देवघर (DEOGHAR): देवघर के बाबा मंदिर की कई परंपरा प्रचलित है. उन्हीं में से एक है शारदीय नवरात्रि. यहां साल में सिर्फ नवरात्रि में ही विशेष और अन्य दिनों की पूजा विधि से हटकर पूजा होती है. पवित्र द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से बाबा धाम एक मात्र द्वादश ज्योतिर्लिंग है, जो शक्तिपीठ भी कहलाता है. शिवलिंग की स्थापना से पहले यहां माता सती का आगमन हुआ था. जानकारों के अनुसार माता सती का हृदय जहां गिरा था उसी स्थान पर शिवलिंग की स्थापना स्वयं भगवान विष्णु ने की. इसलिए बाबाधाम स्थित इस ज्योतिर्लिंग को हृदय पीठ,कामनालिंग या रावणेश्वर बैद्यनाथ कहते हैं. यही कारण है कि सावन के महीनों में ही नहीं  प्रतिदिन देश-विदेश के श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.

तीन दिनों के लिए छिन जाती है माता की शक्ति

जो भी भक्त बाबा बैद्यनाथ पहुंचते हैं वो माता पार्वती या सती से अपनी मनोकामना की झोली भर कर जाते हैं. शक्तिपीठ होने के कारण यहां नवरात्रि में तांत्रिक विधि से पूजा अर्चना की जाती है. प्रशासनिक भवन के नीचे स्थित हवन कुंड सिर्फ नवरात्रि के दौरान ही खुलता है और इसी हवन कुंड में तांत्रिक विधि से पूजा और हवन प्रतिदिन किया जाता है. परंपरा के अनुसार नवरात्रि के दिनों में तीन तिथि यानी सप्तमी, अष्टमी और नवमी को मंदिर परिसर स्थित मां त्रिपुर सुंदरी, संध्या और काली मंदिर का पट आम भक्तों के लिए बंद कर दिया जाता है. जानकर बताते हैं कि इस तीन दिनों तक माता की शक्ति छीन जाती है. इसलिए सप्तमी तिथि से नवमी तक पट को बंद कर दिया जाता है. दशमी को हवन होने के बाद पट को आम भक्तों के लिए खोल दिया जाता है. नवरात्रि के अवसर पर मंदिर के मुख्य द्वार पर मां की प्रतिमा भी स्थापित की जाती है. जहां आमलोग माता का दर्शन पूजन करते हैं. शक्तिपीठ होने के कारण यहां तांत्रिक विधि से पूजा शायद ही किसी अन्य शिवधाम में होता होगा. जानकर की मानें तो इस हृदय पीठ में तंत्र साधक अपनी सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकते. यह तो बाबा भोले और माता पार्वती की शक्ति का जीता जागता उदाहरण है कि आज तक किसी तांत्रिक ने यहां सिद्धि प्राप्त नहीं की.

रिपोर्ट: रितुराज सिन्हा, देवघर