देवघर(DEOGHAR): पवित्र सावन महीने में कांवर यात्रा ऐतिहासिक है. सुल्तानगंज से पवित्र गंगा का जल भरकर देवघर के बाबा बैद्यनाथ को चढ़ाने से श्रद्धालुओं की सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती है. ऐसी मान्यता है कि लंकापति रावण और मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने उत्तरवाहिनी सुल्तानगंज से गंगा का जल भरकर पैदल चलकर बाबा बैद्यनाथ की पूजा-अर्चना की थी, तभी से यह परंपरा बनी हुई है. स्कंद पुराण में वर्णित है कि जो नर-नारी कंधे पर कांवर रखकर अपनी यात्रा पुरी करते हैं, उन्हे अश्वमेघ यज्ञ का पुण्य प्राप्त होता है.

दरअसल, सावन महीने के दौरान तरह-तरह के सुंदर कांवर को गंगा जल से भरकर अपने कंधे पर रख नर-नारी सुल्तानगंज से देवघर 105 किलोमीटर की पैदल यात्रा करते हैं और इसे ऐतिहासिक बनाते हैं. यह परंपरा कई सालों से चली आ रही है. ऐसी मान्यता है कि सर्वप्रथम स्वंय रावण ने अपनी पत्नी के साथ भगवान भोले को प्रसन्न करने के लिए कांवर में जल भरकर पवित्र द्वादश ज्योतिर्लिंग का जलाभिषेक किया था. बाद में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने भी कांवर में जल रखकर सुल्तानगंज से पैदल जल भरकर बाबा बैद्यनाथ का जलाभिषेक किया था.

कांवर में जल भरने के बाद ये ना करें शिवभक्त

सुल्तानगंज की उत्तरवाहिनी गंगा से संकल्प के साथ कांवर में जल भरने के बाद रास्ते में कांवर की पवित्रता बनाए रखने के लिए कांवरियों को कई नियमों का पालन करना पड़ता है और भक्त उसे पूरी तरह निभाते है. स्कंद पुराण में वर्णित है कि जो नर-नारी कंधे पर कांवर रखकर अपनी यात्रा पुरी करते हैं, उन्हें अश्वमेघ यज्ञ का पुण्य प्राप्त होता है, शायद यही वजह है कि लाखों कांवरियां कांवर के साथ सावन के माह में बाबा बैद्यनाथ का जलाभिषेक करने देश के अलग-अलग कोने-कोने से आते है.

पवित्र सावन के महीने में प्रत्येक दिन हजारों की संख्या में कांवरियां सुल्तानगंज स्थित उत्तरवाहिनी से गंगा जल भरकर बाबा धाम आते है. आने के क्रम में पूरे रास्ते कांवरियां सिर्फ बम के नाम से जाने जाते है और रास्तेभर सभी लोग बोल बम का उच्चारण करते है. देवघर के कांवरियां पथ पर जहां लाखों की संख्या में आने वाले श्रद्धालु के मुख से सिर्फ बोल बम का उच्चारण किया जाता है. सुल्तानगंज से जल भरकर 105 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर बोल-बम, बोल-बोल कहते बाबा मंदिर पहुंच, बाबा का जलार्पण करते है.

बोल-बम के पीछे की कहानी

कांवरियां बम क्यों बोलते है, इसके पीछे भी एक कहानी है. जानकारों के अनुसार राजा दक्ष के यज्ञ में माता सती ने जब अपना शरीर त्याग दिया था. जिसके बाद भगवान भोले ने दक्ष का गर्दन काट दिया था, इसके बाद दक्ष को पुनः जीवीत करने के लिए भगवान शंकर ने राजा दक्ष को बकरा का सिर लगा दिया था. दक्ष के मुख से बकरा वाली बोली जो निकली वह शंकर को अति प्रिय लगी, जिससे भगवान शंकर अति प्रसन्न हुए. राजा दक्ष के अभिमान को चुर करने पर भोले शंकर जो प्रसन्न हुए खासकर बकरा की आवाज को सुनकर तब से बम-बम हर-हर बम-बम का उच्चारण कर श्रद्धालु भगवान शंकर को प्रसन्न करते है. यही कारण है कि सुल्तानगंज से लेकर बाबा मंदिर तक बोल-बम का नारा गूंज उठता है.

बोल-बम का नारा लगाते बम सुल्तानगंज से गंगा जल लेकर बाबाधाम की 105 किलामीटर की कष्टमय यात्रा कब पूरा हो जाता है किसी को भी मालूम नहीं पड़ता है. रास्ता तो कठिन है और 105 किलोमीटर की पैदल यह यात्रा कर बम भगवान शंकर के प्रिय तो बन ही जाते है. बाबा की आस्था का ही महिमा है की लोग सावन माह में खासकर दूर-दराज से यहा पहुंच बम के नाम से जाने जाते है. एक गाना याद आ जाता है बोल-बम का नारा है बाबा एक सहारा है.

रिपोर्ट: रितुराज सिन्हा, देवघर