टीएनपी डेस्क (TNP DESK): तस्वीर में दिख रहा यह सुंदर सा बंगला हिमाचल प्रदेश के सोलन में शिल्ली रोड़ पर उपायुक्त रेजिडेंस के पास है. इसमें करीब 14 कमरे, हॉल, बेड रूम, किचन और टॉयलेट है. यह अनीस विला के नाम से मशहूर है. इसका निमार्ण 1927 में हुआ था. दरअसल अनीस अहमद उस व्यक्ति का नाम था, जो दिल्ली के मशहूर वकील थे. वे तीस हजारी कोर्ट में प्रेक्टिस किया करते थे. वे उर्दू शायर गालिब के नाम से ख्यात बल्लीमरान में ही रहते थे. इनके पिता ने ही यह बंगला खरीदा था. सरकार ने 1953 से 1969 के दौरान इस संपत्ति को यह कहकर अनाम घोषित कर दिया गया कि इसके मालिक पाकिस्तान चले गए. सरकार ने इसे अपने कब्जे में ले लिया.1992 में सलमान रुशदी ने इस भवन पर अपना दावा ठोका. साबित किया कि वे असली मालिक हैं. आप पूछेंगे कि सलमान ने दावा क्यों किया. दरअसल अनीस अहमद सलमान के पिता थे. आखिर पांच साल कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद 1997 में सलमान ने इसे हासिल किया.

2002 के बाद नहीं आए सोलन

रुशदी वर्ष 2002 में हिमाचल सरकार से मुकदमा जीतने के बाद पहली बार सोलन आए थे. वो इमारत को एक लाइब्रेरी में बदलना चाहते थे. लेकिन यह वादा पूरा नहीं हो पाया. लाइब्रेरी बनाना तो दूर रुशदी इस घर की मरम्मत तक नहीं करवा पाए. इसके अलावा वह केयर टेकर गोविंद राम से कह गए थे कि बंगले की देखभाल के लिए समय-समय पर पैसा भेजते रहेंगे, मगर 2015 के बाद न तो मरम्मत के लिए कोई पैसा आया और न ही गोविंद का वेतन.

कौन हैं सलमान रुशदी

सलमान रुश्दी का जन्म 19 जून 1947 को मुंबई में हुआ था, लेकिन वह खुद को नास्तिक कहते रहे हैं. 1981 में उनका उपन्यास मिडनाइट्स चिल्ड्रेन आया. यह किताब खूब बिकी. लेकिन दुनिया में उनकी प्रसिद्धि में उछाल 1988 में आया, जब उनका उपन्यास द सैटैनिक वर्सेज (The Satanic Verses) बाजार में आया. इनपर पैगंबर विरोधी लेखन का आरोप लगा. ईरान के शिया धार्मिक नेता अयातउल्लाह खामनई ने उनका कलम करने वालों को इनाम देने की घोषणा की. उनकी चर्चा कई शादियों को लेकर भी होती रही है. पिछले हफ़्ते एक 24 वर्षीय युवक हादी मटर ने रुश्दी पर एक कार्यक्रम के दौरान जानलेवा हमला कर दिया. हमले के बाद उन्हें स्थानीय चिकित्सा केंद्र में ले जाया गया, जहां उन्हें वैंटिलेटर पर रखा गया और सर्जरी की गईं. उनकी सेहत में सुधार आ रहा है.

दिल्ली में भी सलमान रुश्दी का एक बंगला

दिल्ली के सिविल लाइंस मेट्रो स्टेशन से कुछ ही दूर पर घने पेड़ों की हरियाली से लबरेज फ्लैग स्टाफ है. यहां के 4 नंबर का बंगला उन्हीं अनीस अहमद ने 1946 में खरीदा था, जो सलमान के पिता थे. अनीस 1960 के दशक में लंदन चले गए. जब वे 1970 में दिल्ली आए, तो बंगला स्वाधीनता सेनानी और कारोबारी भीखूराम जैन को 300 रुपए मासिक किराये पर दे दिया. मध्यस्थता राजपुर रोड के प्रॉपर्टी डीलर लज्जा राम कपूर ने की थी. कुछ ही महीने बाद बंगले को भीखूराम को बेच दिया. उन्होंने 50 हजार रुपए बयाना भी लिया. शेष रकम 15 महीने में दी जानी थी. 3. 75 लाख रुपए में मामला तय हुआ था. लेकिन अनीस अहमद जो लंदन गए तो कभी नहीं लौटे. अब भीखूराम जैन, अनीस अहमद और लज्जाराम कपूर की मौत हो चुकी है.  बंगले के मालिकाना हक के लिए केस चल रहा है.