रांची (RANCHI): इतना कोमल और मोहमय है, हमारा प्रेम, जैसे अभी-अभी हमारी उंगलियों के बीच उगी है हरी-हरी दूब  या कभी चिलचिलाती धूप में किसी पेड़ के नीचे आकर बैठोगे तो जानोगे कि किसी के लिए पेड़ बन जाना क्या है. ये छोटी पर प्रभावी कविता पंक्तियां असमिया कवयित्री कविता कर्मकार की हैं. जिसका पाठ उन्होंने आज रांची प्रेस क्लब की लाइब्ररी में किया. संवाद शीर्षक के तेहत इसका आयोजन क्लब ने पत्रकार कला मंच के साथ मिलकर किया था. जिसमें कविता ने बताया कि उनके पुरखे झारखंड से ही बरसों पहले आसाम गए थे. यहां आना उनका अपनी जड़ों की एहसास कराता है.

उन्होंने कविता लिखने के कारण और अपने संघर्ष की कथा भी साझा की. इसके अलावा लीजेंड शख्सियत भूपेन हजारिका के कइ गीत को अपने मधुर स्वरों में सजाया. वहीं अपने असमिया गीत सुनाए, जिसमें विस्थापन का दर्द था. राधा और कृष्ण के प्रेम-अनुराग ने भी उनकी मीठी आवाज में श्रोताओं को सुकून बख्शा. कुछ क्लासिकल फिल्मी गीत भी उनके कंठ के हार बने. कविता की दर्जनों किताबें छप चुकी हैं. जिसमें उनके अपने काव्य संग्रह के अतिरिक्त अनुवाद की अनगिनत किताबें हैं, जो साहित्य अकादमी और नेशनल बुक ट्रस्ट से प्रकाशित हुई हैं. उनकी रचनाओं का अनुवाद देश-विदेश की कई भाषाओं में हो चुका है.

संगोष्ठी में सेंट जेवियर्स कॉलेज में हिंदी के प्रोफेसर डॉ. केके बोस ने कविता की प्रशंसा करते हुए कहा कि समाज के सकारात्मक पहलुओं को भी जगह देनी चाहिए. जबकि किरण का कहना था कि कविता की कविताओं का फलक बहुत बड़ा है. कार्यक्रम का संचालन करते हुए दी न्यूज पोस्ट के संपादक शहरोज क़मर ने असमिया साहित्य के इतिहास से रुबरू कराया. मौके पर शालिनी नायक सहबा ने भी अपनी दो गजलें सुनाईं. आभार ज्ञापन पत्रकार कला मंच के सचिव संदीप नाग ने किया. गोष्ठी में प्रेस क्लब के महासचिव जावेद अख्तर, क्लब के पूर्व अध्यक्ष राजेश सिंह, मंच के सत्यप्रकाश पाठक, एस मृदुला, नृत्यांगना संध्या चौधरी, गीतकार सदानंद सिंह, कवि-लेखक राजीव थेपड़ा, पत्रकार नवीन कुमार मिश्रा, निलय सिंह, असगर खान, विवेक आर्यन, कुबेर सिंह, रंगकर्मी ऋषिकेश, जयदीप सहाय, अरुण नायक, देशदीप, अनिल सिन्हा समेत कई कला-साहित्य प्रेमियों ने महफिल का आनंद उठाया.