रांची (RANCHI): जगन्नाथपुर पहाड़ी पर स्थित गगन को चूमते कलश वाले मंदिर के ईद-गिर्द दो साल तक रहा सन्नाटा आज उत्साह-आस्था से सराबोर भीड़ में बदल चुका है. चारों ओर फैले ऊंचे पेड़ों की हरियाली. मंद-मंद बहती अध्यात्मिक बयार. हर साल यहाँ के एक किलो मीटर के दायरे में मेला लगता रहा है. लेकिन कोरोना के कारण दो वर्ष ऐसा न हो सका. लेकिन इस बार ऐतिहासिक रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल पक्ष द्वितीया तिथि दिनांक 1 जुलाई को होने जा रही है। पुरी सा ही वास्तुशिल्प वाले इस मंदिर में पूजा से लेकर भोग और  विधि-विधान भी पुरी जगन्नाथ मंदिर जैसे ही किये जाते हैं. आज  अपराह्न 5 बजे मुख्य मंदिर से रथ यात्रा निकलेगी.

पुरी से पहुंचे कारीगरों ने 45 दिनों में बनाया नया रथ
जगन्नाथपुर मंदिर न्यास समिति के प्रथम सेवक सह उपाध्यक्ष ठाकुर नवीन नाथ शाहदेव ने बताया है कि पुरी से आए कारीगरों ने इस बार नया रथ बनाया ह. इसकी ऊंचाई 42 फीट और चौड़ाई 26 फीट है. रथ को बिल्कुल नए रूप में ढाला गया है. रामकृष्ण मिशन टीवी सेनेटोरियम तुपुदाना के सचिव महाराज की ओर से 100 सीएफटी साल की लकड़ी रथ बनाने के लिए दी गई थी. रथ बनाने में कुल 221 सीएफटी साल की लकड़ी की ज़रूरत पड़ी.

इनका मिल रहा सहयोग

नये रथ के निर्माण और पूजा समेत मेला में कई सामाजिक संस्थानों का सहयोग मिल रहा है. इसमें मारवाड़ी सहायक समिति रांची, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ,  झारखंड टिंबर ट्रेडर्स एसोसिएशन रांची , अग्रवाल सभा , महेश्वरी सभा , दिगंबर जैन पंचायत, मारवाड़ी ब्राह्मण सभा, पंजाबी हिंदू बिरादरी समिति, श्री गुरुद्वारा गुरु सिंह सभा , श्री कृष्ण सेवाधाम ट्रस्ट , श्री हनुमान मंडल रांची , श्री श्याम मंडल रांची, श्री श्याम मित्र मंडल रांची , झारखंड प्रांतीय मारवाड़ी समिति , बंगाली समाज , उड़िया समाज, गुजराती समाज , फेडरेशन झारखंड ऑफ कॉमर्स रांची , चेंबर ऑफ कॉमर्स रांची , पंडरा बाजार समिति रांची , थोक वस्त्र विक्रेता संघ , खंडेलवाल सभा , ओसवाल सभा, सोना चांदी व्यवसाई समिति , होटल व्यवसाई , बिल्डर्स एसोसिएशन रांची आदि संगठन शामिल हैं.

1691 में बड़कागढ़ के राजा ने कराया था मंदिर का निर्माण

मंदिर का निर्माण 25 दिसंबर 1691 को बड़कागढ़ के राजा ठाकुर ऐनी नाथ शाहदेव ने कराया था. 1976 में मंदिर ट्रस्ट बना. तब से वही देखरेख कर रहा है. 6 अगस्त, 1990 को अचानक इस मंदिर का एक हिस्सा टूट गया था. भगवान को कई दिनों तक बरामदे में विश्राम कराना पड़ा. लेकिन 1991 में बिहार सरकार और श्रद्धालुओं के सहयोग से मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया.