टीएनपी डेस्क (TNP DESK): मशहूर सिंगर जुबीन गर्ग के पार्थिव शरीर को रविवार सुबह दिल्ली से गुवाहाटी लाया गया. जैसे ही उनका काफिला गोपीनाथ बोरदोलोई अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से काहिलीपारा स्थित उनके घर के लिए निकला, हजारों की भीड़ अंतिम दर्शन के लिए उमड़ पड़ी. चारों तरफ से लोगों ने फूलों की बरसात की और सड़कें पूरी तरह भर गईं. माहौल भावुक हो उठा जब भीड़ ‘जुबीन दा अमर रहें’ के नारे लगाने लगी. सिंगर के पार्थिव शरीर को फूलों से सजी एम्बुलेंस में रखा गया था. इस दौरान उनकी पत्नी गरिमा सैकिया गर्ग ताबूत को गले लगाकर फूट-फूट कर रोती नजर आईं. काफिले में जुबीन की पसंदीदा ओपन जीप भी शामिल थी, जिस पर उनका बड़ा सा पोर्ट्रेट लगाया गया था.
सिंगापुर ट्रिप के दौरान हुआ हादसा :
19 सितंबर को जुबीन गर्ग का सिंगापुर में निधन हो गया. शुरुआत में दावा किया गया कि उनकी मौत स्कूबा डाइविंग के दौरान हादसे में हुई थी. हालांकि, पत्नी गरिमा सैकिया ने इन अफवाहों को खारिज कर सच्चाई बताई. टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि 19 सितंबर को जुबीन अपने 7-8 दोस्तों के साथ यॉट से एक आइलैंड की ओर गए थे. उनके साथ ड्रमर शेखर और सिद्धार्थ भी मौजूद थे. बाकी सभी ने लाइफ जैकेट पहनी थी, लेकिन जुबीन ने नहीं. जब सभी लोग तैरने के लिए पानी में उतरे, तभी जुबीन को अचानक दौरा पड़ा. लाइफ जैकेट न होने की वजह से उन्हें समय पर बचाया नहीं जा सका और यह हादसा हो गया.
जुबीन गर्ग का जन्म 18 नवंबर 1972 को असम के तिनसुकिया जिले में हुआ था. वे केवल गायक ही नहीं, बल्कि संगीतकार, गीतकार, अभिनेता और निर्देशक भी थे. उन्होंने असमिया, हिंदी, बांग्ला और अंग्रेजी सहित कई भाषाओं में गाया. उनकी गायकी का दायरा बेहद विशाल था. उन्होंने बिष्णुप्रिया मणिपुरी, बोरो, कन्नड़, खासी, मलयालम, मराठी, नेपाली, उड़िया, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगु, तिवा और कई अन्य भाषाओं व बोलियों में लगभग 38,000 से अधिक गाने गाए. असम में उन्हें सबसे हाईएस्ट पेड सिंगर माना जाता था.
जुबीन गर्ग ने अपनी अनूठी आवाज और बहुमुखी प्रतिभा से न सिर्फ असम बल्कि पूरे देश में एक अलग पहचान बनाई. उनकी विदाई पर असम ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तर-पूर्व में शोक की लहर दौड़ गई है. गुवाहाटी की गलियों से लेकर दूर-दराज के गांवों तक हर जगह उनके गानों की गूंज सुनाई दे रही है. उनकी अंतिम यात्रा ने यह साबित कर दिया कि जुबीन सिर्फ एक गायक नहीं, बल्कि भावनाओं का प्रतीक और असम की आत्मा थे.
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