पलामू(PALAMU): इस्लाम के अंतिम पैगंबर हज़रत मोहम्मद के नवासे की सपरिवार कर्बला की जंग में शहादत की याद में बरसों से मुस्लिम समाज मुहर्रम का महीना शोक के रूप में मनाता आ रहा है. इसमें शिया संप्रदाय की भूमिका अलग होती है. हैदरनगर में शिया समाज करीब एक सदी या उससे पहले से मुहर्रम के चांद से दसवीं तारीख तक अलग-अलग दिन, अलग-अलग अंदाज से मुहर्रम मनाता आ रहा है. इसमें मरसिया और नौहा (शोक गीत) पढ़ा जाता है. मजलिसें होती हैं. जिसमें कर्बला की दर्दनाक कहानी सुनते-सुनते लोग रुदन करने लगते हैं. मातम का समां बंध जाता है. जुलूस में छोटे बच्चे भी मातम करते हुए दिख जाते हैं.

शिया समुदाय की औरतें चांद रात से ही सिंदूर, चूड़ी और साज-शृंगार त्याग देती हैं.  वहीं लोग पान खाने से लेकर वह सारे कार्य नहीं करते जो खुशी का प्रतिक हो. उनके घर दस दिनों तक मुकम्मल मातम सा माहौल रहता है.  

शिया वक्फ बोर्ड के मोतवल्ली सैयद शमीम हैदर रिजवी ने बताया कि कर्बला की जंग में फौज ए हुसैनी को जो तकलीफें दी गईं थीं, उससे सभी वाकिफ हैं.  बावजूद इसके उन्होंने हक का दामन नहीं छोडा.  उन्होंने कहा कि मुहर्रम कर्बला के शहीदों की याद में मनाया जाता है. उन्होंने कहा कि समुदाय की औरतें दो माह आठ दिन तक विधवा की तरह जीवन बिताती हैं.  समुदाय द्वारा इस बीच शादी ब्याह व खुशी का कोई कार्य नहीं किया जाता है.  मौके पर खास मजलिस के लिए राष्ट्रीय स्तर के ओलेमा को बुलाया गया है.

शिया समुदाय के बच्चे ,बुजुर्ग व युवा मुहर्रम की आठवीं व दसवीं को जुलूस के दौरान अपना शरीर जंजीरों और ब्लेड से काटते हैं. जबकि मुहर्रम की छट्ठी को कूजा मातम करते हैं.  इसमें वह अपने सिर को घायल कर लहू बहाते हैं.  इस हृदय विदारक दृश्य को देखने पलामू प्रमंडल के कोने कोने के अलावा बिहार के सीमावर्ती इलाके से बड़ी संख्या में लोग आते हैं.  

उधर सुन्नी समुदाय के द्वारा मस्दिज में जलसा ए हुसैनी का आयोजन किया गया है.  जलसा की शुरुआत चांद रात से ही कर दी गई है. इसमें इलाके के मशहुर व मारुफ ओलेमा ए कराम के अलावा नौहाख्वांह को आमंत्रित किया गया है.  जलसा प्रत्येक दिन संध्या सात बजे से शुरू होता है जो देर रात तक चलता है.  

शिया मुस्लिम के कार्यक्रम

13 दिनों तक लगातार दिन रात मजलिसों व मरसिया का दौर चलता रहेगा, पांचवीं को अली अकबर अ. का ताबूत निकाला गया, 6 ठीं को कूजे का मातम संपन्न हुआ, 7 वीं को मेहंदी की रस्म होगी, 8 वीं को जंजीरी मातम , 9 वीं को विभिन्न इमामबारगाहों में मजलिस, 10 वीं को ब्लेड मातम के साथ पहलाम की रस्म अदा की जोगी.

 सुन्नी मुसलमानों का कार्यक्रम

5 वीं को अलम के साथ जुलूस में परंपरागत हथियारों का खेल कूद व नौहाखानी की गई, 7 वीं को अलम के साथ जुलूस में नौहाखानी व खेल कूद, 9 वीं को छोटकी चौकी की मिलनी होगी, 10 वीं को बडकी चौकी की मिलनी व भाई बिगहा इमामबाडा में मजलिस का आयोजन के बाद पहलाम के लिए अखाडा कर्बला ले जायेंगे. पूर्वजों को फातेहा भी दिया जायेगा.

रिपोर्ट: जफर हुसैन,पलामू