टीएनपी डेस्क(TNP DESK): देश में लाखों देवी-देवताओं के चमत्कारिक और ऐतिहासिक मंदिर है जिनका अपना-अपना धार्मिक महत्व और गौरवशाली इतिहास है.आज हम देश के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने वाले जहां भोग में लड्डू पेड़ा नहीं बल्कि लंगोट चढ़ाया जाता है ये अनोखा मंदिर कहां स्थित है और इसका ऐतिहासिक महत्व क्या है चलिए बताते है.

700 साल पुराना है इतिहास 

अब तक आप लोगों ने सुना होगा कि देवी-देवताओं को लड्डू पेड़ा अलग-अलग तरीके से स्वादिष्ट मीठे पकवान मिठाई, फल-फूल आदि भोग लगाया जाता है. लेकिन बिहार का एक ऐसा ऐतिहासिक मंदिर है जो 700 साल पुराना है,जहां प्रसाद में लड्डू पेड़ा फल फूल की जगह लंगोट चढ़ाया जाता है.है ना थोड़ी अजीबो गरीब बात लेकिन ये सच है.

हर साल होता है मेले का आयोजन

बिहार के नालंदा में बिहारशरीफ के पंचाने नदी किनारे 700 साल पुराने लंगोट वाले बाबा का मंदिर स्थित है. यह मंदिर अपने आप में काफी ज्यादा खास है,क्योंकि यहां का प्रसाद से लेकर यहां का इतिहास तक सब बहुत ही चमत्कारिक है. मंदिर में देश के साथ विदेश से भी लोग दर्शन करने आते हैं और प्रसाद में लंगोट चढ़ाते है. वहीं हर साल यहां जुलाई के महीने में मेले का भी आयोजन किया जाता है जो बड़े धूम धाम से होता है.

मेले में लाखों लोगों होती हैं भीड

इस साल 2025 में 10 से 17 जुलाई तक यहां एक सप्ताह का मेला लग चुका है. जहां लोगों की भीड़ देखी जा रही है.बिहार के साथ-साथ राज्य के बाहर से भी लोग लंगोट वाले बाबा के दर्शन करते है, पहले पूजा पाठ करते है और उसके बाद मंदिर से निकलने के बाद मेले का आनंद लेते है.

पढ़ें कौन थे संत मणिराम

लंगोट वाले बाबा मणिराम नाम के बहुत बड़े पहलवान थे उन्हें शरीर आत्मा की शुद्धि के लिए पहलवानी का रास्ता चुना और पहलवानी को ही अपना जीवन समर्पित कर दिया.ऐसा मान्यता है कि लंगोट चढ़ाने से सारी मन्नतें पूरी होती है इसलिए लोग यहां रोजना पहुंचते है और लंगोट चढ़ाते है.

सबसे पहले जिला प्रशासन की ओर से चढ़या जाता है लंगोट

यहां की सबसे अनोखी बात यही है सबसे पहले यहां जिला प्रशासन की ओर से लंगोट चढ़ाया जाता है.उसके बाद ही मेले की शुरूआत की जाती है. और , इसके बाद आम लोग यहां पूजा-पाठ कर सकते है, या लंगोट चढ़ाते है.हर साल यहां एक सप्ताह का मेला लगता है पहले यहां 5 दिनों का हुआ करता था लेकिन अब इसे बढ़ाकर 8 दिन कर दिया गया है.

यहां मांगी गई हर मन्नत होती है पूरी

बताया जाता है कि रामनवमी के अवसर पर यहां लंगोट चढ़ाया जाता था लेकिन साल 1952 में इसे व्यापक रूप दिया गया.दरअसल 1952 में उत्पाद निरीक्षक कपिल देव प्रसाद ने अपनी पुत्र प्राप्ति की मन्नत मांगी थी जब उनकी ये मन्नत पूरी हो गई तो उन्होने काशी से विद्वान पंडितों को आषाढ़ गुरु पूर्णिमा के दिन बुलाया और विशेष पूजा अर्चना कर लंगोट चढ़ाया इसके बाद से दिन से हर साल मेले की शुरूआत की गई.

इंदिरा गांधी से भी जुड़ा हुआ है मंदिर का इतिहास 

जानकरों की माने तो मणिराम एक महान पहलवान के साथ सनातन धर्म के बड़े प्रचारक थे पहलवानी के माध्यम से इनहोने सनातन धर्म का काफी प्रचार प्रसार किया और सन 1300 इसवी में समाधि ले ली.वही इस मंदिर का इतिहास देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भी जुड़ा हुआ है कहा जाता है कि जब 1975 में आपातकाल लागू हुआ तो उसके बाद 1977 में इंदिरा गांधी सत्ता से बाहर हो गई थी वही सत्ता में दोबारा आने के लिए इंदिरा गांधी ने बाबा मनीराम से मन्नत मांगी थी जिसकी मन्नत पूरी हो गई थी.आज भी बाबा मणिराम के बगल में इंदिरा गांधी की प्रतिमा स्थापित जहां हर 15 अगस्त 26 जनवरी को माल्यार्पण किया जाता है.