रांची (RANCHI): जो दिखता है, वो होता नहीं और जिसके होने की संभावना रहती है, वैसा होता नहीं. आजकल झारखंड की राजनीति में कुछ ऐसा ही दृश्य है. विश्व की सबसे बड़ी पार्टी होने का दंभ भरने वाली भाजपा ने हेमंत सोरेन की अगुवाई में बनी गठबंधन सरकार को शुरुआत से ही घेरने की कोशिश जरूर की. लगातार कई महीनों तक एक मजबूत विपक्ष की उसकी भूमिका सराहनीय रही. लेकिन सब दिन एक से नहीं होते. धीरे-धीरे ताश के पत्ते की तरह उसकी रणनतियां बिखरती चली गईं और आज की तारीख में हेमंत सोरेन ने भाजपा को चारों खाने मानो चित्त कर दिया है. हम ऐसा क्यों कह रहे हैं, चलिये समझने का प्रयास करते हैं.
बात मार्च में हुए बजट सत्र से ही करते हैं. हेमंत सोरेन सरकार के खिलाफ मुद्दों की कोई कमी नहीं है. लेकिन सदन के अंदर या बाहर सरकार को घेरने में भाजपा नाकाम रही. इसके विधायक एक दूसरे का रास्ता काटने में लगे रहे. पांकी से भाजपा विधायक कुशवाहा शशिभूषण मेहता सदन में अपने ही विधायक पर नाराजगी जतलाते हुए करते नजर आए थे. उनका आरोप था कि कुछ सीनियर सदस्य सदन को डोमिनेट कर रहे हैं. वहीं उस दौरान जब मुख्य सचेतक विरंची नारायण अपनी बात रखना चाहते थे तो भाजपा के ही विधायक उन्हें बोलने से रोकते रहे.जबकि विरंची बार-बार उन से आग्रह करते रहे थे.
अब इधर, जब ऑपरेशन लोटस की चर्चा रही और हेमंत ने रायपुर यूपीए विधायकों को शिफ्ट किया और उसके बाद विश्वास मत दिखाने के लिए एक दिन का विशेष सत्र बुलाया, तब भी भाजपा बौनी दिखलाई पड़ी. ऑफिस आफ दी प्राफिट मामले में हेमंत के विऱद्ध चली चाल में भी अब भाजपा फंसती दिखलाई दे रही है. इसके बाद तो सरकार की ताबड़तोड़ घोषणाओं ने फिजा ही बदल दी.
ताजा मामला 1932 खतियान और ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण. जब कैबिनेट ने इसे मंजूरी दी तो भाजपा की कोई प्रतिक्रिया ही सामने नहीं आई। महज़ टवीटर पर गोड्डा सांसद तंज करते रह रहे. लेकिन प्रदेश भाजपा के किसी भी दिग्गज ने असरदार बयान जारी नहीं किया. ना ही कोई विधायक ही कुछ बोले. उन्हें बोलने से भी मना कर दिया गया. हैरत ये है कि जिन्हें भाजपा ने नेता प्रतिपक्ष बनाया है, वो राज्य के पहले मुख्यमंत्री भी रहे हैं बाबूलाल मरांडी. उनकी भी बोलती बंद. वो बोले भी तो क्या बोलें. क्योंकि इस खतियानी राजनीति का श्रीगणेश ही वही करने वाले हैं. बात 2002 की है. बाबूलाल मुख्यमंत्री थे. उन्होंने 1932 के खतियान को स्थानीयता का आधार बनाने की कोशिश की तो झारखंड में मानो आग लग गई थी. जमकर इसका विरोध हुआ था. जब अर्जुन मुंडा ने गद्दी संभाली तो उन्होंने तीन सदस्यीय कमेटी इसको लेकर बना दी थी. सुदेश महतो इसके अध्यक्ष थे. लेकिन इसकी रिपोर्ट ठंडे बस्ते में दबकर रह गई.
कल रात कई घंटे भाजपा नेताओं ने बैठक की. उसके बाद जब मीडिय ने सवाल दागने शुरू किये तो घिगघी बंधती नजर आई. नेता एक-दूसरे पर सवाल का जवाब टालते दिखे. जवाब तो दिया लेकिन गोलमोल. राजद से भाजपा में आईं सेंट्रल मिनिस्टर अन्नपूर्णा देवी और बाबूलाल मरांडी ने मीडिया से कहा कि दोनों फैसले कहीं ना कहीं सरकार ने आनन-फानन लिये हैं. बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश बोले कि भारतीय जनता पार्टी जन भावना का सम्मान करते हुए एक विधि सम्मत निर्णय की पक्षधर है. जो झारखंड की जनता के हित में हो.
भाजपा के वाटर्स ओबीसी बड़ी संख्या में हैं. खतियान पर चुप्पी है ही, ओबीसी आरक्षण के सरकारी निर्णय पर भी उन्हें न समर्थन करते बन रहा है और ना ही विरोध करते. खतियान और ओबीसी आरक्षण का मुद्दा भाजपा के लिए गले की हड्डी सा बनकर रह गया है, न निगलते बने और ना ही उगलते.
जलील मानिकपुरी का एक शेर याद आता है:
वादा कर के और भी आफ़त में डाला आप ने
ज़िंदगी मुश्किल थी अब मरना भी मुश्किल हो गया
अब झारखंड के भाजपा नेता किसको कह रहे हैं, किसने जनता से वादा किया और अब यहां इनके साथ कौन सी मुसीबत गले आन पड़ी है आप समझ सकते हैं.
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