टीएनपी डेस्क (TNP DESK): देश के जाने माने रंगकर्मी, निर्देशक, नाट्य व फ़िल्म अभिनेता, लेखक-इतिहासकार रणवीर सिंह का आज जयपुर में निधन हो गया. जयपुर के राजस्थान अस्पताल में अभी 4 दिन पहले ही उनकी जटिल एंजियोप्लास्टी हुई थी. जनसत्ता के संपादक रहे लेखक-पत्रकार ओम थानवी कहते हैं कि इप्टा के अध्यक्ष रणवीर सिंह 93 वर्ष के थे, पर सदा सक्रिय और जागरूक. हृदय की व्याधि के चलते कुछ रोज़ से अस्पताल में थे. अभी कुछ ही समय पहले उनकी पुस्तक “पारसी थिएटर” पर जयपुर के बुद्धिजीवियों ने चर्चा आयोजित की थी. मेरे प्रति भी उनका अपार स्नेह था. विघ्न न पहुँचे, इस ख़याल से अस्पताल गया नहीं. अब पछता रहा हूँ. रणवीर सिंह जी के घर यह तसवीर तीन साल पहले राजेंद्र बोरा जी ने खींची थी.

पृथ्वीराज रासो पर अधूरी रह गई किताब
दूरदर्शन के एडिशनल डायरेक्टर जनरल रहे कवि-लेखक कृष्ण कल्पित लिखते हैं कि रणवीर सिंह ने इतिहास और नाटक की कई किताबें लिखीं हैं. पिछले दिनों पारसी रंगमंच पर लिखी उनकी किताब चर्चा में है. इन दिनों वे पृथ्वीराज रासो की ऐतिहासिकता पर एक महत्वपूर्ण किताब लिख रहे थे. 1980 में रणवीर सिंह ने एक कहानी लिखी - अफ़सोस हम न होंगे, जिस पर मशहूर रंगकर्मी दिनेश ठाकुर ने हाय मेरा दिल नाम से मुंबई के पृथ्वी थियेटर में नाटक किया. यह इतना लोकप्रिय हुआ कि बाद में इसके हज़ार मंचन हुए. आज भी यह नाटक लोकप्रिय है. रणवीर सिंह ने गुलाल फ़िल्म में भी भूमिका अदा की थी. अमाल अल्लाना का दूरदर्शन का मशहूर सीरियल मुल्ला नसरुद्दीन की पूरी शूटिंग डूंडलोद पैलेस में हुई, इसमें रणवीर सिंह ने अभिनय भी किया था. बीआर चोपड़ा की शोले और चांदनी चौक फ़िल्मों में भी काम किया. रणवीर सिंह का पूरा जीवन रंगमंच को समर्पित रहा. वे यात्रिक थियेटर ग्रुप के संस्थापकों में थे. 1953 में उन्होंने जयपुर थियेटर ग्रुप की स्थापना की.

एक सितारा और अस्त हुआ
डूंडलोद के सामंत होते हुए भी वैचारिक रूप से उनकी मार्क्सवाद में जीवन भर आस्था रही. जन आंदोलनों में रणवीर सिंह एक ज़रूरी उपस्थिति थे. एक बार तो वे अपने स्कूल के दिनों के दोस्त सऊदी अरब के एक प्रिंस को नुक्कड़ नाटक दिखाने ले गए. हज़ारों बातें हैं. मुझ पर उन का अतिरिक्त स्नेह इसलिए भी रहा कि हम दोनों शेखावाटी के रहने वाले हैं - वे डूंडलोद नरेश थे और मैं बगड़ का भिक्षुक! दो वाक्य हिंदी-अंग्रेज़ी में बोलने के बाद हम शेखावाटी भाषा में बात करने लगते थे.


पुरानी शोले, चांदनी चौक के अलावा टीवी सीरियल में भी किये काम 
रणवीर सिंह इप्टा के राष्ट्रीय अद्यक्ष थे. इप्टा के महासचिव राकेश बताते हैं कि 7 जुलाई 1929 को डुंडलाड राजस्थान में जन्मे रणवीर सिंह ने मेयो कॉलेज, जयपुर से प्रारंभिक शिक्षा के बाद कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से 1945 में बीए किया. रंगमंच और फ़िल्म में प्रारंभ से ही उनकी रुचि थी और वे राजघराने के बंधन तोड़ कर 1949 में मुम्बई चले गए जहां उन्होंने बीआर चोपड़ा की फ़िल्म शोले में अशोक कुमार और बीना के साथ तथा चांदनी चौक में मीना कुमारी और शेखर के साथ अभिनय किया. 1953 में वे जयपुर लौटे और जयपुर थिएटर ग्रुप की स्थापना की. जिसमें अनेक नाटकों का निर्देशन किया, अभिनय एवं प्रकाश व्यवस्था भी संभाली. 1959 में वे कमला देवी चट्टोपाध्याय के बुलावे पर दिल्ली चले गए जहां उनकी सरपरस्ती में उन्होंने "भारतीय नाट्य संघ" की स्थापना की जो इंटरनेशनल थिएटर इंस्टिट्यूट से सम्बध्द था. यहाँ उन्होंने "यात्रिक" थिएटर ग्रुप के साथ अनेक नाटक किये. उन्होंने अनेक टीवी धारावाहिकों में भी महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं, जिनमें अमाल अल्लाना के निर्देशन में मुल्ला नसरुद्दीन, अनुराग कश्यप के निर्देशन में गुलाल एवं संजय खान के निर्देशन में टीपू सुल्तान की तलवार प्रमुख हैं. अभिनय और निर्देशन के अतिरिक्त उन्होंने अनेक नाटक लिखे जो हज़ारों बार खेले गए हैं, इनमें प्रमुख हैं:-पासे, हाय मेरा दिल, सराय की मालकिन, गुलफाम, मुखौटों की ज़िंदगी, मिर्ज़ा साहब, अमृतजल, तन्हाई की रात.

