टीएनपी डेस्क(TNP DESK): घर में जब बेटी का जन्म होता है तो उसी समय से उसकी शादी की तैयारी शुरू हो जाती है. बेटी को पराया धन कहा जाता है. कहा जाता है कि बेटी को भले ही हम अपने कलेजे का टुकड़ा मानें लेकिन जिस दिन उसकी शादी होती है तो उसका कन्यादान करना पड़ता है और फिर लड़की हमेशा के लिए पराया धन हो जाती है. हिंदू रिति रिवाज में अब तक तो ऐसा ही चलता रहा है कि जब भी किसी लड़की की शादी होती है तो उसे लड़का विदा करके अपने घर ले जाता है.

भारत के इस शहर में शादी के बाद लड़के की होती है विदाई

दुनिया भर में कई रीति-रिवाज निभाये जाते हैं जिनकी अलग-अलग परंपरा और धर्म का महत्व होता है. वहीं शादी जिंदगी का एक अहम हिस्सा माना जाता है, जिसकी कुछ रस्में होती हैं जिसमें लड़की की विदाई का खास महत्व होता है लेकिन आज हम जिस जगह के बारे में बताने जा रहे हैं वहां दुल्हन की नहीं बल्कि दूल्हे की विदाई होती है, उसे लड़की के घर जाना पड़ता है. अब यह परंपरा किस जाति, किस धर्म, किस राज्य और किस शहर की है चलिए आज हम आपको बताते हैं.

संपत्ति की मालकिन भी बेटियां ही होती है

इस अनोखी परंपरा की एक और खास बात है कि यहां घर की सारी जिम्मेदरी पुरुषों पर नहीं बल्कि महिलाओं पर होती है, इसलिए इसे महिला प्रधान समाज कहा जाता है. इस समाज के लोग शादी के बाद बाप का नहीं बल्कि मां का नाम बच्चों को दिया जाता है. वहीं समाज की सबसे अनोखी बात है कि घर की जिम्मेदारी के साथ पूरी संपत्ति भी बेटी को ही दी जाती है और परिवार की सबसे छोटी बेटी पर सबसे ज्यादा जिम्मेदारी होती है.

घर की जिम्मेदारी पुरुषों की जगह महिलाओं पर होती है

जिस तरह से हिंदू समाज में घर के बेटे पर सारी जिम्मेदारी होती है, वैसे ही इस समाज के लोग बेटियों पर सब जिम्मेदारी  देते हैं और फिर संपत्ति की मालकिन भी बेटियां ही बन जाती है. यहां बेटी के जन्म होने पर खुशियां मनाई जाती हैं और मिठाइयां बांटी जाती हैं इसके अलावा यहां लड़की को अपना जीवन साथी चुनने की पूरी हक होता है.आपको बता दें कि खासी समुदाय के लोग दहेज प्रथा के खिलाफ हैं, यही वजह है कि यह महिला प्रधान समाज बना गया है.जिसके खिलाफ यहां के पुरुष हक की मांग के लिए आंदोलन कर रहे हैं.

पढ़ें ये परंपरा कहां की है

वहीं आपको बतायें कि इस जनजाति में महिला प्रधान समाज होने के बाद भी राजनीति में कोई भी महिलाएँ भाग नहीं लेतीं, वहीं यहां होनेवाली परम्परागत बैठकों में महिला शामिल नहीं होतीं. आपको बताये कि ये अनोखी प्रथा भारत के मेघालय में रहने वाली खासी जनजाति की है. खासी समाज के लोग मेघालय के साथ पश्चिम बंगाल असम और मणिपुर में रहते हैं.