टीएनपी डेस्क(TNP DESK):  आदिवासियों के प्रमुख लोकपर्व में से सबसे प्रचलित है, कर्मा पूजा. कर्मा पूजा हिंदू पंचाग के भादो मास की एकादशी को मनाया जाता है. कर्मा पूजा झारखंड, छत्तीसगढ़ सहित देश-विदेश के कई हिस्सों में बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है. इस पूजा की जो सबसे खास बात है, जो लोगों को आकर्षित करती है, वो है इस त्योहार के दिन किया जाने वाले विशेष नृत्य. इसे कर्मा नृत्य कहते हैं.

कर्मा पूजा इस साल 6 सितंबर को मनाया जाएगा. मगर, इसकी शुरुआत अभी से ही हो चुकी है.  लोग इस पर्व की तैयारी में जुट चुके हैं. कर्मा पूजा भाई बहनों का त्योहार है. यह त्योहार तीन दिनों तक चलता है. पहले दिन भाई बहन करम पौधे की डाली लाकर घर में उसे रोपते हैं. दूसरे दिन बहनें निर्जला उपवास रख इसकी पूजा करती हैं और शाम को पूजा कर अपना उपवास खोलती हैं और फिर अगले यानि कि तीसरे दिन गीतों के साथ करम के पौधे को नदी या तालाब में प्रवाहित कर दिया जाता है. इन तीन दिनों तक घरों में उत्साह का माहौल होता है, पकवान बनाए जाते हैं. गीत और नृत्य का जबरदस्त आयोजन और उत्सव होता है. कर्मा नृत्य झारखंड और आदिवासियों की संस्कृति का प्रतीक है. झारखंड हो, छत्तीसगढ़ हो, या देश का कोई राज्य, आदिवासी के साथ ही बाकी लोग भी इस नृत्य को मंगल नृत्य मानते हैं.

कर्मा पूजा की विधि

कर्मा पूजा की आसान विधि है, मगर, करना कठिन है. मनौती मानने वाले दिन भर निर्जला उपवास रखते हैं और अपने सगे संबंधियों को निमंत्रण देते हैं. इसके बाद शाम को करमा पेड़ की पूजा कर कुल्हाड़ी से एक ही बार में करमा पेड़ के डाल को काट दिया जाता है. मगर, ये ध्यान रखा जाता है कि डाल जमीन पर ना गिरे. इसके बाद उस डाल को अखरा में गाड़ा जाता है. फिर उसके आगे सभी लोग मिलकर रात भर करमा नृत्य करते हैं. अगले दिन सुबह पास के ही किसी नदी में इस करमा वृक्ष के डाल को विसर्जित कर दिया जाता है. इस मौके पर विशेष गीत भी गाए जाते हैं.

उठ उठ करमसेनी, पाही गिस विहान हो

चल चल जाबो अब गंगा असनांद हो"

कर्मा पूजा की कथा

कर्मा पूजा के पीछे कई प्रचलित कथा है. जो सबसे प्रचलित कथा है वो दो भाई और एक बहन की है. कहा जाता है कि कर्मा और धर्मा दो भाई थे. दोनों भाई बहुत गरीब थे. दोनों भाइयों ने अपनी बहन के लिए अपना जीवन तक दांव पर लगा दिया था. दरअसल, बहन अपने भाइयों के लिए सुख-समृद्धि की कामना करती और करम की डाली की पूजा करती. इससे प्रसन्न होकर भगवान ने दोनों भाइयों को सुख-समृद्धि प्रदान की.  मगर, बहन के जीवन पर जब आंच आई तो भाइयों ने दुश्मनों से अपनी बहन की रक्षा के लिए अपनी जान गवां दी. तभी से इस पर्व को मनाने की परंपरा चली आ रही है. इसके बार में और भी कहानियां प्रचलित है. मगर, सबसे प्रसिद्ध कहानी यही है.   

कर्मा पूजा की सबसे खास बात ये है कि कर्मा पूजा सिर्फ बहनें ही करती है. इस दिन बहनें मायके से ससुराल लौट कर आती हैं और भाइयों की लंबी आयु और सुख समृद्धि के लिए पूजा करती है.