 

संस्कृत नाटक का इतिहास लिखा
राकेश कहते हैं कि उन्होंने कई विदेशी नाटकों के भारतीय रूपांतरण भी किये. वे इतिहास के गहरे अध्येता थे. रंगमंच के इतिहास को उन्होंने वाजिद अली शाह, पारसी रंगमंच का इतिहास, इंदर सभा, संस्कृत नाटक का इतिहास जैसी पुस्तकों से समृध्द किया साथ ही नाटकों के कई विश्व कोषों में भारतीय रंगमंच की उपस्थिति दर्ज कराई. वे मॉरीशस में सांस्कृतिक सलाहकार भी रहे तथा राजस्थान संगीत अकादमी के उपाध्यक्ष रहे. उन्होंने रंगमंच के आदान प्रदान हेतु इंग्लैंड, चेकोस्लोवाकिया, रूस,जर्मनी, फ्रांस, बंगलादेश, नेपाल आदि देशों का कई बार भ्रमण किया.   


इप्टा से जुड़ाव की बातें                   
इप्टा के पुनर्गठन की प्रक्रिया में वे इप्टा से जुड़े और 1985 में आगरा में आयोजित राष्ट्रीय कन्वेंशन में शामिल हुए तथा 1986 में हैदराबाद के राष्ट्रीय सम्मेलन में उपाध्यक्ष चुने गए. 2012 में एके हंगल के निधन के बाद राष्ट्रीय अद्यक्ष चुने गए. इप्टा के हर राष्ट्रीय सम्मेलन, कार्यक्रम में नौजवानों की ऊर्जा के साथ शामिल होते थे. उनके मार्गदर्शन में इप्टा की सक्रियता निरंतर बढ़ती रही. रंगमंच में नए नाटकों और नए प्रयोगों को वे जरूरी मानते थे.


सिंह और सिंग का जब बताया अंतर
राजस्थान के रहने वाले संप्रति मुंबई में रहकर फिल्मों के लिए गीत-कहानी लिख रहे दुष्यंत बताते है कि जीवन में पहली बार स्वतंत्र इतिहासकार के रूप में जिसे जाना, वे रणवीर सिंह थे. राजस्थन के इतिहास पर उनकी कई महत्वपूर्ण किताबें हैं जो अमेरिकी विश्वविद्यालयों के छात्र भी ढूंढकर पढ़ते हैं. बिना विश्वविद्यालय या कॉलेज के पद के,  बड़ा अकादमिक कद हासिल किया जा सकता है, वे इसकी मिसाल हैं. अपनी किताबों के फ्लैप पर अपनी शिक्षा के हवाले से वे केवल 3 शब्द लिखते थे: मेयो कॉलेज, अजमेर. (मेयो दरअसल एक स्कूल है। जिसकी स्थापना रियासतकाल में राजकुमारों की पढ़ाई के लिए की गयी थी.. ) उन्होंने अपनी सतत अध्ययनशीलता से अकादमिक ऊंचाइयां अर्जित की. उन्होंने ही मुझे  सबसे पहले राजपूतों और सिखों के नाम के दूसरे अनिवार्य शब्द के उच्चारण का भेद बताया कि राजपूत सिंह ( Sinh ) होते हैं, और सिख सिंग ( Singh).

इधर, रांची में भी किये गए याद
इधर, सीपीआई राज्य कार्यालय में रांची इप्टा इकाई ने 2 मिनट के मौन और उनके चित्र पर पुष्प अर्पित करने के साथ इप्टा के राष्ट्रीय अध्यक्ष रणवीर सिंह को श्रद्धांजलि दी गयी. मौके पर जिला सचिव अजय सिंह, फरज़ाना फारूकी, अमित आर्यन, शयामल चक्रवर्ती, मनोज ठाकुर, वीरेंद्र विश्वकर्मा, ब्यूटी कुजूर, डोरोथी आदि उपस्थित थे. कहा गया कि उनके आकस्मिक निधन से सांस्कृतिक और  सामाजिक  जगत में शोक है. देश ने सामाजिक और सांस्कृतिक वैचारिक योद्धा को खोया है.