टीएनपी डेस्क (TNP DESK) : झारखंड पर अब नीतीश कुमार की नज़र, इसकी वजह की शुरुआत के लिए थोड़ा पीछे जाना होगा. जब खीरु महतो झारखंड प्रदेश जदयू के अध्यक्ष बनाए गए. और एक ही साल बाद जदयू सुप्रीमो नीतीश कुमार ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया. पहले बताते हैं कि खीरु कौन हैं और इनकी चर्चा क्यों कर रहे हैं हम. खीरु समाजवादी विचारों के माने जाते हैं. हजारीबाग में 1953 की किसी तारीख उनका जन्म हुआ. राजनीति में उनकी शुरुआत 1978 में मुखिया बनने से हुई. नीतीश के प्रति उनका झुकाव समता पार्टी के दिनों से है. हालांकि जब जदयू का रूप सामने आया, तो जेडीयू के टिकट पर खीरू 2005 में हजारीबाग के मांडू विधानसभा क्षेत्र से विधायक निर्वाचित हुए. जॉर्ज फर्नांडीस के बेहद निकट रहे, जब भी झारखंड दौरे पर जॉर्ज आते थे तो खीरू महतो से जरूर मिलते थे.
खीरु महतो को आगे करने का कारण
ख्रीरु महतो कुर्मी/कुड़मी समुदाय से आते हैं. यह वर्ग 1931 तक आदिवासी की सूची में शामिल था, जिसे बाद में पिछड़े वर्ग में शामिल कर दिया गया. झारखंड में इसकी आबादी 14 से 16 प्रतिशत है. हालांकि कुर्मी नेता दावा करते हैं कि उनकी जनसंख्या करीब 22 प्रतिशत है. कहा जाता है कि झारखंड की कुल 14 लोकसभा सीट में से करीब आधी सीट कुर्मी बहुल है तो 81 विधानसभा सीटों में से 30 सीट कुर्मी बहुल है. नीतीश स्वयं भी इसी वर्ग से आते हैं और बिहार के बाद अब उनकी नजर झारखंड के कुर्मी वोटों पर है.
नीतीश का फोकस तीन राज्य पर अधिक
नीतीश कुमार ने जब से भाजपा से अलग होकर सात दलों का साथ लिया है, उनका अब एक ही लक्ष्य है केंद्र से भाजपा को च्युत करना. इसके लिए वे विपक्ष को एकजुट करने का प्रयास कर रहे हैं. अबतक सभी प्रुमख नेताओ से बात कर चुके हैं. उनका फोकस बिहार के अलावा झारखंड और यूपी के लोकसभा सीटों पर है. इन तीन राज्यों को मिलाकर कुल 135 सीट आती हैं. पिछले दिनों लखनऊ में सपा की ओर से लगाया बैनर-पोस्टर काफी चर्चित रहा, जिसमें लिखा था यूपी जोड़ बिहार हट गई मोदी सरकार. यह पोस्टर उसी योजना का हिस्सा कहा जा रहा है. झारखंड में पहले से ही गैरभाजपा सरकार है, जिसमें गठबंधन के दल शामिल हैं.
क्या है नीतिश की रणनीति
नीतीश कुमार झारखंड में हाशिये पर चल रहे कुर्मी नेताओं को भी अपनी पार्टी में जोड़ना चाहते हैं. इनमें झामुमो के संस्थापकों में रहे शैलेन्द्र महतो हैं. हालांकि वह 1998 में झामुमो को छोड़ पत्नी आभा महतो के साथ भाजपा में शामिल हो गए थे. वह जमशेदपुर से सांसद रहे हैं. आभा महतो भी भाजपा की टिकट पर सांसद रही हैं. फिलहाल दोनों हाशिये पर हैं. कोयलांचल में भीकुर्मी समाज का खासा असर है. यहां के स्थानीय कुर्मी अब तक झामुमो के साथ रहे हैं, वहीं बाहरी कुर्मी आजसू और नीतीश कुमार के कारण भाजपा को वोट देते रहे हैं. नीतीश इनको अब अपनी ओर जोड़ना चाहते हैं. कोयलांचल में जलेश्वर महतो को नीतीश आगे कर सकते हैं, हालांकि अभी वी कांग्रेस में हें, लेकिन हाशिये पर ही हैं. आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो को हालांकि झारखंड का रामविलास पासवान कहा जाता है, वह कब किधर होंगे कहा नहीं जा सकता है. हमेशा सत्ता की ओर वह रहते आए हैं. उनका साथ अगर नीतीश को साथ मिल जाए तो उनके सपने को पंख लग सकते हैं. नीतीश कुमार पिछले दिनों आजसू सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी से मिल भी चुके हैं. चंद्रप्रकाश सुदेश महतो के करीबी माने जाते हैं. इसके अलावा नीतिश कभी जदयू से जुड़े रहे पहले विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी, रमेश सिंह मुंडा, बैद्यनाथ राम, रामचंद्र केसरी, सुधा चौधरी, राजा पीटर आदि को भी जोड़ने का प्रयास करेंगे.
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