टीएनपी डेस्क (TNP DESK): देश में आत्महत्या के आंकड़े में अप्रत्याशित इज़ाफ़ा डराता है. अगर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau) की पिछले दिनों जारी रिपोर्ट को देखें तो आपकी धड़कनें बढ़ सकती हैं. हैरान करने वाली बात है कि अपनी जान खुद से लेने वालों में दिहाड़ी और किसानी मजदूर के अलावा छोटे-मोटे काम-धंधे कर अपना और अपने परिवार का गुजर-बसर करने वाले लोग इसमें अधिक हैं. चलिये इस राष्ट्रीय व्यथा को समझने की काशिश करते हैं.
सोचने को मजबूर करती अमानवीय स्थिति
वरिष्ठ पत्रकार व ईयू-एशिया न्यूज के दिल्ली संपादक पुष्परंजन बताते हैं, कि 2021 में आत्महत्या करने वालों में 25.6 प्रतिशत वैसे लोग थे, जो दिहाड़ी पर काम करते थे. केंद्र शासित प्रदेशों में सर्वाधिक आत्महत्या दिल्ली में पिछले साल हुई है. जो लोग गाँव -क़स्बों से राष्ट्रीय राजधानी रोज़गार की उम्मीद में आते हैं, उनका भी भ्रम टूटा है. 2021 में दिल्ली में 2840 लोगों ने जान दे दी. राज्यों की हम बात करें तो महाराष्ट्र में सबसे अधिक 22 हज़ार 207, तमिलनाडु में 18 हज़ार 925, मध्य प्रदेश 14 हज़ार 956, बंगाल 13,500 और कर्नाटक में 13,056 लोगों ने जीवन से निराश होकर जान दे दी. वह सवाल उठाते हैं कि यूरोप के किसी देश में ऐसी रिपोर्ट पर सरकारें हिल जाती हैं. मगर, अपने देश में इतनी संजीदा और अमानवीय स्थिति पर सोचने की चिंता न सरकार को है, न समाज को.
एनसीआरबी की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक़
एनसीआरबी (National Crime Records Bureau) की रिपोर्ट के मुताबिक, 2021 में कुल 1,64,033 लोगों ने आत्महत्या की. जिसमें पुरुष की तादाद 1,18,97 थी. इसमें 37,751 दिहाड़ी मजदूर, 18,803 स्वरोजगार करने वाले और 11,724 बेरोजगार शामिल थे. 45,026 महिलाओं ने भी इसी साल आत्महत्या की. जबकि खेती-किसानी से जुड़े 10,881 लोगों ने अपनी इहलीला खत्म की. इसमें 5,318 किसान (5107 पुरुष और 211 महिलाएं) और 5,563 (5,121 पुरुष और 442 महिलाएं) खेतिहर मजदूर थे. 2021 में आत्महत्या करने वाले 1,05,242 लोगों की वार्षिक आय एक लाख रुपये से कम थी, जबकि 51,812 लोग एक लाख रुपये से पांच लाख रुपये तक की वार्षिक आय वर्ग के थे.
इन राज्यों में सबसे अधिक आत्महत्या
किसान और मजदूरों ने सबसे अधिक आत्महत्या महाराष्ट्र में की. इसका प्रतिशत 37.3 है. इसके बाद, कर्नाटक में 19.9 प्रतिशत, आंध्र प्रदेश 9.8 प्रतिशत, मध्य प्रदेश 6.2 प्रतिशत और तमिलनाडु में 5.5 प्रतिशत किसानों ने आत्महत्या की. लेकिन झारखंड, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, त्रिपुरा, मणिपुर, अरूणाचल प्रदेश, उत्तराखंड, चंडीगढ़, लक्षद्वीप और पुडुचेरी आदि राज्यों के आंकड़े शून्य है.
2019 में भी भयावह थे हालात
बता दें कि 2019 में भी आत्महत्या के आंकड़े डरावने आए थे. तब भी एनसीआरबी ने रिपोर्ट जारी की थी. जिसके अनुसार, 1,39,123 लोगों ने आत्महत्या की थी. इसमें 32,559 दिहाड़ी मज़दूर थे. इनका प्रतिशत 23.4 था. आंकड़े के मुताबिक 2019 में आत्महत्या करने वाला हर चौथा व्यक्ति दिहाड़ी मज़दूर था.
क्या रही है प्रमुख वजह
एनसीआरबी की रिपोर्ट 2021 की है. यह वही साल है, जब समूची दुनिया कोविड-19 महामारी (Covid-19 Pandemic) से जूझ रही थी. रोजी-रोटी की जुगत में गांव से नगर की ओर गए लोगों को अचानक घर-गांव लौटना पड़ा था. उनके रोजगार छिन गए थे. समाजशास्त्री कहते हैं कि मजदूर दिन-रात कड़ी मेहनत तो करते हैं लेकिन उन्हें उनका सही पारिश्रमिक नहीं मिलता. यह कारण भी दिहाड़ी मजदूरों की आत्महत्या के पीछे माना जाता है. श्रमिक अधिकार के लिए सक्रि सामाजिक कार्यकर्ता चंदन कुमार कहते हैं, "दिहाड़ी मज़दूरों का आत्महया करना कोई नई समस्या नहीं है। यह तो बहुत पहले से चला आ रहा है, जो अब देश की अर्थ व्यवस्था के लिए घोर संकट बन गया है. इस समस्या की शुरुआत वस्तु एवं सेवा कर (GST) और नोटेबंदी से हुई. सरकार की तरफ से पूरी अनदेखी हुई है. मज़दूर अपना श्रम लगाता है. उसी श्रम पर उसका हर रोज़ का भोजन टिका होता है. और उन्हीं पैसों में से दो पैसे की बचत भी करता है पर सरकार इन्हें इनका उचित मेहनताना नहीं देती. इस पर कोविड-19 का कहर मानो दिहाड़ी मज़दूरों पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. हताश मज़दूरों के पास खुद की ज़िन्दगी ख़त्म करने के अलावा और कोई चारा नहीं रह गया.
The News Post की अपील
आत्महत्या कभी भी किसी मसले का हल नहीं होती. इससे समस्या कम नहीं होती, बल्कि परिवार में बढ़ जाती है. आत्महत्या एक गंभीर मनोवैज्ञानिक और सामाजिक समस्या है. अगर कभी किसी बात को लेकर मन-मस्तक में तनाव बढ़े तो तुरंत अपने दोस्तों से, रिश्तेदारों से बात करें. संभव हो तो साइकेट्रिस्ट से मिलें। इसके अलावा केंद्र सरकार की जीवनसाथी हेल्पलाइन 18002333330 से भी मदद ले सकते हैं.
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