से अवगत कराया है. मुख्यमंत्री के माइनिंग लीज का मामला भारत निर्वाचन आयोग जांच रहा है .प्रमुख विपक्षी दल भाजपा लगातार सरकार पर हमला कर रही है.विधि व्यवस्था से लेकर खनिज संसाधनों की तस्करी का आरोप लगातार लग रहा है .झारखंड में केंद्रीय जांच एजेंसियां अपनी आंखें फाड़ फाड़ कर मुआयना कर रही हैं. लिहाजा सत्तापक्ष को डर सताने लगा है. वैसे सत्ता पक्ष के लोग लगातार दावा कर रहे हैं कि भाजपा के द्वारा लगाए जा रहे आरोप सच्चाई से परे हैं और यह सरकार को अस्थिर करने की साजिश है. इधर भाजपा का कहना है कि सारे काम सत्ता पक्ष के लोग कर रहे हैं. माइनिंग लीज दिलाने में भाजपा की कहीं कोई भूमिका नहीं रही है. बेवजह आरोप लगाना ठीक नहीं है. जनता सब जानती है.
संकट से निकलना सरकार के लिए अहम
अब ऐसे में क्या कहा जाए कि सरकार यहां संकट में है. यह कहना जल्दबाजी होगी. पर, 28 महीने का यह टोटका लोगों को पूर्व की राजनीतिक घटनाओं की याद दिला रहा है. राजनीतिक अस्थिरता किसी भी राज्य के लिए या देश के लिए विकास के पैमाने पर अच्छी नहीं मानी जाती है. फिलहाल झारखंड में जो राजनीतिक माहौल है, उससे लोग रूबरू हो रहे हैं. रिजल्ट क्या होता है, यह अभी बाकी है. इसका सभी को इंतजार है.
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Rashid Ameen Pandith
2 years agoLast year you submitted me as a performer of the year but when i entered in your offical page i didn't get any information regarding my performance of the year could you please send me back through my email id it will be your most kindness